नेशनल पैंथर्स पार्टी के मुख्य संरक्षक एवं वरिष्ठ अधिवक्ता प्रो. भीम सिंह ने भ्रमित कश्मीरी नेताओं, विशेषकर नेशनल कांफ्रेंसय नेताओं से अनुच्छेद 35-ए को वापस लाने पर सवाल उठाया है। उन्होंने भ्रमित नेतृत्व को बताया कि अनुच्छेद 370 अस्थायी था, जिस पर संसद को इसमें संशोधन करने की शक्ति थी। उन्होंने भारत सरकार से यह प्रश्न उठाये कि एकमात्र बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार करे कि क्या भारत की संसद पूरे 370 के प्रावधान को हटा सकती थी या नहीं? क्या संसद को विलयपत्र के मुद्दे पर 370 के खंड में संशोधन करने की शक्ति मिली है, जिसमें भारत के राष्ट्रपति को इसमें कोई बदलाव करने की शक्ति मिली थी? क्या इस धारा में संशोधन संसद कर सकती थी? 26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा द्वारा विलयपत्र में उल्लिखित इस खंड को संसद द्वारा कैसे नजरअंदाज किया गया, जो महाराजा ने तीन विषय रक्षा, विदेश मामले और संचार भारत संघ को सौंप दिये थे? इसी तरह बाकी 565 रियासतों ने अपनी-अपनी रियासतों को विलय किया था। जम्मू-कश्मीर के विलयपत्र को नहीं बदला गया, न ही जम्मू-कश्मीर का पूर्ण विलय किया गया, जिस तरह बाकी 565 रियासतों को भारत से जोड़कर भारत संघ 1950 में भारत के संविधान में लिखित रूप से आ गया।
उन्होंने भारत सरकार से 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 में संशोधन पर संसद के अधिनियम औचित्य सिद्ध करने का भी सवाल उठाए। भारत की संसद ने पहले ही अनुच्छेद 371 के तहत एक और कानून बना दिया है, जिसमें कई लोगों को समान रियायत दी गई हैं, जिनमें उत्तर-पूर्व, हिमाचल प्रदेश और अन्य राज्य शामिल हैं। उन्होंने सभी सांसदों से खुलकर इस मुद्दे को संसद में लाने की अपील की, ताकि जम्मू-कश्मीर में 370 में दी गयी रियायतों के विषय में 371 की तरह जम्मू-कश्मीर को भी वैसे ही रियायतें प्रदान की जायं, जो महाराजा हरिसिंह ने 1927 को अपने कानून में जम्मू-कश्मीर में ‘स्टेट सब्जेक्ट‘ बनाकर लोगों को दी थी, जिसे बाद में जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने निवासी कानून का दर्जा देकर जम्मू-कश्मीर में लोगों के अधिकार को सुरक्षित रखा था। अनुच्छेद 370 में यह भी प्रावधान है कि रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में संसद कानून नहीं बना सकती है। यह अधिकार भी भारत के राष्ट्रपति को है और यह भी जानना जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर के विलयपत्र को भारत की संविधान सभा ने 1950 में बने संविधान में भी विलयपत्र को बाकी 565 रियासतों के विलयपत्रों की तरह संविधान में नहीं जोड़ा था। आज प्रश्न उठता है कि क्या भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के विलयपत्र को स्वीकृत किये बिना विलय के मुद्दों को एक संसद के साधारण कानून से लागू कर सकती है? आज उस 370 के इस खंड में भारतीय संसद को सीमित अधिकार थे, परंतु संसद ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर में 370 खत्म करने के समय कोई भी कानूनी रास्ता नहीं इस्तेमाल किया। क्या जम्मू-कश्मीर का विलय 370 को खत्म करने से मुकम्मल हो गया है? क्या 370 को खत्म करने से जम्मू-कश्मीर का विलय संविधान के अनुसार पूर्ण हो गया हैै? इन प्रश्नों को उŸार भारतीय संसद को ढूंढना पड़ेगा, ताकि जम्मू-कश्मीर राज्य का विलय बाकी सुविधाओं की तरह हो सके। भारतीय संसद को इस पर भी सोचना पडे़गा कि अनुच्छेद 371 लगाकर जो सुविधाएं बाकी रियासतों को बाद में दी थी, वही सुविधाएं जो ‘स्थायी निवासी कानून‘ में शामिल थी, वही जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी दी जा सकती हैं?
अनुच्छेद 35-ए के बारे में प्रो. भीम सिंह ने 35-ए के समर्थक उन कश्मीरी रहनुमाओं से पूछा है कि क्या डा. फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर के लोगों को मौलिक अधिकारों से फिर वंचित रखना चाहते हैं, जिन्हें 70 साल यानि 1954 से लेकर 2019 तक वंचित रखा गया था, जिसमें शेख अब्दुल्ला, अब्दुल बेग की जेलों की दास्तां इतिहास में मौजूद है और यह भी 35-ए ही वजह से कांगे्रस विधायक प्रो. भीम सिंह खुद लगभग तीन सालएक नए कानून ‘जनसुरक्षा कानून‘ के तहत 1979 में जम्मू-कश्मीर की जेलों में बंद रहे और सैंकड़ों साथी पैंथर्स पार्टी सालों तक जेल में बंद रहे और आज भी उसी जनसुरक्षा कानून के तहत बंद हैं, जबकि जनसुरक्षा कानून को राष्ट्रपति ने स्वयं 5 अगस्त, 2019 को खत्म कर दिया था। जो कश्मीरी नेता 35-ए की वकालत कर रहे हैं, उन्हें यह भी मालूम होना चाहिए कि जब वे सŸाा में थे, तो हजारों विपक्षी कार्यकर्ता, जिसमें पैंथर्स पार्टी भी शामिल हैं, जेलों को नजरबंद रहे। यह भी एक त्रासदी है कि इस कानून को समर्थन करने वाले राजनीतिक दल, जिनमें डा. फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी शामिल हैं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर के इतिहास को कब्रिस्तान में दफना दिया है।
पैंथर्स सुप्रीमो ने कहा कि तीन ही दल नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और पैंथर्स पार्टी जम्मू-कश्मीर में मान्यताप्राप्त दल हैं और इनमें दो दल नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी 35-ए को वापस लाने की वकालत कर रहे हैं, जिससे यह साबित हो रहा है कि शायद उनको सŸाा में आने की फिर उम्मीद है, ताकि वे फिर हजारों जम्मू-कश्मीर के राजनीति से जुड़े कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर सकंे।
प्रो. भीम सिंह ने कहा कि पैंथर्स पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी से खुलकर अनुच्छेद 370 के संशोधन के बारे में बात करने के लिए तैयार है, परंतु अनुच्छेद 35-ए के बारे में कोई भी बात नहीं हो सकती इसको वापस लाने की, क्योंकि इसको वापस लाने से जम्मू-कश्मीर के सभी लोगों के मौलिक अधिकार फिर से पहले की तरह खतरे में पड़ जाएंगे। भारतीय संविधान के अध्याय-3 जिसमें मौलिक अधिकार दिये गये हैं, उसमें कोई भी संशोधन या परिवर्तन स्वीकार नहीं। पैंथर्स पार्टी जम्मू-कश्मीर के राज्य दर्जे की बहाली के लिए वचनबद्ध है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि इसके लिए सभी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील राजनीतिक दलों से सहयोग की पूरी उम्मीद करता हूं।
उन्होंने भारत सरकार से 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 में संशोधन पर संसद के अधिनियम औचित्य सिद्ध करने का भी सवाल उठाए। भारत की संसद ने पहले ही अनुच्छेद 371 के तहत एक और कानून बना दिया है, जिसमें कई लोगों को समान रियायत दी गई हैं, जिनमें उत्तर-पूर्व, हिमाचल प्रदेश और अन्य राज्य शामिल हैं। उन्होंने सभी सांसदों से खुलकर इस मुद्दे को संसद में लाने की अपील की, ताकि जम्मू-कश्मीर में 370 में दी गयी रियायतों के विषय में 371 की तरह जम्मू-कश्मीर को भी वैसे ही रियायतें प्रदान की जायं, जो महाराजा हरिसिंह ने 1927 को अपने कानून में जम्मू-कश्मीर में ‘स्टेट सब्जेक्ट‘ बनाकर लोगों को दी थी, जिसे बाद में जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने निवासी कानून का दर्जा देकर जम्मू-कश्मीर में लोगों के अधिकार को सुरक्षित रखा था। अनुच्छेद 370 में यह भी प्रावधान है कि रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में संसद कानून नहीं बना सकती है। यह अधिकार भी भारत के राष्ट्रपति को है और यह भी जानना जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर के विलयपत्र को भारत की संविधान सभा ने 1950 में बने संविधान में भी विलयपत्र को बाकी 565 रियासतों के विलयपत्रों की तरह संविधान में नहीं जोड़ा था। आज प्रश्न उठता है कि क्या भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के विलयपत्र को स्वीकृत किये बिना विलय के मुद्दों को एक संसद के साधारण कानून से लागू कर सकती है? आज उस 370 के इस खंड में भारतीय संसद को सीमित अधिकार थे, परंतु संसद ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर में 370 खत्म करने के समय कोई भी कानूनी रास्ता नहीं इस्तेमाल किया। क्या जम्मू-कश्मीर का विलय 370 को खत्म करने से मुकम्मल हो गया है? क्या 370 को खत्म करने से जम्मू-कश्मीर का विलय संविधान के अनुसार पूर्ण हो गया हैै? इन प्रश्नों को उŸार भारतीय संसद को ढूंढना पड़ेगा, ताकि जम्मू-कश्मीर राज्य का विलय बाकी सुविधाओं की तरह हो सके। भारतीय संसद को इस पर भी सोचना पडे़गा कि अनुच्छेद 371 लगाकर जो सुविधाएं बाकी रियासतों को बाद में दी थी, वही सुविधाएं जो ‘स्थायी निवासी कानून‘ में शामिल थी, वही जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी दी जा सकती हैं?
अनुच्छेद 35-ए के बारे में प्रो. भीम सिंह ने 35-ए के समर्थक उन कश्मीरी रहनुमाओं से पूछा है कि क्या डा. फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जम्मू-कश्मीर के लोगों को मौलिक अधिकारों से फिर वंचित रखना चाहते हैं, जिन्हें 70 साल यानि 1954 से लेकर 2019 तक वंचित रखा गया था, जिसमें शेख अब्दुल्ला, अब्दुल बेग की जेलों की दास्तां इतिहास में मौजूद है और यह भी 35-ए ही वजह से कांगे्रस विधायक प्रो. भीम सिंह खुद लगभग तीन सालएक नए कानून ‘जनसुरक्षा कानून‘ के तहत 1979 में जम्मू-कश्मीर की जेलों में बंद रहे और सैंकड़ों साथी पैंथर्स पार्टी सालों तक जेल में बंद रहे और आज भी उसी जनसुरक्षा कानून के तहत बंद हैं, जबकि जनसुरक्षा कानून को राष्ट्रपति ने स्वयं 5 अगस्त, 2019 को खत्म कर दिया था। जो कश्मीरी नेता 35-ए की वकालत कर रहे हैं, उन्हें यह भी मालूम होना चाहिए कि जब वे सŸाा में थे, तो हजारों विपक्षी कार्यकर्ता, जिसमें पैंथर्स पार्टी भी शामिल हैं, जेलों को नजरबंद रहे। यह भी एक त्रासदी है कि इस कानून को समर्थन करने वाले राजनीतिक दल, जिनमें डा. फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी शामिल हैं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर के इतिहास को कब्रिस्तान में दफना दिया है।
पैंथर्स सुप्रीमो ने कहा कि तीन ही दल नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और पैंथर्स पार्टी जम्मू-कश्मीर में मान्यताप्राप्त दल हैं और इनमें दो दल नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी 35-ए को वापस लाने की वकालत कर रहे हैं, जिससे यह साबित हो रहा है कि शायद उनको सŸाा में आने की फिर उम्मीद है, ताकि वे फिर हजारों जम्मू-कश्मीर के राजनीति से जुड़े कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर सकंे।
प्रो. भीम सिंह ने कहा कि पैंथर्स पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी से खुलकर अनुच्छेद 370 के संशोधन के बारे में बात करने के लिए तैयार है, परंतु अनुच्छेद 35-ए के बारे में कोई भी बात नहीं हो सकती इसको वापस लाने की, क्योंकि इसको वापस लाने से जम्मू-कश्मीर के सभी लोगों के मौलिक अधिकार फिर से पहले की तरह खतरे में पड़ जाएंगे। भारतीय संविधान के अध्याय-3 जिसमें मौलिक अधिकार दिये गये हैं, उसमें कोई भी संशोधन या परिवर्तन स्वीकार नहीं। पैंथर्स पार्टी जम्मू-कश्मीर के राज्य दर्जे की बहाली के लिए वचनबद्ध है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि इसके लिए सभी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील राजनीतिक दलों से सहयोग की पूरी उम्मीद करता हूं।
ह./बंसीलाल शर्मा, एडवोकेट
सलाहकार-जेकेएनपीपी