परिवर्तन सृष्टि का मूल नियम है, हम सब परमात्मा के परमाणु ऊर्जा है।

परिवर्तन संसार का मूल नियम है.।

विश्व में हर पल हर क्षण हर स्थान पर परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन ही सृष्टि का एक ऐसा मूल नियम है। जिसमें हम सब जीव जंतु मानव। दानव और सृष्टि के समस्त जीव जगत चाहे वह जड़ हो या चेतन? दोनों ही आपस में बंधे हुए हैं। परिवर्तन के नियम से बंधे हुए हैं। परिवर्तन का नियम कहता है कि केवल पृथ्वी ही नहीं पूरा हमारा सौरमंडल। हमारी आकाश गंगा हमारी अवंतिका हमारी निहारिका सब एक दूसरे से बंधे हुए हैं। पूरा ब्रह्मांड अर्थात पूरे ब्रह्माण्ड का कण कण सब एक दूसरे से बंधे हुए हैं और हर पल हर क्षण परिवर्तित हो रहे हैं। इसलिए परिवर्तन ही सृष्टि का मूल नियम माना गया है। यह केवल मेरे कह देने मात्र से नहीं वरन अलग-अलग चरणों में अलग-अलग तरीके से वैज्ञानिकों ने शोध करके जो भी पाया। उसमें यही सामने आया कि परिवर्तन हर पल हर क्षण कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में होता ही रहता है। अब हम इससे आगे जब देखते हैं। तो परिवर्तन से ही सृष्टि का संचालन होता है। परिवर्तन से सृष्टि का, नव सृष्टि का सृजन होता है। और परिवर्तन से ही कुछ पुरानी चीजों को समाप्त किया जाता है। इसलिए सृजन और समापन दोनों की बीच की कड़ी है परिवर्तन। अगर परिवर्तन नहीं होगा तो हमारी नई पीढ़ी नहीं आएगी। नए जीव नहीं आएंगे। नव सृष्टि की संरचना नहीं होगी और पुराने ही अगर रहेंगे तो परिवर्तन का नियम लागू नहीं होगा तो ऐसा होता नहीं है। सदैव पुरानी चीजें समापन की ओर चलती है। हर चीज की, हर व्यक्ति की, हर जीव की, हर ग्रह की, हर नक्षत्र की, यहां तक कि ब्रह्मांण्ड की भी अपनी एक आयु है। सब उसी आयु में बंधे हुए हैं। इसलिए कहा गया है कि परिवर्तन सृष्टि का नियम है।

जीवन परिवर्तनों से ही बना है।

किसी भी परिवर्तन से घबराएं नहीं,

बल्कि उसे स्वीकार करे।

कुछ परिवर्तन आपको सफलता दिलाएंगे, कुछ नया पाठ सिखायेंगे। तो कुछ सफल होने के गुण गुनगुनाएंगे और विचारों से आपकी छवि की श्रेष्ठ झलक दिखलाएंगे। कुछ आपका नवजीवन बनाएंगे, नई उमंगों को आपके जीवन में भरेंगे। हो सकता है कुछ  परिवर्तन विफलता भी दिला दें। क्योंकि कुछ ना कुछ परिवर्तन सदैव होता रहता है। विफलता और सफलता कई बार हमारे हाथ में नहीं होती है। उस परमपिता परमात्मा के हाथ में होती है। वह हमें किधर ले जाना चाहता है, कई बार हम उन बातों से अनजान अनभिज्ञ रह जाते हैं।

*जीवन प्रभु कृपा से चलता है। ब्रह्माण्डीय ऊर्जा सदैव .शिष्ट से शिष्टता और श्रेष्ठ से श्रेष्ठता अर्थात अधोगामी से ऊर्ध्वगामी बनाने में लगी रहती है।  हम परम मंजिल ईश्वर दर्शन द्वारा अंत: करण में सच्चिदानंद को हृदयांगन में विराजित कर इस देव- दुर्लभ मानव तन द्वारा महरास का नृत्य करे, चूंकि जीवन एक नृत्य है, जीवन एक ऊर्जा है, और नृत्य ईश्वरीय ऊर्जा संग हो तो महारास अन्यथा सर्वनाश!

श्रीहरि महिमा सबसे आनन्दित है, जिसने कई व्यभिचारियो को भी भवसागर से पार उतार दिया।
श्री हरि का चिंतन ही सबकी चिंता हरेगा, विषय- विकारों का भी कंश (दंस) मरेगा, हरि कृपा से हर कोई जीव भव से पार उतर जाायेगा।

परमपिता परमात्मा ही सबका सबका साथी है। सबके अंदर विराजमान है और उस परमपिता परमात्मा को नासमझी में हम बाहर ढूंढने लगते हैं अपने अंतःकरण में नहीं खोज पाते तो बाहर ढूंढने लगते हैंं। बाहर तो कण कण में है ही लेकिन सबसे पहले हमें अपने अंतःकरण में, हमें अपने अंदर अपने मन में, अपने हर तरीके से उस आत्मा को खोजना है। ताकि हम अपने आप को समझ सके मैं कौन हूं, मैं क्यों आया हूं? मेरा अस्तित्व क्या है? यह सब जान लेने मात्र से हमारा उद्धार हो जाता है और हम सब विफलताओं को सफलता में परिवर्तित करने में सफल हो जाते हैं। जिन जिन से हम दूर भागते हैं जिन समस्याओं से हम डरते हैं इसलिए हम सबका एक ही समाधान है कि हम अपने परमात्मा को अपने आसपास देखें महसूस करें उसका आभास करें और उस बात को अपने अंदर महसूस करके देखें कि हां वह मेरे पास है। मैं ही हूं और मेरे अंदर समाहित है। मेरे कण कण में, मेरे रोम रोम में परमात्मा समाहित है।

हम सब प्रभु की लीला के परमाणु हैं अनु है, अंश हैं। उसकी लीला के सामने समस्त जगत नतमस्तक हैं। हमारा अस्तित्व उसी परमपिता परमात्मा से है। उसी प्रभु से है।  इसलिए हमें क्रोध, अहंकार, काम, लोभ, मोह सभी को छोड़कर आनंदित रहना चाहिए। उस परमपिता परमात्मा का प्रतिपल, प्रतिक्षण धन्यवाद करते रहना चाहिए।

श्री गुरुजी भू

(प्रकृति प्रेमी, विश्व चिंतक, मुस्कान योग के प्रणेता, फिल्मकार, मोटिवेशनल गुरु, विश्व मित्र परिवार के  संस्थापक। प्रकृति परिवार एवं वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक)

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