– बचपन में बालू मक्खी काटने से ही हो गया था कालाजार की बीमारी
– कालाजार के बाद पीकेडीएल हुआ, अब हैं स्वस्थ
मुंगेर।
कोई भी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए अगर समय पर सही और सशक्त उपचार मिल जाए तो शत-प्रतिशत निजात मिल जाता है। उक्त बात को चरितार्थ कर रही है सदर प्रखंड के शंकरपुर निवासी शबनम कुमारी। दरअसल,सबनम को बचपन में ही बालू मक्खी के काटने से शरीर में चकत्ता -चकता पड़ने लगे। पर इनके माता-पिता इस लक्षण को समझ नहीं पाए और अनदेखा कर दिए। ये समझकर की समय पर ये खुद-खुद ठीक हो जाएंगे। और उन्होंने इसका इलाज नहीं करवाया। पर शबनम के बीमारी के लक्षण बढ़ने लगे। फिर भी ये लोग नहीं समझ रहे थे कि उनकी बच्ची को क्या हो गया है एवं किस कारण से हो रहा है।
शबनम कहती हैं कि मैं अपने माता -पिता के साथ इलाज हेतु जब नजदीक के प्राथमिक सवास्थ्य केंद्र गयी। तो वहां जांच के बाद कालाजार की पुष्टि की गयी। जिसके बाद इस संक्रमण वाली बीमारी का इलाज शुरू कराया ,पर किसी कारण से मेरा इलाज बीच में ही छूट गया था।
शबनम बताती हैं कि इलाज छूटने की वजह से पीकेडीएल के अटैक आने शुरू हो गए थे। मैं थोड़ा परेशान रहने लगी कि अब मैं कभी ठीक नहीं हो पाऊंगी। पर, गांव की आशा दीदी के साथ वेक्टर टीम ने मेरा नियमित ख्याल रखते हुए 84 दिनों तक दवा लगातार खाने के लिए कहा। जिसे मैंने पूरा किया आज मैं इस बीमारी के संक्रमण से पूरी तरह से छुटकारा पा ली हूं। थोड़े से दाग धब्बे रह गए हैं पर संक्रमण का खतरा अब नहीं है। पर मैं समुदाय के लोगों से अपनी आपबीती को याद करते हुए कहना चाह रही हूं कि अगर कभी भी इस इस तरह के लक्षण दिखें तो उसे अनदेखा ना करें एवं अपने गांव की आशा दीदी से संपर्क कर नजदीकी प्राथमिक या सामुदायिक सवास्थ्य केंद्र जा कर अपना सही उपचार करवायें।
नियमित उपचार जरुरी है कालाजार उन्मूलन हेतु :
वेक्टर जनित रोग पदाधिकारी डॉ अरविंद कुमार सिंह बताते हैं की कालाजार बीमारी दो प्रकार के होते हैं पहला भीएल होता है दुसरे को पीकेडीएल कहते हैं यदि भीएल का इलाज कंप्लीट कर लिया जाता है तो यह बीमारी ठीक हो जाती है । किसी किसी रोगी में कालाजार बीमारी होने के 5 से 10 साल बाद पीकेडीएल चमड़ी वाला कालाजार बीमारी का रूप ले लेता है जिसका भी इलाज 84 दोनों का मिलटेफोसीन नाम के दवाई से पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है, त्वचा वाली बीमारी केवल पीकेडीएल ही है।
डॉ अरविंद कहते हैं कालाजार बीमारी का लक्षण दो सप्ताह से अधिक तक बुखार रहना, भूख नहीं लगना कमजोरी होना, खून की कमी आ जाना,एसपलीन का बढ़ जाना, पीकेडील बीमारी का लक्षण, चमड़े पर सफेद दाग आ जाना जिसमें सुनापन का पता चलता है। इस बीमारी से बचने के लिए त्वचा को ढक कर रखें यानि पुरे कपड़े पहने ,गंदगी एवं गिले जगहों पर जाने से बचें, बिस्तर पर मच्छरदानी का प्रयोग अवश्य करें।