इस बार का पृथ्वी दिवस प्राकृतिक रूप में मनाया गया

विश्व पृथ्वी दिवस 2020,

2020 का पृथ्वी दिवस इतिहास में सब को याद रहेगा।

आज मैं सच में पृथ्वी दिवस मना रहा हूं। पहली बार ऐसा पृथ्वी दिवस मना रहा हूं । अक्सर इस दिन प्रतिवर्ष एक थीम तय की जाती थी। उस थीम पर दुनिया के कोने कोने में विश्व भर में सेमिनारों का दौर चलता था। गोष्ठियों का दौर चलता था। चर्चाएं होती थी। परिचर्चा होती थी। पृथ्वी के तापमान, पृथ्वी के वातावरण, पृथ्वी पर जीवो के लिए, पृथ्वी पर मानव के लिए और जीवो का तो बहाना मात्र था। मेन बात यह थी कुल मिलाकर मानव और मानवीय सभ्यता के विकास के लिए पृथ्वी दिवस प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए पृथ्वी दिवस मनाने का प्रयास किया जाता था पूरी तरह से मनाया जो नहीं जा रहा था परंतु इस बार 2020 में जो पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है वह सच में पृथ्वी दिवस है पृथ्वी के वातावरण को शुद्ध किया गया पृथ्वी का वातावरण प्रकृति ने स्वयं शुद्ध करने का रास्ता अपनाया प्रकृति के वातावरण में किस तरह से जहर हम बोलते थे विश्व घूमते थे हम कितना उसको प्रदूषित करते थे उसमें प्रकृति ने स्वयं आगे बढ़कर को रोना के बहाने कुछ कमी लाने का प्रयास किया और वह आज भी प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करके जो हम अपने शरीरों का अपने स्वास्थ्य पर हम ध्यान ना देकर हमने अपने शरीरों का नुकसान किया वह भी प्रकृति ने हमें बताया करो ना के बहाने करो ना एक रोग है महामारी है लेकिन मैं आशावादी हूं मैं उसमें अवसर तलाशते और करुणा में अवसर मुझे अधिक दिखाई दे रहे हैं प्रकृति के विनाश का जो दूर चल रहा था वह पूरी तरह से बंद होने को है आज पूरी तरह से बंद है विश्व के इतिहास में जब से यह मानव जाति आई है तब से इस तरह का ताला बंदी कहीं सुनने को नहीं मिलती यह पहली बार है और छोटे शिवा छोटे से विषाणु ने हम सबको इतना डरा दिया है अभी भी मानव नहीं समझा तो मानव कभी नहीं समझेगा आसमानों के विनाश को कभी कोई रोक नहीं पायेगा प्रकृति दिवस का अर्थ यही है कि हम प्रकृति के अनुकूल चलें हम प्रकृति का शोषण ना करें प्रकृति दोहन की आज्ञा देती है उनके लिए प्रकृति हमेशा सदैव तैयार रहती है लेकिन हम शोषण पर उतर आए थे प्रकृति का शोषण सबसे अधिक विनाशक है प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना मानव ही नहीं हर जीव के लिए नुकसानदायक है हर जीव को जीने का उतना ही अधिकार है इस पृथ्वी पर हर जीव का उतना ही अधिकार है जितना मानव का या किसी अन्य जीव का लेकिन मानव अधिकार बस सब कुछ अपना समझे बैठा हर जीव को खाने लगा यहां किसी तरह की प्रकृति ने प्राकृतिक संपदा में कोई कमी नहीं छोड़ी लेकिन जीव जीव को भोजन करें तो प्रकृति में करें जंगलों में करे तो कोई बात नहीं लेकिन जो मानव जो सबसे अच्छा व्यक्ति बनाया जो सबसे अच्छा जीव बनाया परमात्मा ने उसने भी जीवो को खाना और बेहिसाब खाना शुरू किया तो प्रकृति ने अपना रंग दिखाया रूप दिखाया और मानव के कार को तोड़ने के लिए कोरोनावायरस का जो आज प्रकोप चल रहा है पूरे दुनिया में पूरे विश्व में इससे हमें सीख लेना चाहिए क्योंकि आज पृथ्वी दिवस पहली बार पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है जो पृथ्वी के हित में है सब लोग अपने घर में है कोई गंदगी नहीं है किसी भी तरह का हम पोलूशन नहीं फैला रहे हैं किसी भी तरह का हम प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं कोई भी घर से बाहर जाकर आज सेमिनार गोष्ठी या किसी भी तरह का कोई काम नहीं कर रहा है अपने घर में बैठकर पृथ्वी माता को नमस्ते करके नमन करके हम पृथ्वी दिवस मना रहे हैं मैं समझता हूं इससे अच्छा पृथ्वी दिवस आज तक मना है और शायद ही आगे कभी मनेगा।

कोरोना महामारी के कारण पिछले कई हफ्ते से अपने अपने घरों में कैद हम सभी लोगों के लिए आज चिंतन का विषय होना चाहिए कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि प्रकृति का राजकुमार, सबसे बुद्धिमान प्राणी कहा जाने वाला मनुष्य कैद में है और बाकी सभी जीव जंंतु ,जिन्हें मनुष्य हेय /भोग की दृष्टि से देखता है,इस संकट से अप्रभावित आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं।कहीं सबसे बुद्धिमान होने के मुगालते में आदमी यह भूल तो नहीं गया कि वह भी प्रकृति का एक हिस्सा है प्रकृति से बडा़ कतई नहीं है।कहीं हम किसी गलतफहमी का शिकार होकर अपने आपको प्रकृति से ऊपर मानते हुए कुछ ऐसा तो नहीं कर रहे हैं कि जानवरों की बीमारियों को मनुष्यों तक लाने की गलतियां कर बैठे? अब प्रकृति अपना धैर्य/संतुलन खो बैठी है और संतुलन बनाने के लिए ही उसने सबसे शैतान बच्चे को घर पर बैठने को मजबूर कर दिया है।
कोरोना से इतर देखें तो भी धरती का बढ़ता तापमान, पिघलते ग्लेशियर, सूखती/सिकुड़ती नदियां, निरंतर बढ़ता जल संकट,कटते/जलते जंगल, प्रदूषण के कारण गंदे नालों में बदलती नदियों, स्वांस लेने के लिए भी अनुपयुक्त होती जा रही हवा और निरंतर बिगड़ती जलवायु आने वाले दिनों के बारे में बहुत अच्छे संकेत नहीं दे रही है। जब अभी की आबादी 7 अरब लोगों के लिए ही प्राकृतिक संसाधन पूरे नहीं पड़ रहे हैं और 2050 तक जो दो अरब और मनुष्य इस आबादी में जुड़ जायेंगे तब 9 अरब लोगों के लिए हवा, पानी, भोजन की ब्यवस्था कहाँ से होगी यह सोचने का विषय है। आवश्यता है संतुलन बनाने की। संतुलन बनाना होगा, लालच और आवश्यकता में,संतुलन बनाना होगा उपभोग और बचत में ,संतुलन बनाना होगा जो करना जरूरी है और जो हम कर रहे हैं।दिखावे से काम नहीं चलेगा, प्रकृति सह अस्तित्व की मांग करती है तो हमें सह अस्तित्व स्थापित करना सीखना होगा।
जंगलों के संरक्षण और संवर्द्धन से हम संतुलन को बनाने में सहयोग दे सकते हैं।जंगल हमारे साफ हवा, शुद्ध पानी, जैवविविधता की जरुरतों के साथ साथ वन्य जीवों, जिनका पृथ्वी पर मनुष्य के समान ही अधिकार है, के लिए भी बेहद जरूरी हैं।यदि हमें संतुलन स्थापित करना है तो जंगलों को पैसा कमाने का साधन मानने की जगह जीवित रहने का साधन मानना होगा ।
आईये चिंतन करें, मनन करें .जहाँ जहाँ गलतियां हो रही हैं उन्हें ठीक करें तो
निश्चित रूप से प्रकृति हमें क्षमा कर देगी ।

 

श्री गुरुजी भू

(मुस्कान योग के प्रणेता, प्रकृति प्रेमी, विश्व चिंतक, विश्व मित्र परिवार के संस्थापक, वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक व प्रकृति परिवार के संस्थापक हैं)

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