फिरोजाबाद।
इस्लाम धर्म के चौथे ख़लीफा(प्रतिनिध) मौला अली के जन्म दिन के शुभ अवसर पर साहित्यक संस्था ,सालिम इंटरनेशनल के तत्वावधान में लेबर कालौनी में स्थित बैतुल अली (निवास स्थल )के हसन गार्डन में साहित्यकार डाक्टर सालिम शुजा अंसारी की दसवीं रचना”हैदर”और डाक्टर मुजीब शहज़र की आठवीं किताब “शीशा,पत्थर,फूल” का विमोचन बहुत धूमधाम से हुआ जिसमें शहर तथा बाहर के मशहूर साहित्यकारौं और सूफियों ने भाग लिया।
कार्य क्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर मौहसिन अब्बास ने की तथा मुख्य अतिथ आगरा के मशहूर शायर अमीर अहमदजाफरी,का़यम मैंहदी रामपुर, मुशर्रफ़ हुसैन महज़र,मीम खा़लिद अंसारी, उवैस जमाल शम्सी,कमाल अहमद और डाक्टर मुहम्मद हुसैन दिलकश थे।
दोनौं किताबों का विमोचन मियां सूफी अज़ीज़ अहमद, मियां अजी़जुल्लाह साहब और कई उस्ताद शायर,कवि के हाथौं किया गया। तथा कार्यक्रम का संचालन मशहूर शायर हाशिम फ़ीरोज़ा बादी ने किया।
किताब के खूबसूरत विमोचन के बाद सभी साहित्यकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर समां बांध दिया ,
सबसे पहले आकिफ़ शुजा ने हम्द (खु़दा की तारीफ) पेश करते हुए कहा ”
“मैं करूं तारीफ़ तेरी जु़लजलाल-
क्या मिली ओकात मेरी क्या मजाल”
उसके बाद कलीम नूरी ने नात पढ़ते हुए कहा,’
“जब भी नामे रसूल आया है–
आंधियों ने भी सर झुकाया है,”
उस्ताद शायर मौहसिन अब्बास ने यूं फरमाया'”
“सारा जहांन पढ़ने लगा या अली अली
होठों पे सबके बस है तराना अली अली”
मुशर्रफ़ महज़र अलीगढ़ ने यूं कहा,
“हम अंधेरों के दरमियां महज़र–
जी़स्त को माहताब कर लेते,”
साहित्यकार हाजी असलम अदीब का ये दोहा खूब पसन्द किया गया,’
“फितरत इनकी है अलग उनके अलग उसूल
फिर भी बैठे एक जगह शीशा पत्थर फूल”
हाशिम फी़रोजा़बादी ने यूं कहा,
“मेरा यकीं है यारो कोई फल्सफा नहीं है —
मौला अली के जैसा कोई दूसरा नहीं है’
अलीगढ़ के उस्ताद शायर डाक्टर मुजीब शहज़र ने यूं फ़रमाया,
“खुशफि़क्र, खुश बयान है और खुशनसीब है–
सालिम शुजाअ उर्दू ज़ुबां का रईस है”
आगरा की कवयित्री डॉक्टर शीरीन जैदी ने पिता के लिये कविता पढ़ी –
“प्रिया पिता मधुबन तट पर
आए नहीं तुम उर से सट कर
खुल के मुस्कुराने को
स्वविहाग गाने को
स्वसंस्रति जी पाने को
कर्मठता को झटक कर
आए नहीं तुम उर से सट कर
प्रिया पिता मधुबन तट पर”
डाक्टर हालिम शुजा ने यूं बयां किया
,’जब से हुसैनियों की तरफ़ हो गया हूं मैं —
तब से यजी़दियों का हदफ़ हो गया हूं मैं,”
मुख्य अतिथि अमीर अहमद जाफरी ने यूं फ़रमाया”
“बेशक नमाज दीने नबी का सुतून है
बुग़्जे अली हो दिल में तो सजदों से क्या मिले”
इसके अलावा डाक्टर कमाल अहमद ,हसनैन शिकोहाबाद और तमाम साहित्यकारौं ने अपने कलाम से महफ़िल को
नूरानी बना दिया,
साहित्यिक संस्था बज़्मे फिरोगे अदब की तरफ़ से ,अमीर अहमद जाफरी, मौहसिन अब्बास,मुजीब शहज़र, मुशर्रफ़ महज़र ,और कई साहित्यकारों को स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।
अंत में हाजी असलम अदीब ने सभी शायरौं, कवियों ,अतिथियों और दर्शकों का शुक्रिया अदा किया,
कार्य क्रम में आतिफ शुजा, जीशान साहब, ज़ियाउल हक़,मैराज अब्बास, शेरू भाई एडवोकेट, मिन्टू, रूमान, अज़हर भाई मो०सलीम, आमिर,फ़राज़ अलीगढ़ आदि की उपस्थिति सराहनीय रही ।