कैलाश मंदिर आश्चर्यजनक चमत्कारिक निर्माण वैज्ञानिक निरुत्तर – गुरुजी भू

शिवजी का एक ऐसा मंदिर, जिसे देख वैज्ञानिक भी निरुत्तर हो जाते है।

हमारे प्राचीन समय में कई आविष्कार हुए लेकिन इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि उस समय का विज्ञान बहुत ज्यादा विकसित था। आज हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसा कैलाश मंदिर जिसे देखकर वैज्ञानिक भी हैरान है। क्योंकि ऐसा कुछ बनाना तो आज के इस विकसित विज्ञान से भी परे हैं।

कैलाश मंदिर राष्ट्रकुल राजा कृष्ण प्रथम ने (756AD-773AD) के दौरान बनवाया था। इसके अलावा इस शिव मंदिर को बनाने का उद्देश्य, बनाने की टेक्नोलॉजी, बनाने वाले का नाम जैसी कोई भी जानकारी कही भी उपलब्ध नहीं मिलती।

इस मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण लेख बहुत पुराना हो चुका है एवं लिखी गयी भाषा को कोई पढ़ नहीं पाया है.

आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी किसी मंदिर या भवन को बनाते समय पत्थरों के टुकड़ों को एक के ऊपर एक जमाते हुए बनाया जाता है। लेकिन कैलाश मंदिर बनाने में एकदम अनोखा ही तरीका अपनाया गया।

इस शिवजी के मंदिर को कैलाश मंदिर का नाम दिया गया है। इसकी अद्भुत अनोखी निर्माण प्रक्रिया को समझने में आज के वैज्ञानिक भी परेशान हैं। वह नहीं समझ पा रहे हैं कि इस पूरी चट्टान में कहीं भी जोड़ नहीं है तो यह चट्टान ऊपर से नीचे की ओर तराशी गई है। काटी गई है नहीं तराशी गई है मोटे काम के अलावा बारीक नक्काशी भी इसमें देखने को मिलती है। अर्थात तोड़ कर फेंक देना ही नहीं बारीक महीन यंत्रों से जो चित्रकारी की गई है। जो नक्काशी की गई है वह भी देखने लायक है। अद्भुत है। विश्व के आठ आश्चर्य घोषित किए गए हैं लेकिन अगर सही मायने में देखें तो उनसे कहीं अच्छे कहीं बड़े 80 आश्चर्य तो भारत के एक कोने में ही मिल जाएंगे। लेकिन इस देश का दुर्भाग्य कि भारत का गौरवशाली इतिहास पढ़ाया ही नहीं जाता। बच्चों को गौरवशाली बनाया ही नहीं जाता। पाश्चात्य संस्कृति के पीछे लगा दिया गया है भटकने के लिए। और वह भटकते ही जा रहे हैं।

 

इस मंदिर में तकनीकी रूप से बहुत ही मजबूत शैली अपनाई गई है जिसका उत्तर अत्याधुनिक विज्ञान के पास भी नहीं है। कैसे बनाया होगा, उस समय काल में, कितने मजदूर लगे होंगे? अगर आज के काल में भी बनाया जाए तो भी इतना ही समय में बना पाना असंभव है क्योंकि यह मंदिर लगभग 17 से 18 वर्ष में ही बना था।

यह मंदिर औरंगाबाद के महाराष्ट्र में है। इसे कैलाश मंदिर के नाम  सेे जाना जाता है।
इस मंदिर में वैज्ञानिकों को इस कदर है हैरान करके रखा हुआ है कि वैज्ञानिकों की इस मंदिर को लेकर अलग-अलग राय है। कुछ वैज्ञानिक से 1900 साल पुराना मानते हैं मगर कुछ वैज्ञानिक से 6000 साल से भी ज्यादा पुराना मानते हैं। सबसे बड़ी हैरानी वाली बात यह है कि इस मंदिर को और पत्थरों को जोड़ कर नहीं बनाया गया है बल्कि एक ही चट्टान को काट के मंदिर को बनाया गया है। इसका जवाब देना लगभग असंभव है क्योंकि इसमें कोई ऐसी चीज का इस्तेमाल नहीं किया गया जिससे हम इस बात का पता लगा सके कि इस मंदिर को कब बनाया गया। इसे जिस पत्थर से बनाया गया उस पत्थर के कार्बन डेटिंग तो इस मंदिर से भी अधिक पुरानी होगी।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को बनाने में लगभग 18 वर्ष का समय लगा था। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इस मंदिर को आज की अत्याधुनिक तकनीक से भी 18 साल तक बनाना असंभव है। सबसे बड़ी विचित्र बात है कि इस मंदिर को नीचे से ऊपर की ओर नहीं बल्कि ऊपर से नीचे की ओर बनाया गया है। ठीक वैसे ही जैसे खुदाई की जाती है। अगर इसे खुदाई से भी बनाया गया है तो खुदाई के समय इसमें से लगभग 5,00,000 टन पत्थर निकले होंगे।  यदि कोई एक व्यक्ति इसे रोज काम करके भी 18 साल तक बनाने की कोशिश करें तो उसे हर रोज लगभग 150 टन पत्थर हटाने पड़ते होंगें, जो कि बिल्कुल ही असंभव है।
यदि इस मंदिर को हम आज की टेक्निक से 18 साल तक बनाने की कोशिश करें तो अभी हम नहीं बना सकते। इस मंदिर को बनाने के लिए केेेवल खुदाई ही नहीं बल्कि हल्के औजारों का भी इस्तेमाल किया गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसे 200 साल से कम समय में बनाना उस समय पर असंभव था।
हमें कैलाश मंदिर से इस बात का पूरा सबूत मिलता है कि हमारी प्राचीन विज्ञान आज के विज्ञान से कहीं आगे थाा। शायद इस मंदिर की गुफाओं से कोई रहस्यमई चीज भी मिल जाए। क्योंकि हमारे धर्म में कहा जाता है कि शिव के होने के सबूत तो हम हर जगह मिल सकते हैं बस उसे देखने के लिए मन में शिव होने चाहिए।

हमारी भारतीय संस्कृति संपूर्ण विज्ञान पर आधारित है। वैज्ञानिक इस गुत्थी को निकट भविष्य में शायद ही सुलझा पाएंगे। अत्याधुनिक विज्ञान और तकनीक के पास भी इस तरह की विचित्र निर्माण गतिविधियों का कोई तोड़ नहीं है। उनकी समझ से परे है यह। इसी के साथ हमें समझना होगा कि भारतीय संस्कृति का विज्ञान, भारतीय ऋषि मुनियों का विज्ञान समस्त विश्व को प्रकाशित कर रहा है। आगे भी करता रहेगा क्योंकि ब्रह्मज्ञानी हमारे ऋषि मुनि थे और ब्रह्मांड के ज्ञान की बात भी हमारे ऋषि-मुनियों ने भरपूर की है।

– गुरुजी भू

( प्रकृति प्रेमी, मुस्कान योग के प्रणेता, वैश्विक प्रकृति फिल्म महोत्सव के संस्थापक, विश्व चिन्तक)

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