शेरनी राणी रुदाबाई के अदम्य साहस की कहानी

 

*सुल्तान बेघारा का सीना फाड़ दिया था इस रानी ने* :
वाघेला राजपूत की *शेरनी राणी रुदाबाई के अदम्य साहस की ये कहानी* आपके रोंगटे खड़े कर देगी *..*…

भारत की मिट्टी कण कण से शेर, शेरनियों को जन्म दिया हैं, समय समय पर आसुरों का दमन करने भारत माता को मुक्त करवाने एवं भारत की संस्कृति कला मंदिरों की रक्षा के लिए नर से लेकर नारी तक योद्धा बनी इसलिए भारत भूमि को कहा जाता हैं *वीर भोग्य वसुंधरा ..*…

आधुनिकता का दंभ भरने वाली पीढ़ी कौन कहता है हिन्दु धर्म में स्त्रियों को स्वतंत्रता नहीं थी?इतिहास न पढ़ने वालों कमअक्ल लोग ही ऐसा कह सकते है, रानी रुदाबाई को शस्त्र उठाने की स्वतंत्रता थी, इससे ज्यादा और क्या स्वतंत्रता किसी मनुष्य को दी जा सकती है!?!?!?

*मेरा तो यही मत है* कि आजकल की मिलने वाली स्वातंत्र्यता (नैतिकता=छूट) से यह स्वतंत्रता जो बहुजन हिताय एवं बहुजन सुखाय थी वह काफी अच्छी है *.*. जिसने सुल्तान बेघारा की सीने को फाड़ कर दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बीच में टांग दिया था एवम् दूसरी ओर धड़ से सर अलग करके पाटन राज्य की बीचों बीच टांग दिया था *..*…

१५वीं शताब्दी ईसवीं सन् १४६०-१४९८ पाटन राज्य गुजरात से कर्णावती (वर्तमान अहमदाबाद) के राजा थे राणा वीर सिंह वाघेला, यह वाघेला राजपूत राजा की एक बहुत सुन्दर रानी थी जिनका नाम था रुदाबाई (उर्फ़ रूपबा) पाटन राज्य बहुत ही वैभवशाली राज्य था इस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे, पर कामयाबी किसी को नहीं मिली; सन् १४९७ पाटन राज्य पे हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की ४०००० से अधिक संख्या की फ़ौज २ घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई !!!!!

राणा वीर सिंह वाघेला की फ़ौज २६०० से २८०० की तादात में थी क्योंकि कर्णावती और पाटन बहुत ही छोटे छोटे दो राज्य थे इनमें ज्यादा फ़ौज की आवश्यकता उतनी नहीं होती थी राणा जी के रणनीति ने ४०००० की जिहादी लूटेरों के फ़ौज को धुल चटाया थी, परन्तु द्वितीय युद्ध में राणा जी के साथ रहने वाले निकटवर्ती मित्र धन्नू साहूकार ने राणा वीर सिंह को धोखा दिया एवं सुल्तान बेघारा के साथ मिल कर राणा वीरसिंह वाघेला को मार कर उनकी स्त्री एवं धन लूटने की योजना बनाई *..*…

सुल्तान बेघारा ने साहूकार को बताया अगर युद्ध में जीत गए तो जो मांगोगे दूंगा, तब साहूकार की दृष्टि राणा वाघेला की सम्पत्ति पर थी और सुल्तान बेघारा की नज़र रानी रुदाबाई को अपने हरम में रखने की एवं पाटन राज्य की राजगद्दी पर आसीन होकर राज करने की थी !!!!!

धन्नू साहूकार जा मिला सुल्तान बेघारा से और सारी गुप्त जानकारी उसे प्रदान कर दी, जिस जानकारी से राणा वीर सिंह को परास्त कर रानी रूपबा एवं पाटन की गद्दी को हड़पा जा सकता था *.*. सन् १४९८ ईसवीं (संवत् १५५५) दो बार युद्ध में परास्त होने के बाद सुल्तान बेघारा ने तीसरी बार फिर से साहूकार से मिली जानकारी के बल पर दुगनी सैन्यबल के साथ आक्रमण किया, राणा वीर सिंह की सेना ने अपने से दुगनी सैन्यबल देख कर भी रणभूमि नहीं त्यागी और असीम पराक्रम और शौर्य के साथ लड़ाई लड़ी, जब राणा जी सुल्तान बेघारा के सेना को खदेड़ कर सुल्तान बेघारा की और बढ़ रहे थे तब उनके भरोसेमंद साथी धन्नू साहूकार ने पीछे से वार कर दिया, जिससे राणा जी की रणभूमि में मृत्यु हो गयी !!!!!

साहूकार ने जब सुल्तान बेघारा को उसके वचन अनुसार राणा जी की धन को लूट कर उनको देने का वचन याद दिलाया तब सुल्तान बेघारा ने कहा *एक गद्दार पर कोई ऐतबार नहीं करता हैं गद्दार कभी भी किसी से भी गद्दारी कर सकता हैं .*. सुल्तान बेघारा ने साहूकार को हाथी के पैरों के तले फेंक कर कुचल डालने का आदेश दिया और साहूकार की पत्नी एवं साहूकार की कन्या को अपने सिपाही के हरम में भेज दिया, (और हर गद्दार का यही हाल होता जिहादी यवनों के लिए हर गैर मुसलमान काफ़िर ही होता है चाहे कितना भी उनके तलवे चाट लें, आज के हिन्दू नेताओं तुम भी इतिहास को मनन करों)

सुल्तान बेघारा रानी रूपबा को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर १०००० से अधिक लश्कर लेकर पंहुचा, रानी रूपबा के पास शाह ने अपने दूत के जरिये निकाह प्रस्ताव रखा, रानी रूपबा जी ने महल के ऊपर छावणी बनाई थी जिसमे २५०० धनुर्धारी वीरंगनायें थी, जो रानी रूपबा जी का इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी; रानी रूपबा जी न केवल सौंदर्य की धनी ही नहीं थी बल्कि शौर्य और बुद्धि की भी धनी थी उन्होंने सुल्तान बेघारा को महल द्वार के अन्दर आने को कहा सुल्तान बेघारा वासना ने अंधा होकर वैसा ही किया जैसा राणी जी ने कहा, और राणी जी ने समय न गंवाते हुए सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर उतार दिया और उधर छावनी से तीरों की वर्षा होने लगी जिससे शाह का लश्कर बचकर वापस नहीं जा पाया, सुल्तान बेघारा को मार कर रानी रूपबा ने सीने को फाड़ कर दिल निकाल कर कर्णावती शहर के बीच में टांग दिया था और उसके सर को धड़ से अलग करके पाटन राज्य के बीच टंगवा दिया साथ ही यह चेतावनी भी दी गई कि कोई भी आततायी भारतवर्ष पर, या हिन्दू नारी पर बुरी नज़र डालेगा तो उसका यही हाल होगा !!!!!

रानी रूपबा जी इस युद्ध के बाद जल समाधी ले ली ताकि उन्हें कोई और आक्रमणकारी अपवित्र न कर पाएं रानी रुदाबाई की २५०० धनुर्धारी वीरांगनाओं ने सुल्तान बेघारा के १०००० के लश्कर को परास्त किया था इस भयंकर युद्ध को इतिहास से मिटा दिया गया एवं मनगढ़ंत कहानी को इतिहास बना दिया गया !!!!!

सुल्तान बेघारा के निकाह के प्रस्ताव को रानी रुदाबाई जी ने अडालज बावड़ी नामक पानी संग्रह करने का कुआँ बनाने के लिए मान लिया था, जिससे कृषि एवं राज्य में पानी की समस्या कभी न आये परन्तु यह इतिहास सम्पूर्ण गलत हैं क्यूंकि अडालज बावड़ी में मोहनजोदड़ो कला का इस्तेमाल किया हुआ हैं मोहनजोदड़ो सभ्यता *कालीन कला केवल हिन्दू इस्तेमाल करते थे*, रानी रूपबा से सुल्तान बेघारा के साथ हुए युद्ध को शादी में परिवर्तित कर दिया गया पर कहते हैं न हर झूठ का अंत होता हैं वैसे ही इस झूठ का भी अंत यही होता हैं !!!!!!!!!
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