अपनी व अपनोंं की सुरक्षा मेरा ही दायित्व, पूरी निष्ठा से निभाये

 

आज विश्व में कोरोना वायरस सर चढ़कर बोल रहा है। पूरा विश्व बंदी की ओर है। प्रतिदिन नए-नए केस सामने आ रहे हैं। प्रतिदिन मृत्यु दर बढ़ती जा रही है। उसका आंकड़ा बढ़ रहा है। और कुछ मूर्ख लोग ऐसे हैं जो समझने को तैयार नहीं है। इसी विषय को ध्यान में रखते हुए एक पुरानी कथा आज आपके सामने प्रस्तुत है। इस को ध्यान से पढ़ें, समझें और इस पर विचार करके अपने हिस्से की भूमिका पूरी निष्ठा से अवश्य निभाये। क्योंकि अपनी सुरक्षा का दायित्व अपने ही हाथ होता है।

 

अपनी सुरक्षा अपने हाथ। 

कथा रोचक है।

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से एक स्वर गूँजा  कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक – एक लोटा दूध उस कुएं में
डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी। लोगों का मरना भी बन्द हो जायेगा। राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक लोटा दूध डाला जाना अनिवार्य है। अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक लोटा “पानी” डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक लोटा पानी कुंए में डाल दिया।

 

अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है।
दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।
दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के
लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।
मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है। तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच के कारण से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं।

पिछले 70 वर्षों में भारत में चुनाव में भी कुछ इसी तरह के लोगों ने देश को उन्नति नही करने दी।

अब कोरोना महामारी में भी कुछ घटिया सोच वाले लोग रोग को फैलाने में लगे है।

अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से का दायित्व निभाने लग जायें तो पूरे देश में भी ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज हमें आवश्यकता है।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि घर में रहकर कोरोना को हराने मे सहयोग करें। 21 दिन या और भी 21 दिन घर में रहकर हमें अपने आप को बचाना है। किसी ओर को नहीं। किसी के बहकावे में ना आएं उन सब धार्मिक लोगों से भी आशा है कि जो धर्म के ठेकेदार जमात वाले जमाती है, जो लोगों को भड़काने में या इस रोग को फैलाने में लगे हैं उनसे भी सावधान रहें। सचेत रहें क्योंकि वह किसी धर्म के नहीं है वह मानवता के शत्रु हैं। इसलिए उनसे सचेत रहना भी अत्यंत अनिवार्य है। सचेत रहें। सुरक्षित रहें। घर में ही रहेंं। जान है तो जहान है।

 

(लेखक: श्री गुरुजी भू मुस्कान योग के प्रणेता, विश्व चिंतक, प्रकृति प्रेमी, विश्व मित्र परिवार के संस्थापक, वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक है।)

 

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