अपने बच्चों को शास्त्र, धर्म, इतिहास व धैर्य की सच्ची शिक्षा दें, आत्महत्या नही, दु:ख महोत्सव मनाओ ! – गुरुजी भू

आपका कोई प्रिय आत्मघाती सुशांत ना बने, इसके लिए उसे अध्यात्म, शास्त्र, धर्म ओर इतिहास की शिक्षा देना आज से ही शुरू करें।

आत्महत्या महापाप है।  अगर यह बात  सुशांत को पता होती  और अपने गौरवशाली इतिहास को उसने पढ़ा होता  तो शायद वो ये कदम कभी ना उठाता। क्योंकि धैर्य का अभाव एवं एकाकी जीवन ही आत्महत्या की ओर अग्रसर करता है। अगर अभिनेता सुशांत में धर्म का थोड़ा बहुत भी ज्ञान होता, तो महान राजपूत होने पर कभी शर्मिंदा नही होता। वह खुद के राजपूत सरनेम पर गर्व करता, ऐसा नही है, की राजपूत होना ही गर्व की बात है, राजपूत अर्थात वीर, बहादुर, धैर्यवान होना भी है। आप भारतीय सनातन धर्म मे पैदा हो गए, उससे अधिक गौरवपूर्ण ओर कुछ भी नही है। क्योंकि यहां एक ब्राह्मण चाणक्य पूरी सत्ता पलट देता है। कृष्ण किसी क्षत्रिय या ब्राह्मण के घर नही पलते, बल्कि एक ग्वाले को जीवन का सबसे सुखद क्षण बालपन देते है, ओर उनके यहां ही पलते बढ़ते है। पहले वो ग्वाला बनते है। फिर गुरुकुल जाकर शिक्षा लेते है।

 

अधूरी शिक्षा घातक

जबसे हमने अपने बच्चों को श्रीराम व श्री कृष्ण की शिक्षा देना छोडकर अंग्रेजों की गुलाम शिक्षा देना प्रारम्भ किया है तब से हमारे बच्चे मानसिक मजबूत नही हो पा रहे है। वो अतिशीघ्र जीवन की कठिनाई से हार मान लेते है। वो नही जानते कि एक राजकुमार युवराज और भावी राजा होकर उनको वन वन भटकना पड़ा, अत्यधिक संघर्ष किया। पग पग पर परीक्षा देकर  जीवन विजय किया, लेकिन हर संघर्ष के बाद वह ओर अधिक मजबूत हुए, अपने आत्मबोध से आत्मबल बढ़ाया, लेकिन आत्महत्या नही की। हमारे शास्त्रों में आत्महत्या को महापाप बताया गया है। वहीं युद्ध में लडते हुएं मरने को वीरगति और सम्मानित माना है।

 

वासुदेव जी का जीवन संघर्ष

श्रीकृष्ण के पिताजी वासुदेवजी तो राजा थे, लेकिन कंस ने उन्हें कालकोठड़ी में डाल दिया, एक राजा के लिए बिना किसी अपराध के कारावास भोगने से अधिक दुखदाई ओर क्या हो सकता है ? लेकिन वासुदेव जी ने धैर्य नही खोया, जीवन से कभी हार नही मानी , ओर भारत को सुनहरा भविष्य श्रीकृष्ण के रूप में दिया।

 

श्री कृष्ण जी का जीवन संघर्ष

आगे बढते है तो कहने को तो भगवान फिर भी श्रीकृष्ण से ज़्यादा संघर्षमयी जीवन किसका था ? 8 साल की उम्र में कंस के विरूद्ध संघर्ष की शुरुवात हुई, ओर जीवन के अंतिम क्षण तक रही। श्रीकृष्ण महाभारत का युद्ध बिल्कुल नहीं चाहते थे। कौरव ओर पांडव दोनो नही चाहते थे। पांडव सन्यासी प्रकृति के थे, वह तमाम दुख झेलने को तैयार थे, लेकिन युद्ध नही चाहते थे। कृष्ण का विरोध खुद उनके भाई बलरामजी ने भी किया। दुर्योधन के अहंकार के साथ उसके सभी साथियों के अहंकार, कुटिलता और अज्ञानता युद्ध का मुख्य कारण बना। धर्मज्ञ श्रीकृष्ण को कितना संघर्ष करना पड़ा होगा ? 18 अक्षोणी सेना अर्थात 72 लाख लोगों का संघार एक ही मैदान में। एक भी आत्महत्या नही। आज कोई भी आदमी मामूली टेंशन में डिप्रेशन में चला जाता है, लेकिन कृष्ण उस डिप्रेशन के समय मे भी बांसुरी बजाते, नाचते गाते थे।

 

पाण्डवों का जीवन संघर्ष

अर्जुन और पांचों भाइयो से अधिक दुःखमय जीवन और किसका था ? पिता का साम्राज्य अपने लोगो ने कब्जा लिया, उल्टे उनकी हत्या के बार बार षडयंत्र रचे गये। प्राण से प्यारा अभिमन्यु मारा गया, भीमपुत्र घटोत्कच, अन्त में द्रौपदी के पाचों पुत्र अश्वथामा ने मार दिये लेकिन पांडवों ने साहस नही छोडा, हिम्मत नही हारी, ओर विश्व विजय किया ।।

 

मानसिंह का जीवन संघर्ष

आमेर का राजा मानसिंह के समय उनका साम्राज्य मात्र कुछ हिस्सों तक सीमित था, उनका प्रिय पुत्र जगतसिंह जो उनकी आंख था, धर्म के लिए लड़ते हुए उन्होंने अपने प्राणों की बलि दे दी, लेकिन मानसिंह पूरी तरह टूटकर भी धर्म ओर कर्म नही भूले, आत्महत्या का तो विचार भी नही आया।

 

विक्रमादित्य का जीवन संघर्ष

विक्रमादित्य जब युवा भी नही हुए थे, तभी मालवा पर शकों का इतना भंयकर आक्रमण हुआ, कि उनके पास राज्य तो क्या, सेना के नाम पर मात्र उनका एक मित्र बचा, लेकिन हार नही मानी, ओर अंत मे विश्वविजेता बनेंं।

 

राजा हरिश्चंद्र का जीवन संघर्ष

राजा हरिश्चंद्र की कहानी तो सुनी ही होगी। ये तो आप सभी जानते ही है, वह राजा से रंक बन गए, पुत्र मर गया, लेकिन हिम्मत नही हारी, ओर फिर से उन्हें राजपाठ मिल गया।

वैदिक ग्रंथों में आत्महत्या करनेवाले व्यक्ति के लिए कुछ श्लोक लिखे गये, जो इस प्रकार है।

असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता।
तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।

इसका अर्थ है कि ”आत्महत्या करनेवाला मनुष्य अज्ञान और अंधकार से भरे, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को जाते हैं।”

स्कंद पुराण’ के काशी खंड, पूर्वार्द्ध (12.12,13) में आता है : ‘आत्महत्यारे घोर नरकों में जाते हैं और हजारों नरक-यातनाएँ भोगकर फिर देहाती सूअरों की योनि में जन्म लेते हैं । इसलिए समझदार मनुष्य को कभी भूलकर भी आत्महत्या नहीं करनी चाहिए । आत्महत्यारों का न तो इस लोक में और न परलोक में ही कल्याण होता है ।’

‘पाराशर स्मृति (4.1,2)’ के अनुसार ‘आत्महत्या करनेवाला मनुष्य 60 हजार वर्षों तक अंधतामिस्र नरक में निवास करता है ।

अच्युतानन्त गोविन्द नामोच्चारणभेषजात् ।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ।।

‘हे अच्युत ! हे अनंत ! हे गोविंद ! – इस नामोच्चारणरूप औषध से तमाम रोग नष्ट हो जाते हैं, यह मैं सत्य कहता हूँ… सत्य कहता हूँ ।’

आत्महत्या यह मानस रोग है । मन की कायरता की पराकाष्ठा होती है तभी आदमी आत्महत्या का विचार करता है तो उस समय भगवान को पुकारो ।

अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ।
ना भुक्तं क्षीयते कर्म जन्म कोटिशतैरपि ।।

आत्महत्या करके भी कोई उससे बच नहीं सकता है। उलटे आत्महत्या का एक नया पापकर्म हो जायेगा। परंतु अगर हम दुःखदायी परिस्थिति को सहन कर लेंगे तो पुराने पाप नष्ट होंगे और हम शुद्ध होंगे । कोई भी परिस्थिति सदा रहनेवाली नहीं है।
सुख भी सदा नहीं रहता तो दुःख भी सदा नहीं रहता है। क्योंकि परिवर्तन सृष्टि का मूल नियम है। सूर्य के उदय होने के बाद अस्त होना और अस्त होने के बाद उदय होना यह प्रकृति का नियम है। अतः कितनी भी दुःखदायी परिस्थिति के आने पर भी घबराना नहीं चाहिए। साहस नही खोना है। धैर्यपूर्वक परिस्थितियों का सामना करने से समाधान निश्चित ही होगा।

जियो जी भरकर, सुख – दुख तो आने जाने है।

क्योंकि जीवन ईश्वर का वरदान है। आत्महत्या करके उस वरदान का मौका मत गँवाईये। धर्म आपको हमेशा आश्वासन देता है, आज नही तो कल अच्छा होगा, हम जो भोग रहे है, शायद हमारे किसी जन्म में कोई बुरे कर्म थे।एसा सोचोगे तो आत्महत्या का विचार ही नही आएगा, दुःखों को दुःख की जगह हम आशीर्वाद मान लेंगे। उनका आनन्द लेना सीखो। दुखों का उत्सव मनाओ। दुख महोत्सव मनाओ।  सुख को आपके कदमों में आना ही पडेगा।

इसलिये मैं कहता हूं अपने बच्चों को शास्त्र, धर्म, इतिहास व धैर्य की सच्ची शिक्षा दें !

गुरुजी भू
(प्रकृति प्रेमी, मुस्कान योग के प्रणेता, विश्व मित्र परिवार, प्रकृति परिवार, वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक, तरंग मीडिया, तरंग.न्यूज, तरंग दर्शन, कामधेनु टीवी, भारत समय के प्रमुख सम्पादक)

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