मोदी सुशासन के प्रेरणास्रोत : शिवाजी और सयाजी

शिवाजी और सयाजी से ली है मोदी ने ‘सुशासन’ की प्रेरणा

नरेंद्र मोदी को लगातार शासन सूत्र संभाले हुए आज 19 साल हो गये हैं और वो सीएम से पीएम तक, प्रशासन के शीर्ष पर रहते हुए, बीसवें वर्ष में प्रवेश करने वाले भारतीय राजनीति के बिरले व्यक्तित्व बन गये हैं. शुरू के पौने तेरह साल तक गुजरात के सीएम रहने के बाद मई 2014 से लगातार देश के पीएम बने हुए हैं मोदी. सवाल ये उठता है कि अपने शानदार प्रशासनिक रिकॉर्ड से देश और दुनिया के तमाम बड़े नेताओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनने वाले मोदी खुद किनसे प्रेरणा लेते रहे हैं, फेरहिश्त लंबी है.

सात अक्टूबर 2001, यही वो दिन था जब नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रशासन के क्षेत्र में प्रवेश किया था. उससे पहले नरेंद्र मोदी का कैरियर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर रहा था, जिसकी औपचारिक शुरुआत 1971 में हुई थी. पूरे तीन दशक तक संघ के प्रचारक के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वाह करने के बाद, जिसमें बीजेपी के केंद्रीय संगठन महामंत्री की भूमिका तक शामिल थी, मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व अटल-आडवाणी के कहने पर.

जिस समय मोदी ने गुजरात सरकार की बागडोर संभाली, उससे पहले उनके पास प्रशासन का कोई अनुभव नहीं था. अगर अनुभव था तो समाज जीवन में लोगों को एक-दूसके से जोड़ने का, संगठन को मजबूत बनाने का, चुनावी राजनीति में नये-नये प्रयोग करने का, लेकिन राज्य तो क्या, एक पंचायत चलाने का अनुभव भी मोदी के पास नहीं था, जब वो सीधे गुजरात के सीएम बने. उस वक्त मोदी खुद एमएलए का चुनाव भी नहीं लड़े थे, ये बात अलग कि अपने राजनीतिक कौशल और रणनीति के बूते वो गुजरात में पहली दफा 1995 में बीजेपी की अपने बूते की सरकार बनवाने के सूत्रधार रहे थे, या फिर 1998 में भी बीजेपी की गुजरात में सत्ता वापसी के लिए प्रचार अभियान समिति की बागडोर संभाल चुके थे. यही नहीं, मोदी बीजेपी की केंद्रीय इकाई में महासचिव की अपनी भूमिका में भी जम्मू- कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश सहित पूरे देश में अपने संगठन कौशल और सफल रणनीति की छाप छोड़ चुके थे.

लेकिन मोदी ने खुद कभी प्रशासन में फ्रंट व्हील ड्राइविंग नहीं की थी, ये बात उन्होंने खुद स्वीकारी थी, जब गुजरात के सीएम की कुर्सी पहली बार अक्टूबर 2001 में संभालने के बाद राज्य प्रशासन के अधिकारियों के साथ वो पहली बैठक कर रहे थे. मोदी के सामने चुनौती थी गुजरात में प्रशासन को दुरुस्त करने की, जिस पर जनवरी 2001 के भूकंप के बाद राहत और पुनर्वास कार्यों को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे थे और इसी वजह से तब के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को गुजरात के सीएम की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था. इससे पहले बीजेपी पंचायत, विधानसभा और लोकसभा के लिए हुए कुछ महत्वपूर्ण चुनाव गुजरात में हार चुकी थी.

तब नरेंद्र मोदी ने वनडे मैच खेलने वाली रफ्तार के साथ अपने प्रशासन को दुरुस्त करने की शुरुआत की थी, जो एक मैराथन टेस्ट पारी में तब्दील होते हुए आज 19 साल लंबी हो चुकी है और बीसवें साल में प्रवेश कर चुकी है. किसी को पता नहीं कि आखिर ये पारी कहां जाकर खत्म होगी, समर्थक तो ठीक, विरोधियों को भी अंदाजा नहीं, हर बार विरोधियों की उम्मीदें टूट जो जाती हैं मोदी के आगे, सियासी मैदान में.

पिछले 19 सालों में मोदी के प्रशासनिक कामकाज पर काफी कुछ लिखा जा चुका है, देश और दुनिया में. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने विकास का जो मॉडल विकसित किया था, वही ‘गुजरात मॉडल’ उनको पूरे देश में लोकप्रिय बना गया और 2014 में उसी के सहारे हासिल हुई लोकप्रियता के बूते वो देश के पीएम बने, ऐसे पीएम, जिन्होंने अपने बूते पर पूर्ण बहुमत वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई केंद्र में. 2019 में मोदी उससे भी बड़े बहुमत के साथ अपनी पार्टी को लोकसभा चुनावों में जीत दिला चुके हैं और 2024 तक उनकी सरकार का ये कार्यकाल रहने वाला है. आगे भी इस पारी में कोई रुकावट नहीं आने वाली, क्या राजनीतिक पंडित और क्या आम लोग, सभी 2029 में ही विपक्ष के लिए कोई गुंजाइश पैदा होने की बात करते हैं, 2024 की तो कोई चर्चा भी नहीं करता, जब फिर से लोकसभा के चुनाव होंगे. मोदी की प्रशासनिक पारी कब तक जारी रहेगी, इसको या तो वो खुद तय करेंगे या फिर देश की जनता, बीच में कोई और नहीं.

सवाल ये उठता है कि जिस मोदी ने बिना एक दिन के अनुभव के प्रशासन में प्रवेश करने के बाद भारतीय राजनीति की सबसे सफल प्रशासनिक पारी खेली है, राज्य और केंद्र दोनों ही स्तर पर, आखिर उन मोदी को बेहतर प्रशासन की प्रेरणा किससे मिलती है. आखिर कौन हैं वो लोग जिनसे मोदी ने शासन सूत्र सीखे, प्रेरणा हासिल की. मोदी पर सैकड़ों किताबें अभी तक लिखी जा चुकी हैं, लेकिन कही इस पर कोई विस्तार नहीं.

हालांकि खुद मोदी ने इसके बारे में समय-समय पर जरूर इशारा किया है. इसकी झलक पहली बार 2014 में मिली, जब वो वड़ोदरा से लोकसभा के लिए नामांकन भर रहे थे. उस साल उन्होंने वाराणसी से पहले वड़ोदरा से पर्चा भरा था. 9 अप्रैल 2014 को उन्होंने जब वड़ोदरा में अपना पर्चा भरा था, उसके तुरंत बाद मीडिया से मुखातिब हुए थे और इस दौरान उनके प्रशासनिक प्रेरणा स्रोत की झलक मिली थी.

वडोदरा शहर, जो कभी देश की सबसे समृद्ध और प्रशासनिक तौर पर सबसे विकसित रियासत बड़ौदा का केंद्र हुआ करता था, और जिसके यशस्वी शासक रहे सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय के नाम पर सयाजी नगरी के तौर पर भी जाना जाता है, उस सयाजीराव गायकवाड़ को मोदी ने उस दिन याद किया. और ये याद सिर्फ औपचारिकता के नाते नहीं, बल्कि उनके खास गुणों की तरफ इशारा करते हुए.

सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय की चर्चा करते हुए मोदी ने स्वराज और सुशासन का पाठ पढ़ने के लिए ‘माइनर हिंट्स’ किताब पढ़ने की सलाह दी थी. न सिर्फ पत्रकार, बल्कि मोदी की बात को टीवी पर सुन रहे देश के करोड़ों लोग चौंक गये थे कि आखिर ये ‘माइनर हिंट्स’ क्या है, और सयाजीराव गायकवाड़ की इतनी शिद्दत से क्यों चर्चा कर रहे हैं मोदी.

दरअसल ‘माइनर हिंट्स’ नामक किताब उन भाषणों का संग्रह है, जो महाराष्ट्र के एक गांव कवलाना में 11 मार्च, 1863 को जन्मे बारह वर्ष के एक बच्चे गोपाल को बड़ौदा रियासत के महाराजा के तौर पर तैयार करने के लिए दिये गये थे. बड़ौदा के गायकवाड़ शासकों के दूर के रिश्तेदार काशीराम गायकवाड़ के पुत्र गोपाल को इस रियासत के शासक रहे महाराजा खंडेराव गायकवाड़ की मौत के बाद उनकी विधवा महारानी जमनाबाई ने 27 मई, 1875 को गोद लिया था, बड़ौदा के नये शासन के तौर पर स्थापित करने के लिए.

गोपाल नामक उस बच्चे को बड़ौदा की गद्दी पर बिठाने के पहले प्रशासन की बारीकियां सिखाने के लिए जो औपचारिक तालीम दी गई, उसी का हिस्सा रहे थे करीब डेढ़ सौ भाषण, जो प्रशासन से जुड़े बड़े विशेषज्ञों और वरिष्ठ अधिकारियों ने दिये थे. इनमें से 46 भाषण, जो तत्कालीन दीवान टी माधवराव ने दिये थे, वही बाद में पुस्तक आकार में ‘माइनर हिंट्स’ के तौर पर मशहूर हुए. यही पुस्तक गुजराती में ‘शासन सूत्र’ के तौर पर प्रख्यात है और प्रशासन की गीता के तौर पर गुजरात में सेवा की शुरुआत करने वाले अधिकारियों को भेंट की जाती है.

टी माधव राव ने सयाजीराव गायकवाड़ को जो पाठ पढ़ाये थे, उसमें प्रशासन के सभी व्यावहारिक पहलू शामिल थे, मसलन शासक का आचरण कैसा हो, चापलूसों से कैसे बचा जाए, प्रजा के कल्याण की चिंता कैसे लगातार की जानी चाहिए. टी माधव राव, जिन्हें असाधारण योग्यता के कारण खुद राजा का खिताब मिल चुका था, सयाजी राव को ये बताया था कि हर शासक को दरबारी घेरने की कोशिश करते हैं, जो महाराजा को समझाते हैं कि राष्ट्र उनके लिए बना है, न कि वो राष्ट्र के लिए बने हैं. ऐसी परिस्थिति में महाराजा तुरंत रियासत को अपनी बपौती समझ लेते हैं और प्रजा को भेड़-बकरी के समान. माधव राव ने सयाजी राव को इससे बचने के लिए सावधान किया था, साथ में ये भी बताया था कि शासक का कर्तव्य और जिम्मेदारी बड़ी होती है, इसलिए उसे गैर-जिम्मेदाराना, अतार्किक हरकतें नहीं करनी चाहिए. माधव राव की ये सीख भी थी कि किसी भी शासक का आखिरी उद्देश्य उन लोगों को सुखी रखना है, जिन पर शासन करने का अधिकार उन्हें मिला है.

ऐसी प्रशासनिक शिक्षा के साथ 18 वर्ष की उम्र में बड़ौदा रियासत की बागडोर संभालने वाले गोपाल ने, जिन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय का औपचारिक नाम दिया गया, महाराजा के तौर पर 58 वर्षों तक लगातार शासन करते रहे. 1881 से 1939 में अपनी मौत तक, अपने लंबे शासन काल के दौरान सयाजीराव गायकवाड़ अपनी प्रजा के कल्याण, सामाजिक सुधार, वैज्ञानिक सोच, शिक्षा पर जोर, आधारभूत सुविधाओं का विकास, स्त्री सशक्तिकरण जैसे तमाम क्षेत्रों में क्रांतिकारी कदम उठाने के लिए जाने गये. राष्ट्रप्रेम के उनके किस्से तो ऐतिहासिक हैं ही. एक तरफ जहां 1911 के दिल्ली दरबार में उन्होंने ब्रिटिश सम्राट के आगे सर नहीं झुकाया, तो अपने सुदीर्घ शासन काल के दौरान ब्रिटिश सरकार की नाराजगी झेलते हुए भी महर्षि अरविंद सहित तमाम क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की जमकर मदद करते रहे.

महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ से मोदी प्रेरणा पाते रहे हैं, इसकी झलक और भी कई अवसरों पर मिली. मसलन अपने प्रथम कार्यकाल के दौरान पीएम मोदी जब राज्य सभा में महिला शिक्षा की चर्चा कर रहे थे, उस वक्त भी उन्होंने सयाजीराव गायकवाड़ का जिक्र किया था. मोदी ने कहा था कि सयाजी के राज में कोई महिला निरक्षर नहीं मिल सकती थी, भले ही उसके बाद के दौर में महिलाएं निरक्षर मिल जाएं. इतना जबरदस्त जोर था सयाजीराव गायकवाड़ का महिला शिक्षा पर.

खुद नरेंद्र मोदी को भी इसका निजी तौर पर अनुभव था. आखिर जिस वडनगर में उनका जन्म हुआ, वो पहले महेसाणा के अंदर ही आता था और महेसाणा जिला गायकवाड़ की रियासत का हिस्सा था. खुद वडनगर में मोदी ने जिस स्कूल में अपनी शुरुआती पढ़ाई की या फिर जिस लाइब्रेरी में बैठकर वो किताबें पढ़ते रहे, उनकी शुरुआत सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय के समय में ही हुई थी. गायकवाड़ के देहांत के महज 11 साल बाद मोदी का जन्म हुआ था, स्वाभाविक तौर पर सयाजी के शासन की चर्चा घर-परिवार से लेकर गांव के बड़े-बूढों से लगातार सुनते रहे थे मोदी और बड़े होने पर खुद उस शासन की खूबियों को जाना भी.

सयाजीराव गायकवाड़ की जमकर तारीफ मोदी ने तब भी की थी, जब वर्ष 2012 में इस प्रतापी महाराजा की 150वीं जयंती समारोह का आयोजन वड़ोदरा में हुआ था. उस कार्यक्रम में अपने भाषण के दौरान मोदी ने कहा था कि वो ऐसी जगह से आते हैं, जो गायकवड़ी शासन का हिस्सा रहा था और आज भी वहां कोई भी शुभ कार्य गायकवाड़ का नाम जोड़कर ही किये जाते हैं. मोदी ने कहा था कि एक सामान्य परिवार में जन्म लेने वाले सयाजीराव गायकवाड़ ने राज परिवार में पालन-पोषण होने के बाद 18 वर्ष की उम्र में बड़ौदा रियासत की सत्ता संभालकर जिस तरह के संस्थागत सुधार किये, वो उनके देहांत के सात दशक बाद भी लोगों को उनके सुशासन की याद दिलाते हैं और यही उनके शासन की बड़ी सफलता भी है.

जाहिर है, मोदी ने न सिर्फ माइनर हिंट्स को ध्यान से पढ़ा, बल्कि सयाजीराव के जीवन और प्रशासन से भी काफी प्रेरणा पाई है और उसे अपने जीवन में लागू किया है. अपने प्रचारक जीवन के शुरुआती वर्ष वड़ोदरा में गुजारने वाले मोदी 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर पिछले छह वर्षों से देश के पीएम रहने के दौरान हमेशा इसी बात का अहसास कराते आए हैं कि जनता जनार्दन की सेवा करना ही उनका एकमात्र कर्तव्य है और इसीलिए वो अपने को देश का प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि लोगों के बीच अपने को देश के प्रधान सेवक के तौर पर पेश करते रहे हैं.

सीएम से लेकर पीएम तक के अपने 19 साल के शासन के दौरान मोदी ने सुनिश्चित किया है कि सरकारी योजनाओं का फायदा समाज के गरीब से गरीब आदमी को जाए और उन्हें ध्यान में रखकर प्रशासन अपनी योजना बनाए. यही वजह है कि उन्होंने गुजरात में जहां आदिवासी, मछुआरों, दलित और पिछड़ों को अपने शासन के केंद्र में रखा, तो केंद्र सरकार की बागडोर संभालने के बाद महिलाओं से लेकर गांव के किसान और गरीब तक की चिंता की और अपनी तमाम योजनाओं के जरिये उनके दिल में जगह बनाई.

चापलूस उन्हें घेर नहीं सकें और जनता से वो दूर नहीं हो सकें, मोदी ने ये भी सुनिश्चित किया है. यही वजह है कि मोदी आज भी सबके लिए उपलब्ध हैं, धरातल पर क्या चल रहा है, ये उन्हें साफ तौर पर पता होता है. दिल्ली से बाहर हमेशा देश के हर हिस्से में जाते हैं, लोगों से जीवंत संबंध बनाए रखते हैं, उनकी समस्याओं को समझते हैं और फिर समाधान करते हैं. जहां तक सामान्य लोगों से मिलने का सवाल है, कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता, जब वो आम लोगों से नहीं मिलते.

संसद के सत्र के दौरान देश भर से लोग उनके पास आते रहते हैं, गरीब मछुआरों से लेकर सामान्य किसान तक. सबके लिए समय निकालने के बावजूद फालतू में एक सेकेंड बर्बाद नहीं करते, समय का भी उतना ही ध्यान. कभी छुट्टी लेते नहीं, 18-19 घंटे काम का सिलसिला लगातार चलता रहता है. जाहिर है उनके मौजूदा सियासी प्रतिद्वंदियों के पास न तो उनकी मेहनत करने की क्षमता और न ही इच्छा शक्ति. यही वजह है कि उन्हें चुनौती देने वाला भारत के सियासी परिदृश्य में दूर-दूर तक कोई दिखता नहीं, जो विरोध के लिए आते भी हैं वो छिटपुट बादल की तरह, जो थोड़े समय के लिए गरजने के बाद थाइलैंड या यूरोप-अमेरिका में जाकर खो जाते हैं.

हालांकि अपने सियासी दुश्मनों के लिए अबूझ पहेली बन चुके मोदी जब शासन में आए, तो उस वक्त सरकारें कैसे काम करती हैं, इसका उन्हें कोई प्रत्यक्ष अनुभव नहीं था. उन्हें प्रशासन की बारीकियां सिखाने में आईएएस अधिकारी पीके मिश्रा ने भी अहम भूमिका निभाई, जो मुख्यमंत्री बनते ही 2001 में उनके प्रधान सचिव नियुक्त किये गये. खुद मोदी ने एक-दो बार इसका जिक्र किया कि कैसे मिश्रा जी ने उनका प्रशासन का ज्ञान बढ़ाया. उसकी खूबियों और खामियों से परिचित कराया.

पीके मिश्रा के प्रति मोदी का ये विश्वास ही था कि जब वो यूपीए शासन काल के दौरान केंद्रीय कृषि सचिव के तौर पर रिटायर हुए, तो मोदी ने उन्हें गुजरात इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमिशन का चेयरमैन बनाया और फिर उसके बाद गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट का चेयरमैन, जहां से वो सीधे दिल्ली आए, जब मोदी 2014 में देश के पीएम बने और पीके मिश्रा को उनका एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाया गया. तब से पीके मिश्रा उनके साथ लगातार जुड़े हुए हैं और अब मोदी के दूसरे कार्यकाल के दौरान उनके प्रिंसिपल सेक्रेटरी की भूमिका में है, तमाम महत्वपूर्ण नीतियों के निर्माण और नियुक्तियों में अहम भूमिका निभाते हैं.

मोदी ने अपने दो दशक लंबे प्रशासनिक कैरियर के दौरान लगातार सीखने की कोशिश की है. कभी देश के प्रमुख मैनेजमेंट संस्थान आईआईएम अहमदाबाद के शिक्षकों से तो कभी मशहूर न्यायविद वीके कृष्ण अय्यर से, जिनसे केरल जाकर मुलाकात की थी मोदी ने. लगातार सीखने की वो भावना ही रही है मोदी की, जिसकी वजह से प्रशासन के मामले में उन्होंने बड़ी लकीर खींची है. यही वजह है कि मोदी से आज देश और दुनिया के नेता प्रशासन पर मजबूत पकड़ का गुर सीखने में लगे हैं, जनता की नब्ज कैसे थामी जाए, इसकी प्रेरणा पाते हैं और कैसे लगातार शासन में नये प्रयोग कर जन कल्याण के कार्यों को असरदार बनाया जाए, ये जानते हैं.

सीएम से लेकर पीएम तक मोदी के नये प्रयोगों और योजनाओं की फेरहिश्त लंबी है, जो सैकड़ों किताबों और लाखों लेखों का हिस्सा है. लेकिन मोदी, जिन्होंने कभी सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय और उनके शासन सूत्र से प्रेरणा ली थी, आज भी लगातार सीख रहे हैं, नये प्रयोग कर रहे हैं. उनकी हाल की बढ़ी हुई दाढ़ी में लोग शिवाजी की तस्वीर देखते हैं. आखिर मोदी इस महान राष्ट्रप्रेमी शासक के ‘हिंदवी स्वराज’ की कल्पना को जमीन पर उतारने में जी जान से जो लगे हैं और जिन शिवाजी के जीवन पर आधारित नाटक ‘जाणता राजा’ को बड़े चाव से वो न सिर्फ कई दशक पहले देख चुके हैं, बल्कि गुजरात के तमाम हिस्सों में उसका प्रदर्शन भी करवाया, जब वो सीएम थे वहां. मोदी के सीखने का सिलसिला अब भी नहीं रुका है, वो भी तब जब देश और दुनिया के नेता उन पर निगाह रखकर शासन-सूत्र सीख रहे हैं.

साभार ….®.जागले

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