आज भी प्रासंगिक है संयुक्त परिवार – गुरुजी भू
संयुक्त परिवार के महत्व
आदिकाल से ही मानव को अपने विकास के लिए समाज की आवश्यकता हुयी, इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए समाज की प्रथम इकाई के रूप में परिवार का उदय हुआ। क्योंकि बिना परिवार के समाज की रचना के बारे में सोच पाना असंभव था। इसलिए समुचित विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सुरक्षा का वातावरण का होना नितांत आवश्यक हो गया है। परिवार में रहते हुए परिजनों के कार्यों व साधनों का वितरण आसान हो जाता है। साथ ही भावी पीढ़ी को सुरक्षित वातावरण एवं स्वस्थ पालन पोषण द्वारा मानव का भविष्य भी सुरक्षित होता है। उसके पूर्ण विकास का मार्ग भी प्रशस्त होता है। परिवार में रहते हुए ही भावी पीढ़ी को उचित मार्ग निर्देशन देकर जीवन के संघर्ष, विपरीत परिस्तिथियों का सामना करके जीत के लिए तैयार किया जा सकता है।
आज भी प्रासंगिक है संयुक्त परिवार
आज भी भारतीय संस्कृति के अनमोल उपहार संयुक्त परिवार के हर सदस्य को सम्पूर्ण परिवार का हितैषी माना जाता है। वर्तमान समय में भी एकल परिवार को एक मजबूरी के रूप में ही देखा जाता है। हमारे देश में आज भी एकल परिवार को मान्यता प्राप्त नहीं है। विदेशी षड्यंत्रों एवं औद्योगिक विकास के चलते संयुक्त परिवारों का बिखरना जारी है। परन्तु आज भी संयुक्त परिवार का महत्त्व कम नहीं हुआ है। अब विदेशी वैज्ञानिक भी इसका विज्ञान समझ गए है। बच्चों के पालन पोषण पर पड़ने वाले प्रभावों पर काफी गहन अध्ययन कर चुके है।
संयुक्त परिवार के विभिन्न लाभ:
सुरक्षा और स्वास्थ्य :
परिवार के प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा का दायित्व सभी परिजन मिलजुल कर निभाते हैं। अतः किसी भी सदस्य की शिक्षा, स्वास्थ्य समस्या, सुरक्षा समस्या, आर्थिक समस्या पूरे परिवार की होती है। कोई भी अनापेक्षित रूप से आयी परेशानी सहजता से सुलझा ली जाती है। जैसे यदि कोई गंभीर बीमारी से जूझता है तो भी परिवार के सब सदस्य अपने अपने सहयोग से उसको बीमारी से निजात दिलाने में मदद करते है उसे कोई आर्थिक समस्य या रोजगार की समस्या नहीं होती। ऐसे ही गाँव या मोहल्ले में किसी को उनसे पंगा लेने की हिम्मत नहीं होती संगठित होने के कारण पूर्ताया सुरक्षा मिलती है। व्यक्ति हर प्रकार के तनाव से मुक्त रहता, मस्त रहता है। उन्नति के मार्ग प्रशस्त करता है।
विभिन्न कार्यों का विभाजन :
परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण कार्यों का विभाजन आसान हो जाता है। प्रत्येक सदस्य के हिस्से में आने वाले कार्य को वह अधिक क्षमता से कर पता है। विभिन्न अन्य सामाजिक, घरेलू दायित्वों से भी मुक्त रहता है। अतः तनाव मुक्त हो कर कार्य करने में अधिक ख़ुशी मिलती है। तनावमुक्त रहने से से कार्यकुशलता बढ़ती है, व्यवहार कुशलता में सुधार होता है जिससे कार्यक्षमता बढ़ती है। उसकी कार्य क्षमता अधिक होने से व्यापार अधिक उन्नत होता है। परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ती अपेक्षाकृत अधिक हो सकती है और जीवन उल्लास पूर्ण व्यतीत होता है।
भावी पीढ़ी का समुचित विकास :
संयुक्त परिवार में बच्चों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित और उचित शारीरिक एवं चारित्रिक विकास का अवसर प्राप्त होता है। बच्चों की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है। उसे अन्य बच्चों के साथ खेलने का मौका मिलता है .माता पिता के साथ साथ अन्य परिजनों विशेष तौर पर दादा ,दादी का प्यार भी मिलता है, जबकि एकाकी परिवार में कभी कभी तो माता पिता का प्यार भी कम ही मिल पता है यदि दोनों ही कामकाजी हैं दादा, दादी से प्यार के साथ ज्ञान,अनुभव बहर्पूर मिलता है .उनके साथ खेलने, समय बिताने से मनोरंजन भी होता है उन्हें संस्कारवान बनाना ,चरित्रवान बनाना एवं हृष्ट – पुष्ट बनाने में अनेक परिजनों का सहयोग प्राप्त होता है। एकाकी परिवार में संभव नहीं हो पता।
संयुक्त परिवार में अधिक बचत :
बाजार का नियम है कि यदि कोई वस्तु अधिक मात्रा में क्रय की जाती है तो उसके लिए कम कीमत चुकानी पड़ती है। अर्थात थोक भाव पर वास्तु मिल जाती है। अर्थात संयुक्त रहने के कारण कोई भी वस्तु अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में खरीदनी होती है अतः बड़ी मात्रा में वस्तुओं को खरीदना सस्ता पड़ता है। दूसरी बात अलग अलग रहने से अनेक वस्तुएं अलग अलग खरीदनी पड़ती है, जबकि संयुक्त रहने पर कम वस्तु लेकर काम चल जाता है। उदाहरण के तौर पर एक परिवार तीन एकल परिवारों के रूप में रहता है उन्हें तीन मकान, तीन कार या तीन स्कूटर, कोई भी तीन वाहन चाहिए, तीन टेलीविजन और तीन फ्रिज इत्यादि प्रत्येक वस्तु अलग अलग खरीदनी होगी। परन्तु यदि सब एक साथ रहते हैं तो उन्हें कम मात्र में वस्तुएं खरीद कर धन की बचत की जा सकती है। .जैसे तीन स्कूटर के स्थान पर एक कार, एक स्कूटर से कम चल सकता है, तीन फ्रिज के स्थान पर एक बड़ा फ्रिज और एक A .C लिया जा सकता है इसी प्रकार तीन मकानों के साथ पर एक पूर्णतया सुसज्जित बड़ा सा बंगला लिया जा सकता है। फ़ोन, बिजली, अन्य व्यवस्था के अलग अलग व्यय के स्थान पर बचे धन से कार व वातानुकूलित मेंटेनेंस का खर्च निकल सकता है। इस प्रकार से कम बजट में अधिक उच्च जीवन शैली के साथ जीवन यापन किया जा सकता है। जीवन में अधिक सुख सुविधा से जीना है तो संयुक्त परिवार ही अच्छा विकल्प है।
परिवार में भावनात्मक सहयोग:
किसी भी विपत्ति के समय अथवा परिवार के किसी सदस्य के गंभीर रूप से बीमार होने पर पूरे परिवार के सहयोग से आसानी से पार पाया जा सकता है। जीवन के सभी कष्ट सब के सहयोग से बिना किसी को विचलित किये दूर हो जाते हैं। कभी भी आर्थिक समस्या या रोजगार चले जाने की समस्या उत्पन्न नहीं होती क्योंकि एक सदस्य की अनुपस्थिति में अन्य परिजन कारोबार को देख लेते हैं।
चरित्र निर्माण में सहयोगी :
संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे के आचार, विचार, व्यवहार पर निरंतर निगरानी बनाये रखते हैं। किसी की अवांछनीय गतिविधि पर तुरंत अंकुश लगा रहता है। अर्थात प्रत्येक सदस्य चरित्रवान बना रहता है। किसी समस्या के समय सभी परिजन उसका साथ देते हैं और सामूहिक दबाव भी पड़ता है कोई भी सदस्य असामाजिक कार्य नहीं कर पाता है। बड़े बुजुर्गों के भय के कारण शराब जुआ या अन्य कोई नशा जैसी बुराइयों से बचा रहता है।
हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते कि संयुक्त परिवार की अपनी गरिमा होती अपना ही महत्त्व होता है।
संयुक्त परिवार बिखरने के कारण
संयुक्त परिवार के महत्त्व पर चर्चा करने से पूर्व एक नजर संयुक्त परिवार के बिखरने के कारणों एवं उसके अस्तित्व पर मंडराते खतरे पर प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं। संयुक्त परिवारों के बिखरने का मुख्य कारण है रोजगार पाने की आकांक्षा। बढती जनसँख्या तथा घटते रोजगार के कारण परिवार के सदस्यों को अपनी जीविका चलाने के लिए गाँव से नगर की ओर या छोटे नगर से बड़े शहरों को जाना पड़ता है और इसी कड़ी में विदेश जाने की आवश्यकता भी पड़ती है। परंपरागत कारोबार या खेती बाड़ी की अपनी सीमायें होती हैं जो परिवार के बढ़ते सदस्यों के लिए सभी आवश्यकतायें जुटा पाने में समर्थ नहीं होता। अतः परिवार को नए आर्थिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ती है। जब अपने गाँव या नगर में नयी सम्भावनाए कम होने लगती हैं तो परिवार की नयी पीढ़ी को रोजगार की तलाश में अन्यत्र जाना पड़ता है। अब उन्हें जहाँ काम व रोजगार उपलब्ध होता है वहीँ अपना परिवार बसाना पड़ता है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं होता की वह नित्य रूप से अपने परिवार के मूल स्थान पर जा पाए। कभी कभी तो सैंकड़ो किलोमीटर दूर जाकर रोजगार करना पड़ता है।
संयुक्त परिवार के टूटने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण नित्य बढ़ता उपभोक्तावाद है। जिसने व्यक्ति को अधिक महत्वकांक्षी बना दिया है। अधिक सुविधाएँ पाने की लालसा के कारण पारिवारिक सहनशक्ति समाप्त होती जा रही है और स्वार्थ बढ़ने लगा है। अब वह अपनी खुशिया परिवार या परिजनों में नहीं बल्कि अधिक सुख साधन जुटा कर अपनी खुशिया ढूंढता है। यही संयुक्त परिवार के बिखरने का कारण बन रहा है। एकल परिवार में रहते हुए मानव भावनात्मक रूप से विकलांग होता जा रहा है। जिम्मेदारियों का बोझ औरअत्यधिक तनाव सहन करना पड़ता है। परन्तु दूसरी ओर उसके सुविधा संपन्न और आत्म विश्वास बढ़ जाने के कारण उसके भावी विकास का मार्ग भी प्रशस्त होता है। अनेकोनेक मजबूरियों के चलते भी बिखराव हो रहे है। संयुक्त परिवारों के निरन्तर बिखराव के वर्तमान दौर में भी संयुक्त परिवारों का महत्त्व कम नहीं हुआ है। वरन ये भारतीय संस्कृति का सर्वोत्तम विचार उन विदेशी लोगो को भी पसंद आने लगा है जो पहले इसका विरोध करते थे। संयुक्त परिवार का महत्व आज भी बना हुआ है। उसके महत्त्व को एकल परिवार में रह रहे लोग अधिक अच्छे से समझ पाते हैं। उन्हें संयुक्त परिवार के लाभ दृष्टिपात होने लगे है, क्योंकि किसी भी वस्तु का महत्त्व उसके अभाव को झेलने वाले अधिक समझ सकते हैं। अब संयुक्त परिवारों के विभिन्न लाभो पर चर्चा करते हैं।
संयुक्त परिवार में ही जीवन का हर पल सुखद हो सकता है :
अगर ठीक से समझा जाए तो संयुक्त परिवार में रहकर जीवन का हर अध्याय सुखद हो सकता है। जीवन का अंतिम अध्याय सर्वाधिक समस्याओं से घिरा होता है। धनार्जन के स्रोत या तो सूख जाते है या बहुत सीमित हो जाते है। शरीर को रोग घेरने लगते है। अपने परिवार के अपने ही लोग साथ छोड़ने लगते हैं या उपेक्षा करने लगते हैं। यही कारण है कि पूरे जीवन में वृद्धावस्था सबसे कष्टकारी सिद्ध होती है। वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं का समाधान भी संयुक्त परिवार में आसानी से हो जाता है।
सामाजिक कार्यों को बढ़ावा :
संयुक्त परिवार में रहकर जीवन का हर व्यक्ति के पास समय बच जाता है तो वो समय समाज के लिए दिया जा सकता है। इससे समाज को लाभ तथा मानव जीवन सुखद हो जाता है।
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