1300 से अधिक वर्षों से नैलायप्पार मंदिर में संगीतमय स्तंभों का अनसुलझा वैज्ञानिक रहस्य – गुरुजी भू

भारतीय संस्कृति में संपूर्ण वैज्ञानिक आधार पर घड़ी गई सभ्यता के बहुत से साक्ष्य मिलते हैं। जहां केवल विज्ञान है। परा विज्ञान है। प्राचीन विज्ञान है। अंतरिक्ष विज्ञान है। भिन्न-भिन्न तरह की कलाओं से सुसज्जित यह संस्कृति विश्व की अद्भुत और अनोखी वैज्ञानिक संस्कृति है। संपूर्ण वैज्ञानिक संस्कृति है। ऐसे बहुत से रहस्य इस संस्कृति में है जो अनसुलझे हैं लेकिन विज्ञान के साथ वह कभी भी सुलझाये जा सकेंगे। ऐसी आशा भी है क्योंकि वह विज्ञान के आधार पर है। प्राचीन विज्ञान बहुत उन्नत किस्म का था जो आज लुप्त प्राय हो गया है। आज विज्ञान के नए रूप सामने आए हैं। भारतीय संस्कृति के विज्ञान को बहुत ही क्षति पहुंचाई गई है। विदेशी आक्रांताओं ने बहुत क्षति पहुंचाई। भिन्न-भिन्न तरह से क्षति पहुंचाई। वह ज्ञान विज्ञान कहीं दब कर रह गया, जो आज भी विश्व के लिए धरोहर के रूप में है।  विश्व कल्याण की भावना से संपूर्ण सृष्टि का कल्याण कर सकता है। संपूर्ण मानवता की रक्षा कर सकता है। ऐसा ज्ञान विज्ञान भारतीय संस्कृति में कूट-कूट कर भरा है। ऐसे ही कुछ रहस्यों में एक है –

1300 से अधिक वर्षों से नैलायप्पार मंदिर में संगीतमय स्तंभों का अनसुलझा रहस्य। इसमें कुल 48 स्तंभ शामिल हैं, प्रत्येक स्तंभ एक एकल चट्टान से बना है। जब इन खंभों को टैप किया जाता है तो 7 शास्त्रीय संगीत नोटों की ध्वनि उत्पन्न होती है! प्राचीन वैदिक वास्तुकला के वर्चस्व की गवाही ।

7 वीं शताब्दी में बनाया गया नैलायप्पार मंदिर, तिरुनेलवेली, तमिलनाडु। भगवान शिव को समर्पित।

इस तरह के बहुत से अनसुलझे रहस्य और वैज्ञानिक रहस्य हमारी संस्कृति में कूट-कूट कर भरे हैं। हमारे शास्त्रों में बहुत सारे श्लोकों के अंदर भरे हैं। विज्ञान परा विज्ञान से सुसज्जित हमारे शास्त्र है। आज उनको भुला दिया गया है। आज उनको पढ़ने वाले और समझने वालों की कमी हो गई है क्योंकि हम गुलामी की तरफ बढ़ चले थे। आज हम गुलामी की भाषा में ही अपने देश को चला रहे हैं। इसलिए वह भाषा जब हम भूल गए तो भाषा का रहस्य भी भूल गए। भाषा का विज्ञान भी भूल गए। उस भाषा के कारण अर्थात संस्कृत भाषा के कारण, संस्कृत भाषा न जानने के कारण आज हम बिछड़ते जा रहे हैं। विज्ञान की अर्थात भविष्य के विज्ञान की भाषा भी संस्कृत होगी यह मैं पिछले 20 वर्षों से कहता रहा हूं।

 

गुरुजी भू

(प्रकृति प्रेमी, विश्व चिन्तक)

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