जातिवाद नही उद्यमिता

ब्राम्हणोंं को जोड़ा हैं, तोड़ा नहीँ ।

भारत में जातियों का षड्यंत्र बहुत गहरा चला गया है। यह जब से शुरू हुआ तब से आज तक हम इस षड्यंत्र को समझने में नाकाम रहे है। सच तो यह है कि हमारे यहां जातिवाद नहीं था वरन् ये लोग अपने कार्यक्षेत्र के उद्योगपति थे। जैसे आज है मेकेनिकल,  आईटी उद्योग, कार्यकुशलता ही इसकी पहचान हैं। कोई कार बनाता है। कोई कुछ भी ऐसी चीज बनाता है , कोई भी जो काम  करता है और तो वो उद्योगपति था। तो इसी तरीके से हमारे यहां बढ़ाई, लुहार, कुम्हार, धीवर, नाई, विश्वकर्मा आदि यह सब अपने-अपने उद्योग के उद्यमी थे। उद्योगपति थे। इन सबके मिलकर चलने से ही समाज बनता था। यह इनकी जातियां नहीं यह उनके उद्यम थे। इसलिए उनको उस नाम से जाना जाता था। आज भी डॉक्टर को डॉक्टर के नाम से, चिकित्सक को डॉक्टर के नाम से, चिकित्सक हो या इंजीनियर हो, इंजीनियर को इंजीनियर के नाम से ही जाना जाता है। इसलिए यह जातियां आज भी है। कल भी थी। लेकिन यह उद्यमी के रूप में थी ना कि जातिवाद के घिनौने रूप में। तदुपरांत समय के साथ साथ षड्यंत्रकारियो ने सब समाज बिगाड़ दिया। क्योंकि सांस्कृतिक विरासत थी वह ज्ञान था संस्कृति की ज्ञाता थे।  इस देश की विरासत को वैज्ञानिक विरासत को ब्राह्मण संजोए हुए थे क्योंकि काम उनका यही होता था। वो टीचर थे। वह शिक्षक थे। वो रिसर्च करते थे। सर्च करते थे। अनुसंधान करते थे। शोध करते थे। इसलिए  उनको ब्राह्मण कहा जाता था। वह पढ़ने लिखने का शोध कार्य करते थे। केवल नाम से ब्राह्मण घर में जन्म लेने से ब्राह्मण नहीं थे। इसका छोटा सा उदाहरण पेश कर रहे हैं।

 

*_एक यादव IAS अधिकारी जो इतिहासकार भी हैं, के द्वारा लिखा गया कटु सत्य।

*_मै ब्राम्हणों का बहुत सम्मान करता हूँ, इसलिए इस सत्य को सभी से साझा करने से, अपने आप को रोक नहीं पाया।_*
*ब्राह्मणों ने समाज को तोड़ा नही अपितु जोडा है।*

ब्राम्हणों ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े

*दलित* को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि

*दलित* स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हे पर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगें।
इस तरह सबसे पहले *दलित* को जोडा गया …..

*धोबन* के द्वारा दिये गये जल से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा…

*कुम्हार* द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा…

*मुसहर जाति* जो वृक्ष के पत्तों से पत्तल/दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनीयों से देवताओं का पुजन सम्पन्न होगे.।

*कहार* जो जल भरते थे यह कहते हुए जोड़ा कि इन्हीं के द्वारा दिये गये जल से देवताओं के पुजन होगें…

*बिश्वकर्मा* जो लकड़ी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोड़ा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पुजन करेंगे।

फिर वह *हिन्दु* जो किन्हीं कारणों से *मुसलमान*बन गये थे उन्हें जोड़ते हुये कहा गया कि इनके द्वारा सिले हुये वस्त्रों (जामे-जोड़े) को ही पहनकर विवाह सम्पन्न होगें…

फिर उस *हिन्दु से मुस्लिम बनीं औरतों* को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा पहनाई गयी चूडियां ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी…

*धारीकार* जो डाल और मौरी को दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है,को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता….

🤷‍♂🤝 *डोम* जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे उन्हें यह कहकर जोड़ा गया कि
*मरणोंपरांत* इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दिया जायेगा….

👉इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर कि महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती है।
और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी…,

*ब्राह्मणों का दोष कहाँ है*?…हाँ *ब्राह्मणों* का दोष है कि इन्होंने अपने ऊपर लगाये गये निराधार आरोपों का कभी *खंडन* नहीं किया, जो *ब्राह्मणों* के अपमान का कारण बन गया। इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राह्मण

*नाई* से पुछता था कि क्या सभी वर्गो कि उपस्थिति हो गयी है…?

🤙 *नाई* के हाँ कहने के बाद ही *ब्राह्मण* मंगल-पाठ प्रारम्भ किया करते हैं।

*ब्राह्मणों* द्वारा जोड़ने कि इस क्रिया को छोड़वाया, विदेशी मूल के लोगो ने अपभ्रंश किया।

देश में फैले हुये समाज विरोधी *साधुओं* और

*ब्राह्मण विरोधी* ताकतों का विरोध करना होगा जो अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिये *वेद और ब्राह्मण* कि निन्दा करतेे हुये पूर्ण भौतिकता का आनन्द ले रहे हैं।……

*वस्तुतः हम यादव भी क्षत्रिय ही हैं और हमारा धर्म है ब्राह्मणों की रक्षा करना और मैं इससे सदा वचनबद्ध हूँ।*

*अशोक कुमार यादव*
*इतिहासकार*
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*_।। 100% सत्य वचन ना कोई शंका ना कोई संशय ।।

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