आओ लौट चले भारतीय सनातन संस्कृति के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की ओर

भारतीय सनातन संस्कृति विश्व कल्याण के लिए सम्पूर्ण वैज्ञानिक आधार आज भी खरी है।

भारतीय ऋषि-मुनियों ने सनातन संस्कृति को विश्व कल्याण के लिए सम्पूर्ण वैज्ञानिक आधार पर घडा था। किसी जाति धर्म का कोई भेदभाव नहीं था। बाद में आक्रांताओं ने लोगों में इतनी घृणा भर दी कि मानव को मानव का जाति व धर्म के नाम पर शत्रु बना डाला। बहुत ही वैज्ञानिक शोध और अनुसंधानों के उपरांत इस संस्कृति में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को संस्कारों के रूप में दिया गया। जो आज भी यथार्थवादी है। आज के इस छोटे से कोविड 19 जीवाणु ने सबको समझा दिया कि समस्त विश्व हमारा परिवार है। पूरे पृथ्वी के जीवोंं की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है, धर्म है।

आज सच में लग रहा है कि पूरा विश्व एक परिवार है। जो भारतीय संस्कृति का एक शब्द है वसुधैव कुटुंबकम। आज वह साक्षात चरितार्थ होता नजर आ रहा है। साक्षात दिख रहा है। उसका कारण है एक छोटा सा अदृश्य जीवाणु । वह भी प्रकृति का हिस्सा है। उस प्रकृति के हिस्से ने आज जो कोहराम मचाया है, वो प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वाले लोगों के साथ है। उनमें कुछ सच में खिलवाड़ कर रहे थे, लेकिन कुछ बिना मतलब ही मारे जा रहे हैं, बिना मौत मारे जा रहे हैं। तो यह प्रकृति का एक चमत्कार कह लो या उसका एक रूप कह लो। जिस प्रकृति से खिलवाड़ होता आया है। यह उसी के प्रकोप का परिणाम है।

महाबुद्धिमान, महाबली, विकसित, विकासशील, अत्याधुनिक तकनीकों से परिपूर्ण, पूरे ब्रह्माण्ड का ज्ञान रखने वाले मानव को एक सूक्ष्म से परजीवी ने घुटनो पर ला दिया ? या यूं कहें कि एक झटके में सारा अहंकार तोड दिया।

 

कुछ भी काम नही आ रहा है 

ना एटम बम काम आ रहे न पेट्रो रिफाइनारी ? आपका सारा विकास एक छोटे से जीवाणु से सामना नहीं कर पा रहा ??  क्या हुआ , शायद हमारी हेकड़ी निकल गयी ?? बस इतना ही कमाया था इतने वर्षों में ? कि एक छोटे से जीव ने घरो में बंदी बना दिया ???

मानवता के विनाश के, पृथ्वी के जीवो के विनाश के सारे साधन इस पृथ्वी पर मानव द्वारा तैयार किए जा रहे थे। मानवता के विकास को छोड़कर, मानवीय मूल्यों को छोड़कर सभी विनाश के साधन तैयार है।

कुछ लोग, कुछ देश हथियारों के व्यापार पर उतर आए थे। केवल भयादोहन करके, एक दूसरे को डराकर, एक दूसरे देश को डराकर हथियार बेचने से अर्थव्यवस्था चला रहे है। केवल हत्यारों के बल पर विश्व विजय चाहने वाले  देशों के लिए यह एक चुनौती है। प्रकृति ने उनके गाल पर एक करारा तमाचा जड़ दिया है, जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि केवल हथियार ही सब कुछ नहीं है। वरन प्रकृति का सम्मान, मानवीय मूल्यों का सम्मान करना अत्यंत आवश्यक है। ईश्वरीय किताब वाले लोग कहां चले गए,  जिन्हें अपनी किताबों पर भरोसा था जिनकी किताबों में उनके मसीहा, उन्हें उनके पैगंबरों ने सब कुछ लिख दिया था तो यह सोचने की बात है कि इसका उपचार कहां लिखा?? समझने की बात है। मानवता के हित में आज भी वापसी की आवश्यकता है।

मानवाधिकार के साथ मानव कर्तव्यों को भूल गये। आज उन कर्तव्यों को भी पूरा करना होगा। ये ही प्रकृति का सन्देश है।

 

 विश्वविजेताओं पर भी संकट है, सारी हेकडी निकल गयी ?

मध्य युग में पूरे यूरोप पे राज करने वाला रोम ( इटली ) नष्ट होने के कगार पे आ गया है , मध्य पूर्व को अपने कदमो से रोदने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ( ईरान , टर्की ) अब घुटनो पर हैं , जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था , उस ब्रिटिश साम्राज्य के वारिश बर्मिंघम पैलेस में कैद हैं , जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे , उस रूस के बॉर्डर सील हैं , जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं , जो पूरी दुनिया के अघोषित चौधरी हैं , उस अमेरिका में लॉक डाउन हैं और जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे , वो चीन , आज मुँह छिपाता फिर रहा है और सबकी गालियांं खा रहा है।

 

आज पूरे विश्व पर जो संकट है उससे संभालना होगा भारतीय संस्कृति के परम सत्य प्रकृति की ओर लौटना ही होगा।

अब ये सब आशा भरी नज़रो से देख रहे हैं हमारे ६८ वर्ष के महानायक की तरफ , उस भारत की ओर जिसका सदियों अपमान करते रहे , रोंदते रहे , लूटते रहे। जिसकी संपूर्ण वैज्ञानिक सनातन संस्कृति का भी अपमान करते रहे उसका मजाक उड़ाते रहे उसे सपेरों का देश बताते रहे।

ये सब किया हैं एक इतने छोटे से जीव ने जो दिखाई भी नहीं देता, मतलब ये की एक मामूली से जीव ने मानव को मानव की औकात बता दी।

क्या ये तो आरम्भ है ?
वैसे सच बता दूँ , तो ये कोरोना अंत नहीं, आरम्भ है , एक नए युद्ध का , एक ऐसा युद्ध जिसमेंं आपके हारने की सम्भावना पूरी है।

 

जैसे जैसे वैश्विक गर्मी बढ़ेगी , ग्लेशियरो की बर्फ पिघलेगी , आज़ाद होंगे लाखो वर्षो से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु , जिनका न आपको परिचय है और न लड़ने की कोई तयारी ही है। ये कोरोना तो एक झांकी मात्र है , चेतावनी है , उस आने वाली विपदा की , जिसे मानव ने जन्म दिया है।

मेनचेस्टर की औद्योगिक और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स संसार को अंत के मुहाने पे ले आयी है।

बधाई हो उन शैतानों को जो जाति, धर्म देश के नाम पर शैतानी करते रहे। पूरी मानव जाति को किसी ना किसी बहाने लडाते रहे।

जानते हैं, इस आपदा से लड़ने का तरीका कहाँ छुपा है ??

तक्षशिला के खंडहरो में , नालंदा की राख में , शारदा पीठ के अवशेषों में , मार्तण्डय के पत्थरो में। ऋषियों, मुनियों, वसुधैव कुटुम्बकम संदेशदाता भारत में।

सूक्ष्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है , ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है , और सदैव चलता रहेगा , इस से लड़ने के लिए के लिए हमने हर हथियार खोज भी लिया था , मगर मानव के अहंकार व लालच ने, स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ धर्मिता ने सब नष्ट कर दिया ।

क्या चाहिए था आपको???? स्वर्ण एवं रत्नो के भण्डार ?
यूँ ही मांग लेते, हम राजा बलि के वंशज और कर्ण के अनुयायी आपको यूँ ही दान में दे देते।
सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले समाज के लिए वे सब यूँ भी मूल्य हीन ही थे, ले जाते, हम देते।

आपने ये क्या किया , विश्व वंधुत्व की बात करने वाले समाज को नष्ट कर दिया ?
जिसका मन आया वही अश्वो पर सवार होकर चला आया , रोदने, लूटने, मारने, हर जीव में शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने।

कोई विश्व विजेता बनने के लिए तक्षशिला को तोड़ कर चला गया, कोई सोने की चमक में अँधा होकर सोमनाथ लूट कर ले गया , तो कोई किसी आसमानी किताब को ऊँचा दिखाने के लिए नालंदा की किताबो को जला गया , किसी ने उम्मत को जिताने के लिए शारदा पीठ टुकड़े टुकड़े कर दिया , तो किसी ने अपने झंडे को ऊंचा दिखाने के लिए विश्व कल्याण का केंद्र बने गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट कर दिया ।

आज करुण निगाहों से देख रहे हैं उसी पराजित, अपमानित , पद दलित , भारत भूमि की ओर , जिसने अभी अभी अपने घावों को भरके अंगड़ाई लेना आरम्भ किया है ।

किन्तु , हम फिर भी निराश नहीं करेंगे , फिर से माँ भारती का आँचल आपको इस संकट की घडी में छाँव देगा , श्रीराम के वंशज इस दानव से भी लड़ लेंगे , ऋषि दधीचि के पुत्र अपने शरीर का अस्थि मज्जा देकर भी आपको बचाएंगे ।

 

आज भी समाधान है हमारे पास, क्या आप अपना अहंकार छोडकर मानोंंगे?

किन्तु, मार्ग उन्ही नष्ट हुए हवन कुंडो से निकलेगा , जिन्हे कभी आपने अपने पैरों की ठोकरों से तोडा था।
आपको उसी नीम और पीपल की छाँव में आना होगा , जिसके लिए आपने हमारा उपहास किया था।
आपको उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना होगा , जिसे आपने अपने स्वाद का कारण बना लिया है।
उन्ही मंदिरो में जाके घंटा नाद करना होगा , जिनको कभी आपने तोडा था।
उन्ही वेदो को पढ़ना होगा, जिन्हे कभी अट्टहास करते हुए नष्ट किया था।
उसी चन्दन, हल्दी, तुलसी को मष्तक पर धारण करना होगा , जिसके लिए कभी हमारे मष्तक धड़ से अलग किये गए थे ।

ये प्रकृति का न्याय है और आपको स्वीकारना होगा। मानवीय हेकडी को हारना होगा।

फिर से समझों, इस दुनिया को अगर जीना है , तो सोमनाथ में सर झुकाने आना ही होगा, तक्षशिला के खंडहरो से माफ़ी मांगनी ही होगी, नालंदा की ख़ाक छाननी ही होगी। मानवीय मूल्यों पर आधारित शिक्षा शिक्षा प्रणाली को तुरन्त लागू करना होगा।

प्रकृति का सम्मान करना ही होगा। हर जीव का सम्मान करना होगा। अपने अन्तर में परमात्मा को जगाना होगा।

जहाँ से अनेकानेक सूत्र निकले थे।

जैसे

वसुधैव कुटुम्बकम,

सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामया ,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत् ..।

 

श्री गुरुजी भू

(विश्व चिंतक, मुस्कान योग के प्रणेता, विश्वमित्र परिवार के संस्थापक)

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