अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के अभिभावकों में से एक आदरणीय *यशवन्तराव केलकर जी के घर अनौपचारिक चायपान का आमंत्रण अत्यंत शिक्षाप्रद होता था|* हर बार नई चीज समझ मे आती थी|
ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने कहा *ALL HUMAN ORGANISATIONS SUFFER FROM HUMAN FAILINGS TOO.* फिर यह भी बताया कि ALL MAN MADE PROBLEMS WILL NECCESARILY HAVE MAN MADE SOLUTIONS TOO.
कई बार मानव मनोविज्ञान की बहुत बड़ी भूमिका होती है संगठन संचालन में| संगठनों मे टूट को लोग सैद्धांतिक रूप से महिमामंडन करते हैं| जैसे भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन 1964 में दो टुकड़ों मे बंट गया था| सैद्धांतिक कारणों का तो प्रचार हुआ था| बाद में एक पुस्तक ALL THESE YEARS के नाम से श्री रमेश थापर द्वारा लिखी गई| उस मे उस टूट के पीछे के मनोवैज्ञानिक पहलु मानवस्वभावगत दुर्बलताएँ आदि पर प्रकाश पड़ता है|
चाहे 1969-70 मे कांग्रेस की टूट हो या समाजवादी आंदोलन की टूट हो या मार्क्सवादी राजनैतिक आंदोलन का दसियों टुकड़ों मे बिखरने की प्रक्रिया हो सभी मे इन मानवीय पहलुओं की भूमिका रहती है| कहीं अहं के टकराव हों, कहीं अविश्वास तो कही राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं का टकराव भी भूमिका निभाते हैं| *डॉ. लोहियाजी ने कहा वाणी स्वातंत्र्य और कर्मबन्धन| उनके लोगो ने शायद आधा ही याद रखा या पालन कर पाये|*
वाणी स्वातंत्र्य और कर्मबंधन मे से कर्मबंधन को भूल गये और वाणी स्वातंत्र्य बिगड़कर वाणी स्वैराचार में बदल गया| *यह ध्यान रहे कि मतभेदों की अभिव्यक्ति मे असावधानी रहेगी तो मतभेद को मनभेद का रूप लेने में देर नही लगती| यहीं मानव मनोविज्ञान को संभालने की जरुरत रहती है| कार्य पद्धति में भी इसका पथ्यपालन जरुरी है|* डॉ. लोहिया के लोगों ने सुधरों या टूटो मे से सुधरों पर लापरवाही की, टूटो पर ज्यादा अमल किया|
आजादी के बाद भारत के सामाजिक, राजनैतिक इतिहास मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एकजुट रहा है, संगठित रहा है, एक रस धारा से सिंचित रहा है| इनकी अखिल भारतीय टीम मे से न कोई अलग हुआ, न अलग किया जा सका| केवल मृत्यु इन्हे अलग कर सकी| पचासों ऐसे नाम लिये जा सकते है जिन्होने एक झण्डे तले समाधानित मन से जीवन निभा दिया| ऐसा नही है कि वहां मनुष्य नही मशीन हो| वहां भी रूचिवैचित्र्य, गुणदोष, अलग-अलग प्रतिभा, क्षमता के लोग, अपनी सीमाओं का ध्यान रखकर लोगों ने साथ काम किया| इसमे केवल वैचारिक निष्ठा, भावनात्मक लगाव या आदर्शवाद ही कारण या कारक तत्व नहीं था| कार्य पद्धति में वाणी संयम आदि मानव मनोविज्ञान के पहलुओं का प्रबंधन ठीक से हुआ| कुछ बातें सर्वमान्य सर्वस्वीकृत हो जाती है| बार-बार आग्रह से संगठन का स्वभाव वैसा ढल जाता है| कुछ ऐसी बातों का उल्लेख किया जा रहा है इनका पथ्य पालन सार्वकालिक रूप से महत्वपूर्ण होगा|
*1. सत्य बोलना, प्रिय बोलना, अप्रिय सत्य को बोलने मे सुनने वाले की मनस्थिति का विशेष ध्यान रखना| क्योंकि वाणी केवल अपनी ओर से अभिव्यक्ति का साधन नहीं| वह धारदार शस्त्र है इसलिये सावधानी रहना ही चाहिये|*
*2. अनामिकता और सांघिकता का समावेश हमेशा ध्यान मे रखा जाय|*
*3. निःस्वार्थ प्रेम ही अपने कार्य का आधार है| छोटे मन से बड़े काम नही होते| मन बड़ा हो|*
*4. मनुष्य गुण-दोषों का मिला हुआ पुतला है| गुणों का उपयोग हो दोषों का छाया न पड़े इसका ध्यान रहे|*
*5. हर कार्यकर्ता का महत्त्व है, कोई भी कार्यकर्ता अपरिहार्य नहीं है| EVERY WORKER IS IMPORTANT BUT NO WORKER IS INDISPENSIBE.*
*6. साथियों के गुणों की चर्चा सर्वत्र हो, दोषों की चर्चा उपयुक्त स्थान पर हो| दोष चर्चा का उद्देश्य दोष परिहार है यह ध्यान रहे|*
*7. गुण देखें दूसरों का, दोष देखें अपना|*
*8. स्वयं के प्रति कठोर, अन्यों के प्रति उदार|*
ऐसे और उदाहरण हम सबके लिये उपयोगी है| *INDIVIDUAL IS A FRACTION, ONLY A TEAM CAN BECOME INTEGER* हर व्यक्ति अपूर्णांक है केवल टीम ही पूर्णांक हो सकती है|