दान/सहायता सुपात्र देखकर ही करें। – गुरुजी भू

दान सुपात्रों को करना चाहिए।

 

एक समय किसी राज में सेठ दयाराम जैन रहते थे, एक बार क्षेत्र में अकाल पड़ा। जब 2 महीनो बाद लोगो के पास खाने को अन्न नहीं रहा।
तब
राजा ने मुनादी करवाई की जो सेठ, साहूकार सक्षम है वो अन्न, धन दान करेंं और राजकोष में धन- अन्न जमा करवाये।

सेठ दयाराम ने
1100 मन गेहूं, 600 मन दाल,  25 मन घी, 50 मन तेल और 6000 स्वर्ण मुद्राएं राजकोष में दान दी।

5 माह बाद अकाल पूर्ण हुआ।
तब सेठ दयाराम को पता चला कि उनके पास जैन मंदिर जहाँ वो दर्शन के लिए जाते थे, उसके पुजारी के 2 बेटे भूख से मर गए।

उसके कोठी के पास का वीरसिंह जो सेठ के बचपन का मित्र था उसने भुखमरी से दम तोड़ दिया।

यह सुनकर उसे राज तंत्र पर बहुत रौष आया।
वह राजा के पास गया और राजा से कहा कि मैंने इतना दान दिया पर दान की चीज़े मेरे आस पास तक ही नहीं पहुँची।

राजा बोले “हे दानवीर आप के दान की मैं प्रशंसा करता हूँ किन्तु राज्य का विस्तार इतना बड़ा है कि जो हम तक और हम जिन तक पहुंच पाये हमने मदद कि कितुं
आपके आस पास के लोग भुखमरी से मरे उसका कारण शायद यह हो सकता है।

आपके रिश्तेदार, नौकर-चाकर, मंदिर का माली, पुजारी और मित्र और समाज के लोग आर्थिक रूप से सक्षम नहीं थे फिर भी शायद वो आपसे कहने में हिचकिचा रहे थे और आपने उनसे पूछा ही नही।

अतः आपको राजकोष में दान तो देना चाहिए था किंतु अगर आप पहले अपने आस पास अपनों से पूछते फिर उसकी पूर्ति के उपरांत राजकोष में देते तो आपको अधिक संतुष्टि मिलती।

मित्रो यही स्थिति हमारी है।
दानवीरोंं,
वर्तमान समय में इस वैश्विक महामारी के समय देखने में आ रहा है कि कुछ लोगों के पास आवश्यता से अधिक सहायता सामग्री पहुँच रहीं हैं। जो वे वापस बाजार में बेचने के लिए पहुँच रहे हैं। तो कुछ तैयार खाना सड़कों के किनारे फैंका हुआ मिल रहा है।
दानदाता अपना कर्म कर रहा है परन्तु दान सुपात्र तक नहीं पहुंच रहा है।
अतः
कृपया अन्यथा नहीं लेवे, भारतीय सनातन संस्कृति में  दान करना एक अच्छी परम्परा है, परन्तु बड़ा दान करने, भण्डारे चलाने, ग्राम-शहर में घूम घूम कर दान देने से पहले अपने आसपास, अपने मित्र, सहयोगी छोटे कारोबारियों एवं मध्यम वर्ग के लोगों का भी ध्यान दें।
जिनके पास न तो सरकारी सहायता पहुंचती है, न राजनेता पहुंचते है और लाज शर्म के मारे वो किसी को कह नही पाते हैं। ऐसे लोगों से सम्पर्क करे, उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलकर सहायता का अनुरोध करें, अगर फिर भी वो शर्म करते हैं तो उन्हें कुछ रकम व्यक्तिगत उधार दे कर सहायता करेेंं।

नियमानुसार सहयोग करें, सहायता करें।

हमें पहले घर-परिवार
हमारे कर्मचारी
फिर पड़ोस
फिर मोहल्ला
फिर मंदिर के लोग
फिर हमारे रिश्तेदार
फिर शहर
फिर प्रदेश
फिर देश
फिर विश्व

अपनी प्राथमिकता निर्धारित करे और सेठ जैसी गलती करने से बचे।

क्योंकि आज के सेठ आप ही है।
प्राथमिकता आपको आपके दान की आत्मसंतुष्टि देगा और
यही मानवता और देश के प्रति आपकी संजीवनी सच्ची ज़िम्मेदारी होगी।

नर सेवा ही नारायण सेवा है।

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