-सदस्यता अभियान के बहाने खड़गे-माकन की कांग्रेस को निबटाने की तैयारी
-रितेश सिन्हा
अखिल भारतीय महिला कांग्रेस के 40वें स्थापना दिवस के साथ ही डिजिटल सदस्यता अभियान की शुरुआत हो गई। अब तक ये प्रोग्राम पिछले 15 दिनों में पूरी तरह से फेल रहा है। महिला कांग्रेस ने करीब दस लाख महिलाओं को सदस्यता अभियान के माध्यम से जोड़ने का लक्ष्य रखा था जिसकी हवा महिला कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षों और जिलाध्यक्षों ने निकाल दी। इसकी मुख्य वजह प्रत्येक महिला कार्यकर्ता से 100 रूपए डिजिटल माध्यम से सदस्यता के नाम पर उगाही करने का लक्ष्य था जिसमें महिलाओं ने कोई रूचि नहीं दिखाई। ऐसा नहीं है कि महिला कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षों और जिलाध्यक्षों ने कोई कोर-कसर छोड़ी हो, मगर 100 रूपए प्रति महिला से ले पाना ब्लॉक और जिला स्तर पर ले पाना टेढ़ी खीर साबित हुआ।
महिलाओं का राजनीतिक संगठनों से जुड़ना अपने आप में बड़ा काम है। महिलाएं जो सामाजिक और घरेलू जिम्मेदारी से जुड़ी होती हैं, उनका राजनीति से जुड़ पाना कठिन होता है। अधिकांश महिला राजनेताओं के पीछे उनका राजनीतिक परिवार जुड़ा रहता है जो उनके कार्यभार और दायित्वों को संभालते हैं, ये वास्तविकता प्रत्येक राजनीतिक दल में है। 2-3 प्रतिशत महिलाएं अपवाद हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में जिलाध्यक्ष महिलाओं के द्वारा जहां जिले में राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को मिलाकर 792 जिले हैं, लगभग 200 शहर अध्यक्ष हैं। ऐसे में प्रत्येक जिला और शहर अध्यक्षों के पास लगभग 1 लाख रूपए और 1000 महिला इकट्ठा करने की जिम्मेवारी है। सदस्यता अभियान की इतनी बड़ी राशि रखने का लक्ष्य पूरा करने में महिला प्रदेश अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष खुद को बेबस पा रही हैं।
इससे पहले संगठन में सदस्यता अभियान चलता था और सदस्य भी बनाए जाते थे जिनकी कीमत 1 से लेकर 5 रूपए तक होती थी। इससे ज्यादा की सदस्यता शुल्क लेने में महिलाओं की कोई रूचि नहीं है। सदस्यता शुल्क ब्लॉक, जिला और प्रदेश अध्यक्ष के द्वारा वित्तपोषित होता रहा है। मगर महिला कांग्रेस के तुगलकी फरमान 100 रूपए वो भी डिजिटल और यूपीआई के जरिए होने से महिला कांग्रेस के आम और पदाधिकारियों के हाथ-पांव फुला रखे हैं। इसके बावजूद महिला कांग्रेस अध्यक्ष अलका लांबा के साथ अनुभवहीन लोगों की टीम के रवैये ने इसको फ्लॉप शो बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। इसके बाद सैकड़ों जिलाध्यक्षों को सजा के तौर पर पदमुक्त कर दिया गया है।
महाराष्ट्र, झारखंड सहित कई राज्य जहां चुनाव होने हैं, वहां भी अलका लांबा के कार्यालय का कांग्रेस को लंबा करने का कार्यक्रम चालू है। आपको बता दें कि भाजपा समेत अन्य दलों में भी मिस्ड कॉल के द्वारा निशुल्क सदस्यता घर-घर जाकर प्रदान की जा रही है। वहीं कांग्रेस डिजिटल फर्जीवाड़े के जरिए पैसा जुटाने में उलझी है। पहले भी कांग्रेस का सदस्यता अभियान चला जिसमें पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, कोषाध्यक्ष अजय माकन ने डिजिटल तरीके से पैसे की वसूली की थी। पैसा किसी और खाते में ट्रांसफर हो रहा था जिस पर हो-हल्ला मचा था, मगर मामले को दबा दिया गया। अलका के नेतृत्व में महिला कांग्रेस को मजबूत करने को जो दावे किए गए थे, वो खोखले साबित हुए। माकन और अलका में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा रही है।
अलका दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष पद की प्रबल दावेदार थी, जिसे महिला अध्यक्ष का ओहदा देकर माकन प्रदेश अध्यक्ष के पद पर अपनी जेब के देवेंद्र यादव को सेट करने में कामयाब रहे। पैसा जुटाओ अभियान का फंडा समझा कर माकन ने अलका का राजनीतिक रूप से निबटाने की जो साजिश की है, उसमें वे कामयाब होते दिख रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री व तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्षा स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने 1984 में भारतीय महिला कांग्रेस की स्थापना की थी जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं के राजनीतिक और सामाजिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देना था जिसमें देश के हर वर्ग की महिलाओं को शामिल किया जा सके। उनके इसी एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की और उनके लिए आरक्षण का प्रावधान किया। आज इसी वजह से देश भर में महिलाएं पंचायत से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं जिसका एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निचले तबके में दिखता है। इनके लिए 100 रूपए की सदस्यता शुल्क दे पाना बेमानी है।
महिलाओं को अपने पाले में रखने के लिए राजनीतिक दलों में भारी होड़ है। भाजपा के यहां निशुल्क सदस्यता है, वहीं दिल्ली में सरकार चला रही आप पार्टी ने महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा प्रदान की हुई है। ये इन दलों को महिलाओं को लाभान्वित करते हुए अपनी पार्टी से जोड़ने का सोचा-समझा कदम है। वहीं कांग्रेस अपने महिला कार्यकर्ताओं को संगठन से जोड़ने की बजाए रोकने का तगड़ा इंतजाम कर लिया है। जिलाध्यक्ष और प्रदेशों अध्यक्षों पर की गई कार्यवाही कांग्रेस को राजनीतिक रूप से कमजोर करने की साजिश है जो कामयाब होती दिख रही है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के मिशन को झटका देने के लिए काफी है। महिलाएं ही नहीं अन्य कांग्रेसजनों में इस तुगलकी फरमान को लेकर खासा रोष है, इसकी जिम्मेदारी केवल अलका लांबा पर थोपकर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे और कोषाध्यक्ष माकन अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते।