क्या हम आज फेसबुक और व्हाट्साप के बिना रह सकते हैं ? सुबह उठते से ही करोड़ों भारतीय भगवान का नाम लेते हैं या नहीं, लेकिन अपने फेसबुक और व्हाट्साप को जरुर देखते हैं। यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। भारत तो फेसबुक का दुनिया में सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गया है लेकिन फेसबुक पर गंभीर लापरवाही के आरोप लग रहे हैं। मेरी राय में फेसबुक, अब ठेसबुक बनती जा रही है। उस पर लोग झूठी खबरें, निराधार निंदा, अश्लील चर्चा, राष्ट्रविरोधी अफवाहें याने जो चाहें सो चला देते हैं। ऐसी बातों से लोगों का, संस्थाओं का और देश का अथाह नुकसान होता है। ऐसे ही कुछ मामले अभी-अभी सामने आए हैं। अमेरिका के अखबार ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ में छपी एक खबर से पता चला है कि भारत में भाजपा के चार नेताओं ने फेसबुक का इस्तेमाल हिंसा भड़काने के लिए किया, जो कि फेसबुक के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है लेकिन भारत में फेसबुक की कर्ता-धर्ता महिला ने कह दिया कि उन ‘खतरनाक दोषियों’ के खिलाफ हम कार्रवाई करते तो हमें व्यापारिक नुकसान हो जाता। कुछ ऐसे ही तर्कों के विरुद्ध अमेरिकी संसद ने सख्त कार्रवाई की थी और इस तरह की संचार-संस्थाओं को दंडित भी किया था। भारत में भी सूचना तकनीक की स्थायी संसदीय समिति के अध्यक्ष शशि थरुर ने इस मामले में फेसबुक की जांच की मांग की है। थरुर की मांग पर भाजपा को नाराज़ होने की जरुरत नहीं है, क्योंकि भाजपा ने तो अपने उन सांसदों और नेताओं को खुद ही काफी डांट-फटकार लगाई थी। बेंगलुरु और दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों को कुछ गैर-जिम्मेदार लोगों ने उत्तेजना जरुर दी लेकिन किसी पार्टी ने उसे योजनाबद्ध ढंग से भड़काया हो, ऐसा मानना कठिन है। फिर भी फेसबुक और व्हाट्साप को मर्यादित करना बहुत जरुरी है। इसे पार्टीबाजी का मामला नहीं बनाया जाना चाहिए। यदि इसे लेकर कांग्रेसी भाजपा पर हमला करेंगे तो भाजपा भी ‘केम्ब्रिज एनालिटिका’ का मामला उठाकर कांग्रेस की खाट खड़ी कर देगी। यह कहना तो ज्यादती ही है कि फेसबुक की प्रमुख अंखी दास ने जान-बूझकर भाजपा के साथ पक्षपात किया है, क्योंकि उनके कोई रिश्तेदार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं। ऐसा कहना विषयांतर करना होगा। यह मामला इतना गंभीर है कि इसे पार्टी के चश्मे से देखने की बजाय राष्ट्रीय दृष्टि से देखा जाना चाहिए। भारत की संसदीय समिति में सभी दलों के लोग हैं। वे सर्वसम्मति से फेसबुक और व्हाट्साप के दुरुपयोग को रोकें, यह बहुत जरुरी है। यदि यह नहीं हुआ तो चीन की तरह भारत में भी फेसबुक को लोग ठेसबुक कहने लगेंगे और वह अंतर्ध्यान हो जाएगी।