हमें नया सूरज बनाना ही होगा – गुरुजी भू

मैने 32 वर्ष पहले एक कविता लिखी थी। वो सूरज के बूढा होने की कल्पनाओं पर आधारित थी। वो शायद मेरी निराशा थी, लेकिन मैं कभी निराशावादी नही रहा। मेरी निराशा क्षणिक होती है। मै कभी भी कितनी ही बडी समस्याओं से घिरा हूँ, कितना ही निराश हूँ, तुरन्त ही अपने आपको सम्भाला फिर तुरन्त ही आशा की नई किरण खोजकर आगे बढ़ने लगता हूँ।

उस दिन सर्दी का दिन था सूरज अपना गर्मी वाला कहर नही बरसा पा रहा था, मुझे सूर्य बडा ही बेचारा सा नजर आ रहा था।

कविता का शीर्षक था

*जब ये सूरज बूढ़ा हो जायेगा*

इस कविता में मुझे पहले तो सूरज के बूढा हो जाने पर और पृथ्वी से जीवन का अस्तित्व खत्म हो जाने पर चिंता सताई। फिर तुरंत ही मेरे आशावाद ने मुझे झकझोरा और फिर नया सूरज बनाने की कल्पना कर डाली। आज विज्ञान इस दौर में पहुंच गया है कि हम सूरज और पृथ्वी के बीच एक सौर सयंत्र (बनावटी सूरज)स्थापित करने की स्तिथि में आ गए है जो पृथ्वी पर सूरज की तरह ही ऊर्जा देगा और असली सूरज से ऊर्जा लेगा। ये प्रदूषण मुक्त सुपर पावरफुल बिजलीघर का काम करेगा।

आज भारत सरकार पावर जेनरेशन के लिए फॉसिल फ्यूल्स से लेकर नुक्लेअर रिएक्टर या सोलर सेल्स की एनर्जी के अलग अलग सोर्सेज की तलाश कर रही है। हमारी बढ़ती जनसंख्या देश को ले डूबेगी। बढ़ती जनसंख्या की डिमांड देखकर भारत सरकार की नीतियां मजबूूूत हो रही है। भारत का नियोजन फॉसिल फ्यूल में वातावरण में जहरीली गैस निकलती है न्यूक्लियर रिएक्टर में एटम तोड़कर नुक्लेअर एनर्जी रेडिएशन के रूप में खतरनाक है, और सोलर सेल्स से बनने वाली बिजली को स्टोर करने के लिए पॉवरफुल बैटरी की टेक्नोलॉजी नही है। अगर इसरो का आदित्य L1 मिशन सक्सेस होता है तो भारत और अमेरिका आपसी सहयोग द्वारा भारत के अंदर एक आर्टिफिशियल सूर्य का निर्माण करना चाहेगे। उससे एनर्जी एक्सट्रैक्ट कर सकते है सूर्य पृथ्वी से 3 लाख 33 हजार गुना भारी है। अपने अंदर 13 लाख पृथ्वी को समा सकने वाला सूर्य अपनी ऊर्जा का निर्माण स्वयं करता है। इस ब्रह्माण्ड में सूर्य जिस तरह से एनर्जी बनाकार चमकते रहते है उसी प्रक्रिया को “न्यूक्लियर फ्यूज़न” कहते है।

ये Thermonuclear प्रोसेस होता है उसमें से बहुत सारी ऊष्मा, ऊर्जा निकलती है। फ्यूज़न रिएक्शन से इतनी गर्मी उत्पन्न होती है कि एटम अपने इलेक्ट्रॉन संभाल नही पाता इलेक्ट्रॉन और नुक्लेऔस बाउंस होने लगते है। वो घूमते रहते है, इससे वो मैटर प्लाज्मा में परिवर्तित हो जाते है, और गर्मी के कारण बाहर फेंक देते है। इन्हे बचने के लिए तेज़ स्पीड से चलना ज़रूरी होता है। इनकी गति से बढ़ती गर्मी फ्यूजन होने तक करोड़ डिग्री तक पहुंच जाती है। लेकिन सूर्य देव की कोरोना लेयर उसे करोड़ डिग्री तक नही पहुंचने देती है। सूरज अपने कोरोना के कारण इतनी हीट प्रोड्यूस करता है कि जब फ्यूज होते है तो भारी न्यूक्लियर को जन्म देते है उसके साथ एनर्जी रिलीज करता है। इस प्रोसेस को
“नुक्लेअर फ्यूजन” कहते है इसमें से निकलने वाली ऊर्जा सबसे साफ होती है ना कोई पॉल्युशन न कोई जहरीला पन होता है। इसलिए भारत के इसरो को अपने ही बल पर भारत में न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर का निर्माण करना चाहिए क्योंकि अमेरिका भी अपना नासा सोलर प्रोब पहले ही भेज चुका है। अगर अकेले दम पर सम्भव नही तो अमेरिका या अन्य किसी देश के साथ मिलकर ये काम अतिशीघ्र करना चाहिए।

विचारक

श्री गुरुजी भू

(विश्व चिन्तक, प्रकृति प्रेमी, मुस्कान योग के प्रणेता )

 

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