अस्तित्व की आवाज़ है ॐ…,
यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि ॐ के जाप का हेल्थ बेनिफिट तभी मिलेगा, जब सही तरी़के से इसका उच्चारण व जाप किया जाए।
ॐ के स्वास्थ्य लाभ
ॐ के उच्चारण से जो फ्रिक्वेंसी पैदा होती है, उसका सकारात्मक असर हमारे शरीर व मन पर पड़ता है, साथ ही ॐ के उच्चारण के व़क्त जो ध्वनि नाभि से आती है, उन सबका असर शरीर के प्रेशर पॉइंट्स पर पड़ता है, जिससे हम हेल्दी और एनर्जेटिक महसूस करते हैं।
ॐ के जाप का साइंटिफिक कनेक्शन इसी बात से साबित होता है कि हाल ही में नासा ने सूर्य की ध्वनि को यूनिवर्स में रिकॉर्ड करके उसे कंप्रेस किया, ताकि हम उसे सुन सकें. सुनने पर यह पूरी तरह से साबित हो गया कि यह ध्वनि ठीक वही मंत्र है, जिसका वर्णन वेदों में हज़ारों वर्ष पूर्व किया गया है और यह मंत्र है- ॐ जिसे लगातार सुनने पर एक विशेष प्रकार का कंपन महसूस होता है. यानी नासा ने अब इस मान्यता की पूरी तरह से पुष्टि कर दी है कि मंत्रों का कितना गहरा प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़ता है।
ॐ के सही जाप करने से न स़िर्फ मानसिक शांति मिलती है, बल्कि कई शारीरिक समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है.
ॐ के जाप से शरीर के टॉक्सिन्स निकल जाते हैं.
वोकल कॉर्ड और गले की मांसपेशियों को मज़बूती मिलती है. ख़ासतौर से बढ़ती उम्र में यह और भी फ़ायदेमंद है.
ॐ के नियमित उच्चारण से जो कंपन पैदा होता है, उसका असर वोकल कॉर्ड और साइनस पर भी पड़ता है.
यह रक्तचाप को नियंत्रित करता है. पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है.
थकान को मिटाने का बेहतरीन उपाय है कि कुछ देर ॐ का उच्चारण किया जाए.
कुछ लोगों के निजी अनुभव तो यह भी कहते हैं कि ॐ के जप से उनका वज़न भी नियंत्रित रहता है, क्योंकि इसके वाइब्रेशन्स पूरे शरीर को प्रभावित करते हैं और बढ़ते वज़न को कम करते हैं.
थायरॉइड नियंत्रित रहता है. ॐ के फ़ायदों के बारे में और जानकारी देंगे।
शिव का विश्व, विश्व के शिव
पश्चिम भी गाता रहा है ॐ नमः शिवाय
संजय तिवारी
ईसा और इस्लाम से पहले भारत के बाहर की दुनिया मे होती थी केवल शिव की पूजा। बात कथा की नही है। हकीकत है। उतनी ही जितनी कि सूर्य, चंद्रमा, धरती, आकाश, वायु और जल की उपस्थिति है। यह जानकारी आपको चौंका सकती है, या इस पर आपको शायद विश्वास न हो लेकिन पूरी प्रमाणिकता के साथ लिख रहा हूँ। अवश्य पढ़िए।
धरती पर सबसे ऊंचा शिवलिंग तुर्की के बाबलिन शहर में आज भी है। इसकी ऊँचाई 1200 फुट है। मक्का में दो शिवलिंग हैं। एक मक्केश्वर महादेव और दूसरा जमजम कूप में। जो जमजम कूप में शिवलिंग है उसकी पूजा खजूर की पत्तियों से होती है।
स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में स्वर्ण आच्छादित विशाल शिवलिंग मौजूद है। ब्राजील में हजारों शिवलिंग हैं। हेद्रपॉलिस नगर में 300 फुट ऊंचा शिवलिंग है। यूरोप के कॅरिथ शहर में शिव पार्वती का विशाल मंदिर है। मैक्सिको, कंबोडिया, जावा, सुमात्रा ,इंडोचायना जैसे देशों में शिवलिंग भारी संख्या में मौजूद है। खास बात यह है कि ईसा और इस्लाम के उद्भव से सैकड़ो साल पूर्व के शिलालेख भी इन शिव लिंगो के साथ मौजूद हैं जो यह भी प्रमाणित कर रहे हैं कि इस्लाम और ईसाइयत से पहले पश्चिम की दुनिया बहुत अच्छे से संस्कृत भाषा को जानती थी और दैनिक कामकाज में इसका उपयोग भी होता था।
इस पूरे विज्ञान को समझने का अब समय आ गया है। इस बार की महाशिवरात्रि से पूर्व लिखे जा रहे इस आलेख के एक एक शब्द की प्रामाणिकता सिद्ध है। इस सृष्टि में यह धरती नौ खंडों में विभाजित है। हालांकि आधुनिक कथित भूगोल महाद्वीपों की संख्या इससे कम बताता है। धरती के नौ खंडों का सीधा नियंत्रण शिव के पास है। शिव के नौ रुद्र इन नौ खंडों के अलग अलग अधिपति हैं । प्रत्येक खंड में 108 शैव क्षेत्र हैं। इसी प्रकार कुल नौ खंडों के लिए अलग से 108 शैव क्षेत्र है। ब्रह्मांड का नियंत्रण 12 राशियों में निहित है। ये 12 राशियां नौ खंडों को भी नियंत्रित करती हैं। तात्पर्य यह कि धरती यानी इस मर्त्यलोक के अधिपति शिव अपने नौ रुद्र रूप एवं 12 राशि रूप के माध्यम से समग्र पृथ्वी को 108 खंडों में और फिर नौ खंडों को अलग अलग 108 खंडों में ज्योति स्तंभ के माध्यम से नियंत्रित करते है।
यह सुखद है कि शिवलिंग के बारे में दुनिया के भरतेत्तर हिस्से में जहां कही से भी जानकारी मिल रही है वहां से शिवपूजा के प्रति श्रद्धा भाव के प्राचीन प्रमाण भी मिल रहे हैं। इटली में ईसाई समुदाय के लोगों द्वारा शिवलिंग की पूजा करने के प्रमाण उत्लब्ध है।अमेरिका खंड के कई क्षेत्रों में शिवलिंग की पूजा के प्रमाण मिले हैं। यहूदियों के भूभाग पर भी शिव की पूजा के प्रमाण हैं। अफ्रिदिस्तान, चित्राल, काबुल, बलख बुखारा आदि क्षेत्रों में सैकड़ो की संख्या में शिवलिंग मिले हैं। इनको वहां के लोग पंचशेर और पंचवीर के नाम से पुकारते हैं।
इंडिचाइना को प्राचीन काल मे चंपा देश के रूप में जाना जाता था। इसे प्राचीन भारतीय उपनिवेश माना गया है। यहां 92 शिलालेखों का अभी तक अध्ययन किया गया है। ये सभी शिव विषयक हैं। तीन शिलालेख विष्णु से सम्बंधित मिले है जबकि 5 लेख ब्रह्मा से संबंधित, दो शिलालेख शिव और विष्णु के संयुक्त और सात शिलालेख बुद्ध से संबंधित हैं। ये सभी शिलालेख शुद्ध संस्कृत भाषा में अत्यंत प्रभावशाली छंदों में हैं। इन शिलालेखों के सभी छंद उपलब्ध हैं लेकिन स्थानाभाव के कारण यहां दे पाना संभव नही है। खास पहलू यह है कि इन शिलालेखों के समय के सभी राजाओं की वंशावली भी उपलब्ध है लेकिन दुख इस बात का है कि भारत मे प्राचीन इतिहास विषय के अध्येताओं ने इस महत्त्वपूर्ण विषय पर बिल्कुल कार्य नही किया जबकि फ्रांस, हॉलैंड, स्कॉटलैंड, जावा, सुमात्रा, कंबोडिया आदि देशों में शिवलिंग को लेकर बहुत काम हुआ है जो यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि इस्लाम, ईसाइयत, बौद्ध, यहूदी आदि किसी भी पंथ या उपासनपद्धति के आविर्भाव से हजारों वर्ष पूर्व आदिदेव भगवान शिव की उपासना ही विश्व करता था। शिव भक्ति के आचार्य रेणुकाचार्य और पंचाचार्य जैसे विद्वानों और मनीषियों का उल्लेख भी शिव भक्ति संबंधी पश्चिमी साहित्य में पर्याप्त मिलता है। इन दोनो आचार्यो का उल्लेख यहां जगद्गुरू के रूप में किया गया है।
तात्पर्य यह कि पश्चिमी दुनिया मे शिव पूजा के भरपूर प्रमाण और शिव के प्रति श्रद्धा के साक्ष्य इतनी बड़ी मात्रा में मौजूद हैं कि भारत के किसी व्यक्ति को आश्चर्य चकित होने का कोई कारण नही है। पश्चिम बड़ी मस्ती में गाता रहा है – ॐ नमः शिवाय।।
(लेखक भारत संस्कृति न्यास, नई दिल्ली के अध्यक्ष और मासिक पत्रिका संस्कृति पर्व के संपादक हैं।
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शिव का विश्व, विश्व के शिव का अंश )