महाराष्ट्र में 1961 से 2011 तक के आंकड़े बताते हैं कि हिंदुओं की आबादी 88 फीसदी से घटकर 66 फीसदी, और मुस्लिम आबादी 8 फीसदी से बढ़कर22 फीसदी हो गई। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई में 2051 तक 54 प्रतिशत तक हिंदू आबादी कम हो जाएगी।
भारतीय मुसलमान से किसी को कोई आपत्ति नहीं होती और फिर भी कहीं न कहीं भाईचारा रहता है, लेकिन आज भी मुंबई के कई इलाके ऐसे हैं जहां सिर्फ बांग्लादेशी मुस्लिम और रोहिंग्या मुस्लिम दिखाई दे रहे हैं जोकि एक खतरे की घंटी है, जो हमारे देश के अनेक कुर्सी के लालची, मक्कार नेताओं को दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि उन्हें देश हित में नहीं बल्कि अपने हित में राजनीति करनी है।
इसी घटिया मानसिकता, लालच, देशहित के बारे में ना सोचकर सिर्फ अपने बारे में सोचने के कारण ही हम 600 वर्ष तक गुलाम बने रहे। आज फिर से वही गद्दारी वाली मानसिकता लेकर कुछ राजनीतिक लोग घुसपैठ करके देश में आए हुए लोगों को साथ लेकर अपने हित साधने में लगे हुए हैं जिनमें अनेक क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस मुख्य रूप से शामिल है।
हमारे नेताओं को ये अवश्य सोचना चाहिए कि यदि देश सुरक्षित है तो ही हम सब सुरक्षित हैं अन्यथा आप अपनों को आपस में बांटकर, दुत्कारकर जिनको गले लगा रहे हो वे आपका ही गला काटने में देर नहीं लगाते हैं। उनकी अपनी संख्या बढ़ते ही दूसरों को या तो भगा देते हैं या फिर गला काट देते हैं। इसका जीता जागता ताजा उदाहरण बांग्लादेश में देख सकते हैं।
मुस्लिम अपने लोगों के लिए अपने धर्म के लिए इतने वफादार होते हैं कि अपनों के लिए पूरी दुनिया से समर्थन की आवाज आने लगती है, लेकिन हिंदू इतने लालची, नपुंसक तथा देश और धर्म के प्रति इतने उदासीन हो गए हैं कि अपने अपनों को जातियों में बांटकर अपना उल्लू सीधे कर रहे हैं।
हम सभी भारतवासियों को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए कि जिसको खुद की जाती का पता नहीं है, वह देश में जाती जनगणना कराने की बात करता है। जिसको संविधान का क ख ग नहीं आता वह संविधान बचाने की बात करता है। हमें देशहित में सोचना होगा और आस्तीन के सांपों जैसे जयचंदों से सावधान रहना होगा। यदि हमारी मुट्ठी बंधी हुई है तो किसी की हिम्मत नहीं है कि कोई हमें थप्पड़ दिखा सके और यदि मुट्ठी खुली है तो कोई भी उंगलियों को एक एक करके तोड़ सकता है।