अमीर देश के गरीब लोग ? – श्री गुरुजी भू

भारत महान की लुटने की दासता

विश्व की सबसे प्राचीनतम सभ्यता भारत में है। विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा संस्कृत और संपूर्ण वैज्ञानिक, संपूर्ण सत्य भाषा संस्कृत भारत की देन है। यह भारत भूमि विश्व में सर्वाधिक वैज्ञानिक, सर्वाधिक शांतिप्रिय, सबसे अधिक हम दुनिया में प्यार करने वाले लोग हैं। दुनिया को प्यार करने वाले लोग अर्थात हम पूरे विश्व को अपना परिवार मानने वाले वसुधैव कुटुंबकम को अपनाने वाले लोग हैं। यह सभ्यता, यह संस्कार, जितनी भी हमारी बातें हैं वह सब संस्कार जो हैं वह सब के सब हमारे ऋषि-मुनियों की देन है। ये उन्होंने हमारे पूर्वजों में कूट कूट कर भरें थे।

फिर ऐसा क्या हुआ जो हम दास्तां की तरफ बढ़ गए? गुलामी की तरफ बढ़ गए सब कुछ संपन्न होते हुए भी हम गरीब कहलाने लगे। ऐसी कौन सी परिस्थितियां थी जिनके कारण हमें इन नामों से पुकारा जाने लगा? हमारे पूर्वजों ने हमारे ऋषि-मुनियों ने परिश्रम करके इतना सारा साहित्य घड़ा। इतने सारे शोध किए, अनुसंधान किए उनके तप बल ने पूरी सृष्टि में बहुत बडे विचारों को उन्नत किया। बहुत सा विज्ञान अवतरित किया और आज भी वह सारा विज्ञान यहां उपलब्ध है। आज का अत्याधुनिक विज्ञान भी उसका लोहा मानता है।

वर्तमान अमरीका आज से तीन सौ वर्षों पुराना देश है। केवल तीन सौ वर्ष किसी कौम के इतिहास में बहुत ज्यादा नहीं होते।

अमेरिका में बहुत मारकाट हुई थी वहां के मूल निवासियों के साथ। बहुत ही क्रूरता से उन्हें मारा गया था। वहां पर भी सभ्यता का परिवर्तन हुआ। 300 वर्षों पहले जो वर्तमान वहां सभ्यता है वह उन्नत हुई उससे पहले की सभ्यता सब तहस-नहस हो गयी। भारत की तरह ही विनाश हुआ। विनाश के बाद पुनः विकास हुआ और आज अमेरिका सर्वोच्च शिखर पर माना जाता है।

लेकिन तीन सौ वर्ष में अमरीका ने सारी दुनिया की सर्वाधिक संपत्ति और समृद्धि पैदा की है। और हम कोई दस हजार वर्ष पुरानी कौम हैं और भूखे क्यों मर रहे हैं। हमें विचार अवश्य करना चाहिएंं।

हमारे पास जमीन अमरीका से बुरी नहीं। अमेरिका में भी तीन सौ वर्ष पहले जो लोग रह रहे थे, अमरीकी, असली अमरीकी, रेड इंडियन वे तो गरीब ही थे, उनमें से जो बचे थे उनके परिवार तो आज भी गरीब हैं।

उसी जमीन पर गरीब थे, उसी जमीन पर दूसरे लोगों ने आकर इतनी संपत्ति पैदा कर ली।

एक जर्मनी विचारक काउंट कैसरलिंग हिंदुस्तान आया। बहुत बडा जर्मन विचारक था।  जर्मन वापस जाकर उसने एक किताब लिखी और उस किताब में उसने एक वाक्य लिखा।

वह पढ़कर बहुत हैरान होती है। उसने लिखाः

इंडिया इ.ज ए रिच लैंड, वेअर पुअर पिपुल लिव।

भारत एक अमीर देश है, जहां गरीब लोग रहते हैं। मैं बहुत हैरान हुआ। मैंने कहा, अगर देश अमीर है तो गरीब लोग कैसे रहते होंगे? और अगर गरीब लोग रहते हैं तो अमीर कहने का क्या मतलब है? क्या मजाक है?

लेकिन बात उसने ठीक ही कही है। देश तो अमीर है लेकिन रहने वाले भाग्यवादी हैं। और भाग्यवादी कभी अमीर नहीं हो सकते। यह भूल गए कि बिना कर्म के तो भाग्य भी साथ छोड़ देता है।

जबकि यहां भगवान की पूजा होती है। भगवान को भी मानते हैं और जितने भी भगवानों के अवतार हुए हैं वह सारे कर्मवादी हुए हैं। उन्होंने कर्म किए हैं अपने कर्मों से, अपने पुरुषार्थ से अपना नाम बनाया है। जो आज तक भी पूजे जाते हैं।

प्रभु श्री राम ने 14 वर्ष वनों में बिताए। अपने संस्कार, अपनी शिक्षा और अपने व्यवहार के कारण श्री राम आज तक पूजनीय बने हुए हैं। उन्होंने उत्तम कर्म किए।वनवासियों से मिले। वनों में गए, उन सब लोगों से वार्तालाप किया। वहां के दुख दर्द को समझा। वनवासियों के दुख दर्द को समझा। उनकी पीड़ा को सुना और जो भी समाधान जिसके लिए वह उस समय के अनुसार कर सकते थे उन्होंने किया। अंत में श्रीलंका जाकर रावण वध करके उन्होंने उस राक्षस से भी पृथ्वी को छुटकारा दिलाया।

देश के पास तो अनंत संभावना है। उसके साथ नदियां हैं, पहाड़ हैं, आकाश है, जमीन है, समुद्र है, सब है। इतनी विविध रूप से प्रकृति जमीन में किसी देश को उपलब्ध नहीं है। इतने विस्तार में इतने गहरे स्रोत वाला संभावना किसी के पास नहीं। लेकिन इतना गरीब आदमी जैसा हमारे पास है ऐसा भी किसी को उपलब्ध नहीं। भगवान ने खूब मजाक किया है। इतनी समृद्ध संभावनाएं दी थीं, तो इतना भाग्यवादी आदमी क्यों दिया? लेकिन वह भाग्यवादी आदमी अनंत संभावनाओं को ऐसा ही रिक्त छोड़ देता है और भूखा मर रहा है।
भाग्य को भारत के शब्दकोश से उखाड़ कर फेंक देना है। वह भारत के शब्दकोश में नहीं रह जाना चाहिए। तो हम एक नया समाज, एक नई दुनिया, और एक नया आदमी, जो संपन्न हो, सुखी हो, शांत हो और प्रभु को प्रेम भी दे सके, पैदा कर सकते हैं।

भगवान कृष्ण ने तो कहा है कि कर्म किए जा। कर्म करना मत छोड़ना। कर्म किए जा फल की इच्छा के बिना कर्म किए जा। फल की इच्छा ही मत करो लेकिन कर्म करो। तो ऐसी परिस्थितियों में भी कर्म करने की जहां शिक्षा मिलती है। उस देश में गरीबी कैसे टिक सकती है। कर्म के बल पर कर्म के विशाल कार्यक्षेत्र से हम अपने देश को सुखी समृद्ध संपन्न और विश्व गुरु बना पाए थे। आज भी हम वही स्थिति लाएं तो हम वैसे ही होंगे। क्योंकि दुनिया में आज भी हमारे ही देश के वैज्ञानिक दुनिया के देशों को अमीर बना रहे हैं। संसार की बड़ी-बड़ी कंपनियों को अमीर बना रहे हैं। आज हमारे देश में विकट परिस्थिति होने के कारण उनको बाहर जाना पड़ा। विदेश जाना पड़ा इसलिए हम गरीब बने हुए हैं। हमारे यहां के लोग उस बात को समझने को तैयार नहीं है। शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान बनकर रह गई है और संस्कार मिटते जा रहे हैं। संस्कृति की वैज्ञानिक पहचान खत्म करके संस्कृति का मजाक बनाना भी पूरी दुनिया को भारी पड़ रहा है। भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक संस्कृति है। ये पूजनीय संस्कृति है। उसका सम्मान होना चाहिए। विश्व में हम तभी विश्वगुरु बने रहेंगे। जब तक हमारी संस्कृति विज्ञान के आधार पर खरी उतरती रहेगी।

आवश्यक नहीं कि सभी मेरी बातें मान लें। किसी की बातें माननी जरूरी नहीं हैं। वह भी भारत की एक बीमारी है कि वह किसी की भी बातें मान लेता है। अपनो की माने या ना माने दूूूसरोंं की, विदेेेशियोंं की बडी शीघ्रता से मानते है।

 

विचार करें। हो सकता है कि सब गलत हो, हो सकता है कुछ ठीक हो। अगर आपके सोचने से कुछ उसमें ठीक आपको दिखाई पड़े तो फिर वह मेरा नहीं रह जाता, वह आपका अपना सत्य हो जाता है। और वे ही सत्य काम में आते हैं जो हमारे अपने विचार का फल हैं। और कोई सत्य काम में नहीं आते हैं।

उधार का सत्य असत्य से भी बदतर होते हैं। हमारे पास सिवाय उधार के सत्यों के और कुछ भी नहीं हैं। हमारी सभ्यता हजारों साल से है। हमें अपने सत्य पुनः खोजने पड़ेंगे। हर युग को, हर समाज को, हर व्यक्ति को, अपना सत्य खोजना पड़ता है। सत्य की खोज के साथ ही  एक तरफ धर्म और जाति में बटा हुआ समाज। जीवन की ऊर्जा जगती है। तभी सृजन की संभावना खुलती है।

यह भारत के विश्वगुरु बनने का उचित समय है। यह ऐसा समय है जब भारत एक दोराहे पर खड़ा है। एक तरफ धर्म और जाति में बटा हुआ समाज।  दूसरी तरफ सत्ता के लालची लोगोंं का बोलबाला।  बहुत से ऐसे संगठन जो भारत विरोधी ताकतों का काम कर रहे हैं जो केवल देश में देश के विरोध के लिए ही बने हुए हैं। उन संगठनों से जूझ कर, उनसे आगे बढ़कर, भारत को हमें विश्वगुरु बनाना हम सब का परम कर्तव्य बनता है।  मुसीबतों से डरने की आवश्यकता नहीं है, उनको विधिवत निपटाने की आवश्यकता है। हम सही दिशा में हैं। विकास की दिशा में है, लेकिन कुछ लोग इस विकास को विनाश में परिवर्तित करने पर लगे हैं। उनसे हमें सचेत रहना होगा उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले ऐसा हमारा मानना है और विकास की राह पर चला हुआ भारत पुनः विश्व गुरु बने इन्हीं शुभकामनाओं के साथ सभी को प्रणाम।

 

श्री गुरुजी भू

लेखक मुस्कान योग के प्रणेता है। प्रकृति प्रेमी, वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक। विश्व मित्र परिवार के संस्थापक है।

 

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