मानव नही देवता है कर्नाटक के डॉ शंकर गौडा

आज के इस गला काट प्रतियोगिता के युग में मेडिकल साइंस में बहुत उन्नति की है। साथ ही डॉक्टरों ने भी बड़ी उन्नति की है। उन्नति का अर्थ आर्थिक उन्नति से है, ज्ञान की उन्नति से है लेकिन पैसे की दौड में मानवीय मूल्यों का ह्रास देखने को मिला है। धन को एकत्र किया है। बहुत सारा वैभव, नाम कमाया लेकिन मानवीय मूल्यों की कमी स्पष्ट दिखती है। ऐसे माहौल में एक एमबीबीएस एमडी डॉक्टर केवल ₹ 5 के शुल्क पर अपने मरीजों को दवाई लिखें यह किसी देव स्वरूप से कम नहीं। यह मानव नहीं देवता है। आज के युग में ऐसे देव पुरुषों का अत्यधिक स्वागत होना चाहिए क्योंकि ऐसे देव पुरुष ढूंढने से भी नही मिलते। ऐसे ही एक देव पुरुष हैं डॉक्टर शंकर गौड़ा एमबीबीएस एमडी।

 

डॉक्टर शंकर गौड़ा एकदम साधारण वस्त्र धारण करके एक रैस्टोरेंट की दीवार पर बैठकर एक छोटे से पेपर के टुकड़े पर दवाई लिखते है। कर्नाटक के मडुआ जिले के डॉक्टर शंकर गौड़ा एमबीबीएस एमडी है।

इनके पास अपना चेंबर नहीं है। यह बताते हैं कि चेंबर बनाने में 3,00,000 से 4,00,000/- लगेंगे जो उनके पास नहीं है इनका अपना घर इनके शहर से कुछ दूर गांव में है जहां छोटे-छोटे दो कमरे हैं। यह बताते हैं कि मेरे मरीज इतनी दूर कैसे आएंगे इसलिए मैं खुद सवेरे 8:00 बजे शहर पहुंचकर एक फास्ट फूड रेस्टोरेंट की दीवार पर बैठकर गरीब मरीजों को देखता हूं।

रोजाना इनके पास लगभग 100 से ऊपर मरीज आते हैं, जिनकी यह हर प्रकार की जांच करते हैं और इनको सस्ती जेनेरिक दवाइयां लिखते हैं जिससे मरीजों के ऊपर आर्थिक बोझ ना पड़े।

सबसे मजेदार बात इन डॉक्टर साहब की यह है कि यह मरीजों से केवल ₹5 फीस लेते हैं जी हां सही पढ़ा आपने केवल ₹5 आज के इस आधुनिक युग में एक एमबीबीएस एमडी डॉक्टर ₹5 मात्र अपनी फीस ले वाकई उनका यह कृत्य एवं सेवा भाव को नमन है।

सच तो यह है कि डॉ का पेशा पैसे कमाने के लिए नहीं है। डॉ कोई व्यवसाय नहीं है। डॉ एक सेवा कार्य है और इस सेवा कार्य में मानव को सेवा के भाव से काम करना चाहिए पैसे कमाने के लिए नहीं। जितनी आवश्यकता हो घर चलाने के लिए उतना पैसा लेना उचित है।

 

चिकित्सा सेवा है व्यापार नही

आज चिकित्सा पद्धति को पैसा कमाने का व्यापार बना लिया गया है। व्यवसाय बना लिया गया है। मेडिकल साइंस में लगे लोग भूल जाते हैं कि वह सेवा कार्य है। रोगियों की सेवा करना रोगियों को ठीक करना उनका उचित उपचार करना ही उनका परम कर्तव्य और परम धर्म है। इसलिए अस्पतालों में लापरवाही और डॉक्टर्स के द्वारा खासकर प्राइवेट अस्पतालों में एक के बाद एक रोग का उपचार और उसके बाद टेस्ट और इसके अलावा कई तरह के निरर्थक खर्चे वहां होते हैं । रोगियों की जेब जब तक खाली नहीं हो जाए तब तक रोगी को वापस नहीं भेजा जाता। उन रोगियों को एक के बदले 2 दवाइयां खाना उनकी मजबूरियां हैं क्योंकि डॉक्टर ने कहा है। डॉ भूल जाते हैं कि हमें सेवा करनी है इसलिए आज के डॉक्टर को यह चाहिए कि सेवा भाव से काम करें। उचित शुल्क लें ताकि रोगियों का भी भला हो और उनके भी घर में जो पैसा जाए उसे सुख शांति बनी रहे।

डॉक्टर शंकर गौड़ा ने ये सिद्ध किया है कि वो सच्चे चिकित्सक है।

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