मुम्बई बांद्रा की घटना के बन्दी विनय दुबे तो एक मोहरा मात्र है। ये किसका दूत है, ये कौन से देशद्रोही गैंग से है?
वर्तमान में भारत में विपक्ष की सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि यहां रोग नियंत्रण क्यों हो गया? ऐसे ही कुछ दुष्ट लोगों, उनको राजनेता कहना बहुत ही मुश्किल है मेरे लिए, मैं उनको धूर्त व्यक्ति ही कहूंगा जिनको लाशों पर राजनीति करनी है। हम लोगों को, इस देश को उनका सम्मान नहीं करना चाहिए। यह घटिया राजनीति की सोच है। बहुत ही नीचे गिरे हुए स्तर की राजनीति है। इससे हमें बचना होगा ऐसे लोगों की पहचान इस संकट काल में कर लेनी होगी। मुंबई का केस कुछ उसी पर आधारित है। वहां एक प्यादा तो पकड़ लिया गया है, लेकिन उसके पीछे के षड्यंत्रकारी कौन हैं? उन तक पहुंचना बहुत ही कठिन है यह दूबे तो एक प्यादा मात्र है।
जी हां जैसे JNU उत्पाद कन्हैया वैसे ही एक ओर सामने आया, कंधा दूबे का है। लेकिन ध्यान रहे बंदूक कोई और ही चला रहा हैं। वहां पर जुटी हुई भीड़ में सब अकेले ही अपनी समझ के बंदे थे। उन्हें झूठा समाचार फैलाकर वहा बुलाया गया।
मुंबई में लगे कर्फ्यू के उपरांत भी इतनी भीड़ जमा कैसे हो गयी, आश्चर्य है कि अकेले विनय दुबे की बात इतने लोगो तक कैसे पहुंच गयी? और प्रशासन को खबर तक नहीं लगी!! यह संभव नहीं।
कर्फ्यू में इतनी भीड़ बान्द्रा में जमा हो कैसे गयी जबकि चप्पे चप्पे ओर पुलिस तैनात है, अति विचारणीय प्रश्न है।
उसी समय आदित्य ठाकरे ने इस गलती का ठीकरा भी मोदी सरकार पर फोड़ दिया, जैसे कुछ दिन पहले केजरीवाल सरकार ने किया था।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को यह सोचना चाहिए कि वह जिन लोगों के बल पर मुख्यमंत्री बने हैं, जिनकी गोद में बैठकर वह मुख्यमंत्री बने हैं वही लोग वर्तमान मुख्यमंत्री को नीचे गिराने में कोई कमी नहीं छोड़ने वाले, क्योंकि वह पुराने षड्यंत्रकारी हैं। आप उन षडयंत्रों को समझ तक नहीं पाएंगे। इसलिए उद्धव ठाकरे को यह सोचना समझना होगा कि आप किन लोगों के बीच में घिरे हैं। आप उत्तम कार्यों को करें। असली गुनहगारों को पकड़ा जाए। वर्तमान परिस्थिति बहुत ही विकट है। अब यहां राष्ट्र नीति की आवश्यकता है। घटिया राजनीति की नहीं।
भीड़ में ना ही कोई महिला दिखी न बच्चे दिखे इस बात की सही जांच होनी चाहिए ताकि असली गुनहगार पकड़ा जा सके।
निष्पक्ष जांच के लिए केंद्र को हस्तेक्षप करना चाहिए क्योंकि जो प्रशासन कर्फ्यू में भीड़ न रोक सकता, जो प्रशाशन tv पर बताये जाने के बाद गुनहगार तक पहुचता है और उसे पकड़ता है वो निष्पक्ष जांच कैसे कर पायेगा।
जो मीडिया जमातीयों के आकाओ पर शांत था। चुप था। कुछ बोल नहीं रहा था। जमात के लिए उनके पास कोई शब्द नहीं थे, क्योंकि वो हर बुरे कामों के समर्थक हैं वह लोग। वही वामपंथी मीडिया आज विनय दुबे का नाम आते ही भरपूर चहक रहा है।
लेकिन ये वामपंथी मीडिया पूरी सच्चाई नही बताता कि विनय दूबे भी उतना ही है जितना कन्हैया कुमार या बरखा, रविश कुमार। इसके सर पर किसका हाथ है? ये बताने में इन्हे लाज आती है।
ये वही भारत विरोधी विनय दूबे है जिसने CAA का विरोध किया था। तब इसने JNU, AMU, जामिया का भी समर्थन किया था। ये दिल्ली के शाहीनबाग में भी राहत कार्य मेंं सहायता कर रहा था।
ये मात्र एक प्यादा मात्र है। केंद्र सरकार को इस केस को केंद्रीय जांच अभिकरणियों को सौंपना चाहिएं ताकि सत्य सामनें आ सके। आखिर ये पूरे राष्ट्र के स्वास्थ्य का प्रश्न है। कोई भी षड्यंत्र पूरे भारत को बर्बाद कर सकता है। मानवीय मूल्यों का ह्रास कर सकता है। पूरी मानवता को, भारतीय संस्कृति को, बदनाम कर सकता है। शर्मसार कर सकता है। इसलिए इसकी जांच तुरंत होना अनिवार्य है और सभी दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले।
(लेखक: श्री गुरु जी भू मुस्कान योग के प्रणेता प्रकृति प्रेमी विश्व चिंतक विश्वमित्र परिवार के संस्थापक वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक है।)