लघु कथा…. लव जिहाद
केरल हाईकोर्ट में दलील पर दलील दी जा रही थी । मामला कुछ ईसाई लड़कियों के मुस्लिम युवकों से निकाह का था । क्रोनोलॉजी ये बता रही थी कि एक गिरोह के द्वारा एक समुदाय विशेष की लड़कियों को टार्गेट किया जा रहा था । जज साहब ने पूरा फैसला 140 पन्ने का लिखा था लेकिन उन हजारों शब्दों के बीच में एक शब्द इतिहास बनने वाला था… जो उनके उसी फैसले में मौजूद था… लव जिहाद ।
अगले दिन अख़बारों में यही नया शब्द सुर्ख़ियाँ बन गया… लव जिहाद । इन दो शब्दों में पूरा तिलिस्म था । लव एक बड़ा ही अद्भुत और अनोखा शब्द है । जो बात लव में है.. वो बात प्यार… प्रेम… मोहब्बत में बिलकुल भी नहीं है । अंग्रेज़ी के इस शब्द मे फेंटेंसी और रूमानियत का का पूरा मिश्रण है । दूसरा शब्द है जिहाद… यानी मजहब के के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध । यानी लव जिहाद का पूरा मतलब हुआ… एक ऐसा युद्ध जिसका हथियार रूमानियत है… फेंटेंसी है… धोखेबाज़ी है और फ़रेब है ।
ऐसा ही एक अखबार रफ़ीक पंचरवाला के हाथ में भी आया । रफ़ीक को अख़बार पढ़ने का कोई शौक़ नहीं था वो दिन भर पंचर बनाने के बाद सिर्फ अपनी भूख मिटाने के लिए पास ही के ढाबे पर गया था । कागज का वो टुकड़ा जो मटन गिरने के बाद भी गीला होने से बच गया था… उस छोटे से टुकड़े पर ही लिखा था…. लव जिहाद ।
खैर… रफ़ीक की दिनचर्या काफी व्यस्त थी । जुम्मे का दिन था… मौलाना तारीक ज़मील का मुबारक जलसा था…. जिसमें रात को शामिल होना सभी का फर्ज था । इसी फर्ज को निभाने के लिए आधी रात मवात की एक छोटे से गांव में रफ़ीक भी पहुंच गया ।
मौलाना तारीक जमील… सूफ़ी आलिम थे । सूफ़ियत उनके अंदर कूट कूट कर भरी हुई थी । और यही सूफियत आज उनके मंच से भी नजर आ रही थी । बहुत ही सादा लिबाज़… टखने के ऊपर तक पैजामे… बीच से साफ मूंछे और लंबी सफेद दाढ़ी… सिर पर इबादत वाली टोपी और ज़ुबान तीखी तलवार । खैर जलसा चल रहा था… मौलाना तारिक जमील बोल रहे थे… ऐ बंदों तुम क्या इन मैली कुचैली औरतों से दिल लगाते हो… उस जन्नत के बारे में जानो जहां 72 हूरें तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं । यहां की दुनियावी औरतों में तो कचरा भरा हुआ है… इन खाँसती-थूकती औरतों पर तुम्हारा दिल आ जाता है और तुम कहते हो कि तुम दीवाने हो गए… पागल हो गए । ऐ बंदों इन गंदी औरतों से अपना दिल ना लगाओ.. दिल लगाओ… उस जन्नती हूर से जिसके हाज़त नहीं होती है…. सिर्फ एक पसीने की बूँद गिरती है और हजात रफ़ा हो जाती है । इन जन्नती औरतों में अपना दिल लगाओ जो खुश्क…अंबर… जाफरान और फानूस से बनी हुई हैं । आ हा हा हा… उनके नाखूनों में इतनी चमक हैं कि अगर जन्नत से सूरज की तरफ उँगली उठा दें तो सूरज की रोशनी फीकी पड़ जाए । इन जन्नती हूरों का जिस्म इतना मीठा है कि अगर आसमान से थूक दें तो सात समंदर का खारा पानी एकदम शहद की तरह मीठा हो जाये । कहां तुम पड़े हो इन मैली कुचैली औरतों के चक्कर में । तभी एक मासूम पाक बंदा अचानक जलसे के बीच में ही खड़ा हो गया तो मौलना साहब इसके लिए करना क्या होगा ? ऐसी जन्नती हूरें आखिर कहां से मिलेंगी । फिर मौलाना तारिक जमील ने फ़रमाया.. मज़हब का प्रचार करो… लोगों को कौम में शामिल करो… दूसरे धर्म वालों को अपनी तरफ लाओ तो पक्का जन्नत मिलेगी… हूरें भी जरूर मिलेंगी ।
बहरहाल जलसा खत्म हुआ… रात भर रफ़ीक पंचरवाला के ख्वाबों में 72 हूरों का नृत्य चलता रहा । सुबह रफ़ीक पंचरवाला उठा और अपनी पंचर की दुकान सँभालने चल पड़ा । लेकिन उसके दिमाग़ में सिर्फ और सिर्फ एक ही बात घूम रही थी… इस दुनिया में तो हम पंचर ही जोड़ते रह गए… कम से कम जन्नत में तो अय्याशी का इंतज़ाम हो जाए । हालाँकि भारत सरकार रफ़ीक पंचरवाला जैसे लोगों के जीवन को सुधारने के लिए हुनरमंद जैसी तमाम योजनाओं को चला रही थी । लेकिन रफ़ीक पंचरवाला को मौलाना तारीक जमील की योजना में ज्यादा दम नजर आ रहा था ।
बहरहाल रफ़ीक पंचरवाला ने मौलाना साहब की योजना पर काम करना शुरू कर दिया । पंचरवाला की दुकान के पास ही राजकीय गर्ल्स विद्यालय था । वहीं से एक लड़की रोज़ पंचरवाला की दुकान के पास वाली सड़क से होकर ही जाया करती थी । लड़की का नाम था रेनू । काफी दिनों तक रफ़ीक पंचरवाला स्टॉकिंग करता रहा । हाए… हेलो से बात धीरे धीरे आगे बढ़ी । फिर एक दिन रफ़ीक पंचरवाला ने बोल ही दिया… मैं राहुल रौशन… पास के ही कॉलेज में पढ़ता हूँ आप कहाँ पढ़ती हैं ? आखिर बात थोड़ी और आगे बढ़ी । एक दिन हिम्मत करके रफ़ीक पंचरवाला उर्फ राहुल रौशन ने बोल ही दिया… आई लव यू । फिर क्या… दना दन दना दन… तीन चार तड़ाकें पड़े मियाँ के होश ठिकाने आ गए ।
मियाँ चुपचाप बैटरी रिक्शा में बैठे और निकल लिए । लेकिन उसी बैटरी रिक्शा में एक पोस्टर लगा हुआ था । बंगाली दरवेश शमशुद्दीन औलिया… कैसी भी समस्या हो… हर समस्या का समाधान होगा… पति क़ाबू में नहीं है… संपर्क करें… प्रेमिका ने प्रेम ठुकरा दिया…. संपर्क करें । प्रेमिका को तड़पाकर आपकी बाँहों में डाल देंगे बाबा । बहरहाल रफ़ीक पंचरवाला ने फ़ौरन फ़ोन नंबर नोट किया और फोन घुमा दिया…. अगले दिन औलिया से अप्वाइंटमेंट फ़िक्स हो गया । औलिया ने रफ़ीक पंचरवाला को चमगादड़ का सुरमा दिया और इसके बदले में पूरे पचास रुपए लिए ।
अगले दिन रफ़ीक पंचरवाला उर्फ़ राहुल रौशन वही चमगादड़ का सुरमा लगाकर फिर पहुंचा रेनू के पास । पास आता देखते ही रेनू की सहेली ने उससे कहा देखो तुम्हें कितनी मौहब्बत करता है चार चाँटों के बाद भी इश्क का भूत उतरा नहीं है । कम से कम इस बार उसे इस तरह बेइज्जत मत करना । रफ़ीक पंचरवाला ने आगे बढ़कर अपनी आँखें.. चार की और प्रेम पत्र वाला एक कागज का टुकड़ा थमा दिया । रेनू ने चुपचाप कागज का टुकड़ा ले लिया और अपने रस्ते चल दी । खैर रफ़ीक पंचरवाले को लगा कि चमगादड़ का सुरमा काम कर गया और उधर रेनू को लगा कि चलो कैसा भी है मोहब्बत करना गुनाह भी नहीं । आखिरकार ये मोहब्बत चढ़ते चढ़ते परवान चढ़ गई और शादी भी हो गई ।
अगले दिन सुबह रफ़ीक पंचरवाला अपनी दुकान के लिये निकल पड़ा । फिर क्या था ? दो चार दिनों में ही सारा भेद खुल गया । ये राहुल रौशन नहीं ये तो रफ़ीक पंचरवाला है । चीखना चिल्लाना शुरू हो गया…. हे भगवान ! ये क्या हो गया । इतना बड़ा फ़रेब । बीतते बीते किसी तरह चार महीने बीत गए… रोज का लड़ाई झगड़ा । रफीक ने बहुत कोशिश की.. लेकिन रेनू रजिया नहीं बनी । आखिर रफ़ीक भी रेनू नाम की इस दुनियावी औरत से परेशान हो गया और उसने कुछ वैसा ही किया जैसा इसी साल हुआ था । हाथ पैर काट कर अपने बेडरूम में ही गड्ढा खोदकर गाड़ दिया । और फिर उसी बेडरूम में आराम से कई सालों तक रहता रहा । आखिरकार उसकी मौत हो गई । ये राज भी कब्र वाले राज के साथ दफ़्न हो गया । अब रफ़ीक पंचरवाला जन्नत में इस वक्त कौन सी हूर के साथ कौन से शीश महल में है ये तो नहीं पता । लेकिन रेनू की लाश आज भी एक बेडरूम में कई फ़ीट नीचे कब्र में गडी है । ये कोई लाश भी नहीं है… ये एक संस्कृति है जिसने पराजित मनोवृत्ति को स्वीकार कर लिया है ।
दिलीप पाण्डेय
वसुधैव कुटुंबकम
(सत्य घटनाओं पर आधारित है इसलिए फालतू का बहस बवाल करने से बचें । आत्ममंथन करें)