– उचित प्रबंधन से सुरक्षित प्रसव संभव, चिकित्सा परामर्श का करें पालन
– लापरवाही से गर्भवती के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु को भी परेशानियों का करना पड़ सकता है सामना
लखीसराय।
बदलती जीवनशैली और परिवेश के साथ-साथ मधुमेह की समस्या भी आम हो गई है। वर्तमान दौर में इस परेशानी से किसी भी आयु वर्ग के लोग इस बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं। इसका प्रमाण यह है कि दिनों-दिन लगातार ऐसे मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है। ऐसे में लोगों को इससे बचाव के लिए सतर्क और सावधान रहने की जरूरत है। खासकर मधुमेह से पीड़ित हो चुकी गर्भवती महिलाओं को तो और सतर्क व सावधान रहने की जरूरत है। दरअसल, गर्भावस्था के दौरान ऐसी महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने से सुरक्षित और सामान्य प्रसव संभव है। इसको लेकर सरकार द्वारा भी हर जरूरी प्रयास किया जा रहा है । स्थानीय स्तर भी समुचित जाँच और उचित प्रबंधन की व्यवस्था है। इसलिए मधुमेह से ग्रसित गर्भवती को गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर अपने नजदीकी स्वास्थ्य संस्थान में जाँच जरूर करानी चाहिए।
– मधुमेह से ग्रसित गर्भवती को समय पर जाँच कराना बेहद जरूरी :
अपर मुख्य -चिकित्सा पदाधिकारी सह जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ अशोक कुमार भारती ने बताया, गर्भावस्था के दौरान मधुमेह से ग्रसित महिलाओं की समय पर जाँच और आवश्यक उपचार जरूरी है। अथवा लापरवाही से जान जाने का भी खतरा बना रहता है ,दरअसल मधुमेह के प्रति लापरवाही करने से ना केवल गर्भवती को परेशानियाँ से सामना पड़ सकता बल्कि, गर्भस्थ शिशु का विकास भी प्रभावित हो सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की जाँच जरूर करानी चाहिए। ताकि समय पर परेशानी का पता चल सके और ससमय ही जरूरी इलाज सुनिश्चित हो सके। जिले के सभी स्वास्थ्य संस्थानों में मधुमेह जाँच की मुफ्त सुविधा उपलब्ध है।
– 30 से 60 प्रतिशत गर्भपात की भी रहती है संभावना :
यदि समय से उपचार नहीं हो पता है तब आगे चलकर प्रसूता एवं गर्भस्थ शिशु में विभिन्न जटिलताएं हो सकती एवं दोनों टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित हो सकते हैं। इससे गर्भवती में इन्फेक्शन, प्रसव अवधि में बढ़ोतरी, जटिलतापूर्ण प्रसव, सिजेरियन प्रसव, प्रसव के बाद गर्भाशय का सिकुड़ नहीं पाना एवं प्रसव के बाद अत्यधिक रक्त स्राव जैसी तमाम जटिल समस्या उत्पन्न हो सकती है। जिससे प्रसूता की जान पर भी खतरा उत्पन्न हो सकता है। गर्भावस्था जनित मधुमेह से गर्भस्थ शिशु को भी समस्या हो सकती है। इससे गर्भस्थ शिशु की मृत्यु, मृत शिशु का जन्म, बर्थ डिफेक्ट, बर्थ इन्जरी एवं नवजात शिशु में ग्लूकोज की कमी के साथ पहले तीन महीने में अचानक गर्भपात की संभावना 30 से 60 प्रतिशत तक हो सकती है।
– गर्भवस्था में मधुमेह का उपचार :
इसके उपचार के लिए सरकार द्वारा तीन व्यवस्थाएं की गयी हैं। पहला भोजन एवं पोषण संबंधित, दूसरा दवाई द्वारा एवं तीसरा इन्सुलिन इंजेक्शन के द्वारा। गर्भावस्था में मधुमेह से पीड़ित महिला को पोषण संबंधी जानकारी दी जानी जरूरी है। जिससे वह समझ सके कि गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए पोषण युक्त आहार क्या है। उपयुक्त वजन में बढ़ोत्तरी कितनी होनी चाहिए एवं खून में सामान्य ग्लूकोज स्तर को प्राप्त करने एवं बनाये रखने के लिए कितना और कौन सा भोजन लेना है। जिन मधुमेह पॉजिटिव महिलाओं का मधुमेह, पोषण संबंधित उपचार से नियंत्रित नहीं होता है, उन्हें दवा दी जाती है। साथ ही जब दवा सेवन के बाद भी मधुमेह अनियंत्रित होता है तब चिकित्सक द्वारा इंजेक्शन द्वारा इन्सुलिन की डोज दी जाती है।