“भारतीय संविधान मे भारत की आत्मा, भारतीय संस्कृती नही है” क्योंकि हमारे तत्कालीन नेता बडे ही भोले थे। जो अपनी दूरदर्शिता का परिचय नही दे पाये थे। अंग्रेजों के षडयंत्र में फंसते ही चले गये।
सच तो ये है कि बाबासाहेब का लिखा संविधान कही छिपाकर अंग्रेजों ने अपना 1935 का लिखा संविधान भारत पर बाबासाहेब के नाम से थोप दिया था।
जिसकी पीडा बाबा साहेब अम्बेडकर को अन्त तक रही। उन्होंने कहा था कि इस संविधान से भारत का कभी भला नही होगा।
भारतीय संविधान इतना जटिल और लचिला है, कि इसे बनाने मे विश्व के सभी देशो से कुछ ना कुछ उठा लिया गया था। इस जटिल संविधान को बनाने मे किसी एक का कोई योगदान नही वरन् लगभग 300 लोग इस प्रक्रिया मे थे।
कई देशों के संविधान से उठा कर बना है भारतीय_संविधान।
भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्त्रोत हैं, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव भारतीय शासन अधिनियम 1935 का है। भारत के संविधान का निर्माण 10 देशो के संविधान से प्रमुख तथ्य लेकर बनाया गया है। भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। भारत के संविधान के निर्माण में निम्न देशों के संविधान से सहायता ली गई है।
(1)#संयुक्त_राज्य_अमेरिका: मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति, उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि एवं वित्तीय आपात, न्यायपालिका की स्वतंत्रता।
(2) #ब्रिटेन: संसदात्मक शासन-प्रणाली, एकल नागरिकता एवं विधि निर्माण प्रक्रिया, विधि का शासन, मंत्रिमंडल प्रणाली, परमाधिकार लेख, संसदीय विशेषाधिकार और द्विसदनवाद।
(3) #आयरलैंड: नीति निर्देशक सिद्धांत, नियम, विधिक कानून पैनल कोड , राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था, राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज-सेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन।
(4) #ऑस्ट्रेलिया: प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची का प्रावधान, केंद्र एवं राज्य के बीच संबंध तथा शक्तियों का विभाजन, व्यापार-वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता, संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक।
(5) #जर्मनी: आपातकाल के प्रवर्तन के दौरान राष्ट्रपति को मौलिक अधिकार संबंधी शक्तियां, आपातकाल के समय मूल अधिकारों का स्थगन।
(6) #कनाडा: संघात्मक विशेषताएं, अवशिष्ट शक्तियां केंद्र के पास, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति और उच्चतम न्यायालय का परामर्श न्याय निर्णयन।
(7) #दक्षिण_अफ्रीका: संविधान संशोधन की प्रक्रिया प्रावधान, राज्यसभा में सदस्यों का निर्वाचन।
(8) #सोवियत_संघ (पूर्व): मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान, मूल कर्तव्यों और प्रस्तावना में न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) का आदर्श।
(9) #जापान: विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया।
(10) #फ्रांस: गणतंत्रात्मक और प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता, बंधुता के आदर्श।
नोट: भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्त्रोत हैं, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव ‘भारतीय शासन अधिनियम: 1935 का है। जो अंग्रेजों ने ही लिखा था। अपने स्वार्थों की सिद्धि हेतु। भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं, जो 1935 ई० के अधिनियम से या तो शब्दश: लिए गए हैं या फिर उनमें थोड़ा सा ही परिवर्तन किया गया है।
भारत शासन अधिनियम, 1935 – संघीय तंत्र, राज्यपाल का कार्यकाल, न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग, आपातकालीन उपबंध व प्रशानिक विवरण।
इसलिए मेरे मन में बार-बार प्रश्न उठता है कि इस भारतीय संविधान में भारतीय संस्कृति अर्थात भारत की आत्मा कहां है? भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता और भारतीय समस्याओं को देखते हुए यह संविधान अंग्रेजों ने नहीं लिखा क्योंकि अंग्रेजों को अपनी स्वार्थ सिद्धि करनी थी। भारत में फूट डालो राज करो की नीति को ध्यान में रखते हुए और भविष्य में भारत उनसे सुदृढ़ ना हो जाए उन सब बातों का इसमें ध्यान रखते हुए यह संविधान लागू किया गया। हमारे नेता उस समय बहुत भोले थे। नासमझ तो नहीं कहेंगे लेकिन भोले थे जो अंग्रेजों के षड्यंत्र को समझ नहीं पाए। उन्होंने सोचा कि हमारी आने वाली पीढ़ी इन गलतियों को सुधार लेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि अब कोई भी छेड़छाड़ किसी भी वर्ग को बर्दाश्त नहीं होती। इस संविधान में भारतीय भाषाओं को इतना सम्मान नहीं मिला अंग्रेजी सभी पर हावी है। आज भी अपनी भाषा में अपने ही देश में अपनी ही न्याय व्यवस्था में न्याय नहीं पा सकते क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय में हमारी भाषा का आज भी कोई मोल नहीं है। वहां जाने के लिए हमें आज भी पराई भाषा गुलामी की भाषा में ही लिखना पड़ता है। उन वकीलों को भी वही भाषा पढ़ाई जाती है। मुझे मेरे ही देश में मेरी भाषा में न्याय नहीं मिलता।
अन्त में प्रश्न वही है कि संविधान में भारत की आत्मा भारतीय संस्कृति को सम्मान दिलाएं कौन ?
श्री गुरुजी भू