सनातन सभ्यता और संस्कृति को जीवन अमृत देने वाले धन्वंतरि भगवान की जयंती मनाई गई 

लखनऊ।

सनातन सभ्यता और संस्कृति को जीवन में अमृत देने वाले धन्वंतरि भगवान की जयंती की बहुत-बहुत बधाई देते हुए कार्यक्रम आयोजित किया गया। देश की युवा पीढ़ी को सभी प्रकार के नशे की दुर्बलताओ और कुत्सित मानसिकताओं से मुक्ति मिले उनका जीवन पूर्ण रूप से निरोगी और स्वस्थ रहे इसी प्रार्थना के साथ भगवान धन्वंतरि की जयंती मनाई गई।

श्री धन्वन्तरि हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार हैं जिन्होंने आयुर्वेद का प्रवर्तन किया। समुद्र मन्थन के समय अवतरित भगवान धन्वंतरि ने अमृतमय औषधियों की खोज की और मनुष्य के जीवन में ही नहीं प्रकृति के सभी जीव जंतुओं के लिए आरोग्य रहने का अमृत मंत्र दिया। आयुर्वेद की यह परंपरा आगे चलकर चिकित्सा के स्वर्णिम पन्नों के रूप में विख्यात हुई इसी परंपरा में इनके वंशज दिवोदास हुए जिन्होंने ‘शल्य चिकित्सा’ का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य, दिवोदास के शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र ‘सुश्रुत संहिता’ के प्रणेता, सुश्रुत विश्व के पहले शल्य चिकित्सक थे। वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी को प्राप्त था वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को प्राप्त हुआ। जहाँ अश्विनी के हाथ में मधुकलश था वहाँ धन्वंतरि को अमृत कलश मिला।

भगवान विष्णु संसार की रक्षा करते हैं अत: रोगों से रक्षा करने वाले धन्वंतरि को विष्णु का अवतार और अंश माना गया। इसीलिए दीपावली के दो दिन पूर्व त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। सभी सनातनी विभिन्न मित्रों के साथ शाम को दीपदान के साथ पूजा करते हैं।
ॐ धन्वंतराये नमः॥
श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
समुद्र मंथन से शरद पूर्णिमा को चंद्रमा कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धनवंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को माता लक्ष्मी का समुद्र से प्रादुर्भाव हुआ। इस 4 दिन के दीपावली उत्सव में हम पूजा अर्चना के द्वारा सब को मानते हैं।

आज सनातनी इतिहास में एक अन्य महत्वपूर्ण दिन के रूप में भी मनाते है। वाराणसी से हमारा पुराना संबंध है आज के दिन ही औघड़ दानी भोले भंडारी देवाधिदेव भगवान शंकर मां अन्नपूर्णा से पूरे संसार के कल्याण हेतु भिक्षा पात्र लेकर यह भिक्षा मांगते हैं कि सृष्टि में कोई भी जीव भूखा न रहे। और मां अन्नपूर्णा स्वर्ण अक्षय पात्र से खीर का दान भगवान शंकर को प्रदान करती हैं। मां अन्नपूर्णा के स्वर्ण विग्रह के यह दुर्लभ दर्शन प्रति वर्ष धन्वंतरि त्रयोदशी से अन्नकूट तक ही होते हैं । साल भर इस मंदिर में भक्तों कोअक्षत चावल प्रसाद के रूप में मिलते हैं।

कहा जाता है कि काशी में कोई भी भूखा नहीं सोता। मां अन्नपूर्णा स्वयं सभी की भूख शांत करने के लिए स्वयं काशी नगरी में विराजमान है और भगवान शंकर के त्रिशूल में स्थापित काशी नगरी ही नहीं पूरे विश्व का भरण पोषण मां जगत जननी के द्वारा किया जाता है। अन्नपूर्णा देवी का संबंध उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर से भी माना जाता है । कहते हैं संसार में सबसे बड़ा दान अन्न का दान होता है और यदि व्यक्ति संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन करेगा तो कभी भी अपने जीवन में बीमार नहीं होगा निरोगी रहेगा और उसको दीर्घायुश्री प्राप्त होगी।
अन्नपूर्णा मंदिर में आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्तोत्र रचना कर ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी। …….
*अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे,ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती*।
आज से भक्तों को देवी के खजाने के रूप में चावल, धान का लावा, और अठन्नी (सिक्का) प्रसाद में दिया जाता है। रात 12:00 बजे से ही काशी के इस प्राचीन मंदिर में भक्तों की लम्बी लंबी कतारे लग गई हैं।

भारत के सभी आयुष चिकित्सा से संबंधित अस्पतालों में भगवान धन्वंतरि की पूजा धूमधाम से की जाती है। ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ आयुर्वेद में मुझे भी भगवान धन्वंतरि की पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज के वैश्विक युग में आरोग्य के इस त्यौहार को सीधे सोने चांदी से जोड़कर व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा जरूर दिया जाता है परंतु यदि आप निरोगी रहेंगे, स्वस्थ रहेंगे तो धन संपदा आपके घर में निश्चित रूप से स्थाई स्थान ग्रहण करेगी।

इस दिन ईश्वर से कामना की जाती है कि देश की युवा पीढ़ी सभी प्रकार के नशे से दूर रहे, नशे से होने वाली गंभीर बीमारियां और दुर्घटनाएं हमेशा के लिए खत्म हो सके। अपने स्वास्थ्य और देश के उज्जवल भविष्य हेतु हमारे युवा पीढ़ी इन त्योहारों के महत्व को समझे सामाजिकता परिवारवाद जो भारत की सनातन परंपरा और सभ्यता का मूल है इससे जोड़कर युवा पीढ़ी को त्योहारों के असली अर्थ को समझना होगा। आज जरुरत है कि देश का युवा जागरुक हो मनुष्य योनि की सार्थकता को आरोग्य रहकर सभी प्रकार के नशे से दूर रहकर देश के विकास में अपना स्वर्णिम योगदान देना होगा।
@रीना त्रिपाठी
अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ सर्वजन हिताय संरक्षण समिति(SHSS)

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