गुणवत्ता में सुधार के अवसर देता है ऑनलाइन शिक्षा – वीएम बंसल, चेयरमैन एनडीआईएम

विश्व में आई कोरोना नाम की महामारी, विषाणु ने दुनिया में आज अपना सर्वाधिक रिकॉर्ड बनाया है। आज 50 लाख के पार संक्रमित पीड़ितों की संख्या हो गई है। भारत में यह आंकड़ा 100000 के पार जा चुका है। आज भारत में लगभग 6000 नए रोगियों का पता चला है। उनकी पहचान की गई है। अभी और न जाने कितने  ऐसे रोगी हैं जिनकी अभी पहचान नहीं हो पा रही है। क्योंकि यह संक्रमण बड़ी तेजी से फैलता है। देर से जागता है और बहुत भयानक नुकसान पहुंचाता है। शरीर को मजबूत रखो। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता हो तो यह थोड़ा असर कर पाता है। नहीं तो यह मार डालता है। साथ ही सारे परिवार को जिन जिन के संपर्क में व्यक्ति आता है उन सब को क्षति पहुंचाता है। उन सब में यह फैलता है। ऐसे रोगियों को बहुत ही ध्यान पूर्वक अस्पताल पहुंचाया जाता है। उनके साथ मिलना तो होता ही नहीं। डॉक्टरों का भी जो मिलना होता है वह पीपीई किट पहनकर। तब उनका उपचार किया जाता है। नहीं तो डॉक्टर को भी रोग लगता है। डॉक्टर भी कई लोग मारे गए हैं। पुलिस वाले भी कई लोग इसमें पीड़ित हुए हैं। वह मृत्यु के शिकार भी हुए हैं। इस महामारी, इस विषाणु से बचने का भारतीय आयुर्वेद में भी अश्वगंधा वगैरा और भी कई औषधियों का प्रयोग किया जा रहा है। टीकाकरण की व्यवस्था भी की जा रही है। लेकिन रोग पर काबू पाना अभी संभव नहीं दिख रहा है। यह आंकड़ा प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। यह मानव जाति का दुर्भाग्य है। एक तरीके से मानव को प्रकृति का तमाचा है। क्योंकि मानव बहुत अहंकारी हो गया है। अपने आपको हम भगवान समझने लगे थे। हमने पता नहीं क्या-क्या कर दिया। किसी को पैसे का, किसी को अपनी गाड़ियों का, अहंकार, किसी को अपनी कोठी बंगले का, किसी को अपने फार्म हाउस का अहंकार न जाने कितने कितने अहंकार। आज वह सब व्यर्थ हो गए। जीवन इतना बहुमूल्य लगने लगा कि हमको अपने अहंकार को तोड़कर, छोड़कर आज जीवन बचाने की प्रक्रिया में लगना पड़ा। सारा व्यापार छोड़कर अपने घर में तालाबंदी में रहना पड़ा। ये प्रकृति की मार है। अभी भी अगर हम नहीं समझे तो शायद आने वाले दिनों में मानव को बचाने वाला कोई नहीं होगा। क्योंकि यह तो एक विषाणु है। अब तो विषाणु भी लैब में बनने लगे हैं।मानवीय कृत आने लगे हैं। यह प्राकृतिक नहीं है। इसलिए यह अधिक घातक है, अधिक भयानक हैं। वातावरण में हर मौसम में यह जीवित रह सकते हैं ।क्योंकि प्राकृतिक वातावरण में जो पैदा होते हैं वह अपने क्षेत्र को छोड़कर बाहर नहीं सकते, लेकिन यह मानवीय कृत है। इसलिए दुनिया के कोने कोने में इसने तबाही मचाई है। नुकसान पहुंचाया है, क्षति पहुंचाई है। लोगों को मार डाला है और आज वह संख्या 50 लाख के पार कर गई है। यह अत्यंत भयानक है। डराने वाले आंकड़े हैं और डरना भी चाहिए। सचेत भी रहना चाहिए। उधर तालाबन्दी खोल दी गयी हैं। कुछ देशों के साथ हमारे यहां भी कुछ ढील दी गई है लेकिन मैं समझता हूं कि अभी तालाबन्दी खोलने से समाधान नहीं निकलने वाला। कुछ भी हो अभी हमें पूरी सावधानी से रहना पड़ेगा और थोड़े दिन का कष्ट और सहन कर ले तो यह प्राकृतिक रूप से नष्ट हो सकता है।  आने वाला समय ही बताएगा कि इस रोग से मानव जाति कब तक निश्चिंत हो पाएगी ? कब तक हमसे ये विषाणु दूर हो पाएंगा ? हमारा भय दूर हो पाएगा।

 

भावना त्यागी

सम्पादक

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