जैसी संगत वैसी रंगत

जैसी संगत वैसी रंगत।

गुरुजी भू

जीवन बहुत ही विचित्रताओं से भरा है इसे जीने के लिए ये जानना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि आपका संग कैसा है । जैसी आपकी संगत होगी वैसी ही रंगत होगी। आपका आभामण्डल वैसा ही बन जायेगा। आप वैसा ही विचारने लगेंंगे। वैसा काम करने लगेंंगे। वैसे ही आपके जीवन में परिणाम भी आने लगेंगे। इस प्रक्रिया को हमारे ऋषियों ने संस्कार कहा है।

साधना के जगत में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अगर कोई बात है है तो वो है “संग “। हम कितना भी भजन कर लें, साधना करें, ध्यान कर लें लेकिन हमारा संग अगर गलत है सुना हुआ, पढ़ा हुआ और जाना हुआ तत्व आचरण में नहीं उतर पायेगा।
आपको धनवान होना है तो धनी लोगों का संग करो,  वैसाा व्यवहार सीखो व करो,  राजनीति में जाना है तो राजनैतिक लोगों का संग करो , भक्त बनना है तो संतों का और वैष्णवों का संग जरूर करना पड़ेगा।
दुर्जन की एक क्षण की संगति भी बड़ी खतरनाक होती है। वृत्ति और प्रवृत्ति तो संत संगति से ही सुधरती है। संग का ही प्रभाव था लूटपाट करने वाले रामायण लिखने वाले वाल्मीकि बन गए। थोड़े से वुद्ध के संग ने अंगुलिमाल का ह्रदय परिवर्तन कर दिया। महापुरुषों के संग से व्यवहार सुधरता है।

तभी तो ठीक कहा गया है
जैसी संगत वैसी रंगत ।

संतों ने तो यहां तक कह दिया है कि एक तरफ से कुसंगी व्यक्ति आ रहा हो और दूसरी तरफ से पागल हाथी आ रहा हो तो कुसंगी व्यक्ति के संग करने से अच्छा है कि पागल हाथी के नीचे दब के मर जाना । क्योंकि पागल हाथी के नीचे आकर मर जाने से एक ही जन्म समाप्त होगा जबकि कुसंगी व्यक्ति का संग करने से जो हमारा बुरा स्वभाव बन जाएगा । वह हमें हजारों जन्मों तक सतायेगा।

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