मानव या ब्रह्माण्ड के किसी भी जीव में ज्ञान की सम्पूर्णता असम्भव है – गुरुजी भू

 विश्व में आज तक कोई भी मानव तो क्या कोई अवतार भी पूर्ण नही हुआ। ना ही कभी होगा। सम्पूर्णता की तो बात ही छोड दो।
ईश्वर को छोडकर मानव या किसी अन्य जीव का ज्ञान पूरे ब्राह्मण में सदैव अधूरा ही रहता है। किसी के पास कुछ है तो किसी ओर के पास कुछ ओर। मानव या ब्रह्माण्ड के किसी भी जीव में ज्ञान की सम्पूर्णता असम्भव है।
सत्य की परिभाषा भी समय समय पर बदलती रहती है।
इसलिए सबको सुनो, समझो, गुणों। जो मन भाये वही करो।
 ये कटु सत्य है।
कुछ सत्य और ज्ञान मानव के जानने में हमेशा अधूरे ही रहते है।
इसको वर्तमान में कोरोना काल में  समझते हैं।
मान लो किसी एक व्यक्ति को कोरोना हुआ। वह हॉस्पिटल गया ठीक होकर वापस आ गया।
 ठीक उसी तरह से किसी दूसरे व्यक्ति को कोरोना हुआ, वह हॉस्पिटल गया ठीक होकर वापस नहीं आया। ईश्वर को प्राप्त हुआ।
 लेकिन एक और व्यक्ति था जिसे कोरोना हुआ उसने अपने घर में ही उपचार किया और वह ठीक भी हुआ। उसका अनुभव अपने घर का है ठीक होने का।
इसके अलावा एक और व्यक्ति था जिसको कोरोना हुआ। उसको पता भी थोड़ा-थोड़ा चला लेकिन उसने कोई इलाज नहीं कराया और वह ठीक भी हुआ बाद में पता चला कि इसको कोरोना हमला हुआ भी और होकर स्वयं ही ठीक भी हो गया है।
 ठीक इसी तरीके से अध्यात्मिक ज्ञान में सबके अनुभव अलग-अलग हैं।
इसे विज्ञान की कसौटी पर सदैव एक जैसा नही पाया जा सकता।
कई अनुभव तो वाणी से बताये नही जा सकते, लेखनी से लिखे नही जा सकते।
ऋषि- मुनियों ने तो अपने अपने अनुभव लिखने की कौशिक की उन अनुभव के विज्ञान को भी समझाया। लेकिन बाद में कुछ तथाकथित ब्राह्मणों ने उसी को अंतिम सत्य मान लिया। बस वही गड़बड़ हो गयी।
ज्ञान पर ताला लगा दिया। ज्ञान पर ताला लगाने से ही सनातन संस्कृति गर्त्त में जाने लगी।
एक और कटु सत्य यह भी है कि शास्त्र उस समय का, समय, काल, परिस्थितियों के अनुसार केवल संविधान मात्र था। आज उसे धार्मिक शास्त्र, मानकर धर्म की पुस्तक बताना, अंतिम पुस्तक मानकर हम उसी पर चलने का प्रयास करते रहे। बस वही हमारी गलती थी। इसे कोई स्वीकार करें या ना करें। यही कटु सत्य है।
वेल कहता है नेति नेति अर्थात इसके आगे भी अनंत संभावनाएं हैं। ज्ञान की, अनंत ब्रह्मांड है। अनंत ज्ञान है। अनंत विधाएं हैं। आप शोध करते जाओ और मुझ में लिखते जाओ, लेकिन वेद को अंतिम सत्य बताकर विज्ञान पर ताला लगा दिया। वही विनाश का कारण बना दिया।
मेरी समझ इतनी ही है। जो शोध अनुसंधान मैने किया।
(लेखक श्री गुरुजी भू, मुस्कान योग के प्रणेता, प्रकृति प्रेमी, अध्यात्मिक अध्येता, सनातन शोधार्थी, विश्व मित्र परिवार के संस्थापक, वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक, प्रकृति परिवार के संस्थापक, तरंग न्यूज के प्रमुख संपादक, विभिन्न सम्मानों से सम्मानित है)
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