108 सदस्यीय गौ संसद का गठन 7 नवम्बर को, गौसेवक जज, प्रशासक, शिक्षाविद्, वैज्ञानिक, राजनेता और गौशाला संचालक होगें सदस्य

गौधन सदा से ही देवभूमि भारतवर्ष के पाँच प्रमुख आधारों में से एक रहा है। जब तक इस देश ने गोमाता की सेवा की और उनका ध्यान रखा, तब तक इस देश में सुख व समृद्धि का वास रहा। गाय में समस्त देवी-देवता निवास करते हैं, इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए अवतारी महापुरुष गीतानायक भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम ‘गोपाल’ भी है।

 

गोपाल यानी गोमाता की पालना करने वाला, उनसे प्रेम करने वाला, उनकी सेवा करने वाला। अर्थात् प्रभु श्रीकृष्ण ने भी गोमाता को पूजनीया मानकर उनकी सेवा-सुश्रूषा की है। उन्होंने तो गौ की सन्तानों यानी बछडे़-बछिया तथा उनके दृुग्ध एवं गोमय पर निर्भर गोपालकों व किसानों के बच्चों के पक्ष में एक अद्भुत सत्याग्रह आन्दोलन खड़ा कर उसी आधार पर एक आततायी शासन-सत्ता को शिकस्त दी और उसका समूल नाश किया।

 

 

गौरक्षा हेतु हुए बलिदानों में 7 नवम्बर 1966 की घटना अविस्मरणीय

ऐसे भारत देश में गोमाता आज सबसे ज्यादा संकट में है। अंग्रेजी शासनकाल से भारतीय गाय पर जो संकट शुरू हुए, वे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। गौसंरक्षण और गौसंवर्द्धन के लिए श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती से लेकर अब तक न जाने कितने महापुरुषों ने अनथक संघर्ष किए हैं और बलिदान दिए हैं। बीती शताब्दी के वर्ष 1966 में तो 7 नवम्बर के दिन देश की संसद के सामने गौभक्तों व गौपालकों ने अपनी ही सरकार के हाथों इतनी बड़ी शहादत दी, जिसके सामने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुआ जलियावालां काण्ड बहुत छोटा पड़ गया। इस दिन 40 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत देश और 40 लाख की जनसंख्या वाले दिल्ली राज्य की एक चैथाई यानी 10 लाख जनता गौमाता के अधिकारों के संरक्षण के लिए सड़कों पर उतर पड़ी थी और गौमाता के अधिकारों की रक्षा की माँगें लेकर देश के सर्वोच्च विधायी केन्द्र ‘संसद’ तक पहुँच गयी। उस समय की सरकार के आदेश पर पुलिस की गोलियों से 5,500 से ज्यादा सन्त और गोपालक शहीद हो गए थे। इनमें सैकड़ों व्यक्ति गोलियों का शिकार हुए थे तो भारी संख्या में लोग भगदड़ के फलस्वरूप काल-कवलित हो गए थे। यह घटना भारतीय लोकतन्त्र के मुख पर एक ऐसा काला धब्बा है, जिसे मिटाने का पुरुषार्थ केवल और केवल भारतवर्ष में गौहत्या पर रोक तथा गौसंरक्षण व गौसंवर्द्धन के विविध उपाय करके ही किया जा सकता है।

जरूरत है कि हमारी सरकारें भीष्म की नहीं बल्कि जटायु की भूमिका निभाएँ

दिनांक 7 नवम्बर 1966 की उपरिलिखित दुर्भाग्यशाली घटना के पहले और बाद में 26 बार भारतीय संसद में विधेयक लाकर गोहत्या पर पाबन्दी लगवाने के प्रयास किए गए, लेकिन हर बार यह बिल दलगत राजनीति का शिकार होता रहा। बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि भारतीय संविधान की धारा-48 के तहत हमारी सरकार पशुओं की रक्षा का स्पष्ट वचन देती है, लेकिन गौमाता के मामले में वह 15 अगस्त 1947 से आज तक असफल रही। सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस श्री आर. सी. लाहौटी द्वारा Cow dung is more valuable then Kohinoor जैसी ऐतिहासिक टिप्पणी के साथ पारित आदेशों को भी हमारी सरकारों ने दरकिनार किया। इस आदेश की अनुपालना हो सकी होती तो गोपालक किसानों की आर्थिक स्थिति मे तो जबरदस्त सुधार आता ही, गोरक्षा भी हो सकी होती। गोधन महासंघ ने जटायु बनकर गोमाता रूपी सीता को बचाने का पुरुषार्थ करने के भरसक प्रयत्न किए हैं। बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारी सरकारें संस्कृति सीता हरण के समय ‘जटायु’ की भूमिका का निर्वहन करने की बजाए द्रौपदी चीरहरण के समय ‘भीष्म’ जैसी भूमिका गौमाता के सन्दर्भ में सदा से ही अपनाती रहीं। राष्ट्रधर्म का उत्तरदायित्व निभाने को संकल्पित बड़ी राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रमुख आज ‘पाण्डव’ बनकर सिर झुकाए बैठे हैं। आज का कसाई और गौ-स्मगलर ‘रावण’ की भूमिका में है, जिसके विरुद्ध कोई जटायु आवाज नहीं उठा रहा। ऐसी परिस्थिति में मानों! कालों के महाकाल ‘शिव’ ने कोरोना जैसी स्थिति पैदा करके सम्पूर्ण नियन्त्रण अपने हाथ में लेने का संकल्प ले डाला है। काश! यह देश और हमारी सरकारें इससे कुछ सबक ले सकें।

14 बरस पहले स्थापित राष्ट्रीय गोधन महासंघ ने किए अनथक प्रयास

 

नई दिल्ली। आगामी 7 नवम्बर को दिल्ली सहित भारत के विभिन्न जिलों में गौ – संसद का आयोजन होगा। Cow Parliyament में कुल 108 गौ सांसद बैठेंगे। मुख्य आयोजन राजधानी दिल्ली में होगा। गौ संरक्षण व गौ संवर्धन से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर पेश औ दीर पारित होंगे प्रस्ताव।

गौधन सदा से ही देवभूमि भारतवर्ष के पाँच प्रमुख आधारों में से एक रही है। जब तक इस देश ने गोमाता की सेवा की और उनका ध्यान रखा, तब तक इस देश में सुख व समृद्धि का वास रहा। गाय में समस्त देवी-देवता निवास करते हैं, इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए अवतारी महापुरुष गीतानायक भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम ‘गोपाल’ भी है।गोपाल यानी गोमाता की पालना करने वाला, उनसे प्रेम करने वाला, उनकी सेवा करने वाला। अर्थात् प्रभु श्रीकृष्ण ने भी गोमाता को पूजनीया मानकर उनकी सेवा-सुश्रूषा की है। उन्होंने तो गौ की सन्तानों यानी बछडे़-बछिया तथा उनके दृुग्ध एवं गोमय पर निर्भर गोपालकों व किसानों के बच्चों के पक्ष में एक अद्भुत सत्याग्रह आन्दोलन खड़ा कर उसी आधार पर एक आततायी शासन-सत्ता को शिकस्त दी और उसका समूल नाश किया।

गौसेवा से मिले आशीर्वाद से अवधकुल में जन्में थे प्रभु श्रीराम
हमारे देश में गोधन को सबसे बड़ा धन कहा गया है। यहाँ के व्यक्तियों की सम्पन्नता की पहचान गोधन के आधार पर होती रही है। आध्यात्मिक संस्कारों से लेकर दान की उच्चतम अवस्था में ‘गोदान’ का महत्व सर्वोपरि है। गोमाता की सन्तुष्टि को परमात्मा की सन्तुष्टि माना गया है। ‘गाय सुखी तो सब सुखी’ की उक्ति माँ भारती की हर सन्तान की जुबान पर सदैव रही है। इस ऋषि राष्ट्र में शक्तिशाली व चक्रवर्ती सम्राटों के वंश गोमाता के आशीर्वाद से चले हैं तथा कालान्तर में उन कुलों में युगीन शक्ति-अवतार हुए, जिनमें अयोध्या के महाराजाधिराज दिलीप के राजकुल में कई पीढियों के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म एक ऐसी ऐतिहासिक घटना है जिसने इस प्राचीन व विशाल देश को भयमुक्त बनाकर उसे एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया। राजा राम ने अयोध्या से खाली हाथ निकलकर गौओं व ऋषियों की रक्षा स्थानीय लोगों के संगठन खड़े करके की तथा गौआधारित आर्थिक विकास का एक ऐसा प्रारूप इस देश के सामने रखा, जिसकी रामराज्य की स्थापना में बड़ी भूमिका रही। आज भी कोई भी समाज या देश कृष्णराज्य या बुद्धराज्य की संकल्पना नहीं करता, भारत का जन-जन, यहाँ तक कि दुनिया के विभिन्न देशों में ‘रामराज्य’ की कल्पना, कामना व प्रार्थना की जाती है।

गौरक्षा हेतु हुए बलिदानों में 7 नवम्बर 1966 की घटना अविस्मरणीय

ऐसे भारत देश में गोमाता आज सबसे ज्यादा संकट में है। अंग्रेजी शासनकाल से भारतीय गाय पर जो संकट शुरू हुए, वे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। गौसंरक्षण और गौसंवर्द्धन के लिए श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती से लेकर अब तक न जाने कितने महापुरुषों ने अनथक संघर्ष किए हैं और बलिदान दिए हैं। बीती शताब्दी के वर्ष 1966 में तो 7 नवम्बर के दिन देश की संसद के सामने गौभक्तों व गौपालकों ने अपनी ही सरकार के हाथों इतनी बड़ी शहादत दी, जिसके सामने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुआ जलियावालां काण्ड बहुत छोटा पड़ गया। इस दिन 40 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत देश और 40 लाख की जनसंख्या वाले दिल्ली राज्य की एक चैथाई यानी 10 लाख जनता गौमाता के अधिकारों के संरक्षण के लिए सड़कों पर उतर पड़ी थी और गौमाता के अधिकारों की रक्षा की माँगें लेकर देश के सर्वोच्च विधायी केन्द्र ‘संसद’ तक पहुँच गयी। उस समय की सरकार के आदेश पर पुलिस की गोलियों से 5,500 से ज्यादा सन्त और गोपालक शहीद हो गए थे। इनमें सैकड़ों व्यक्ति गोलियों का शिकार हुए थे तो भारी संख्या में लोग भगदड़ के फलस्वरूप काल-कवलित हो गए थे। यह घटना भारतीय लोकतन्त्र के मुख पर एक ऐसा काला धब्बा है, जिसे मिटाने का पुरुषार्थ केवल और केवल भारतवर्ष में गौहत्या पर रोक तथा गौसंरक्षण व गौसंवर्द्धन के विविध उपाय करके ही किया जा सकता है।

जरूरत है कि हमारी सरकारें भीष्म की नहीं बल्कि जटायु की भूमिका निभाएँ

दिनांक 7 नवम्बर 1966 की उपरिलिखित दुर्भाग्यशाली घटना के पहले और बाद में 26 बार भारतीय संसद में विधेयक लाकर गोहत्या पर पाबन्दी लगवाने के प्रयास किए गए, लेकिन हर बार यह बिल दलगत राजनीति का शिकार होता रहा। बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि भारतीय संविधान की धारा-48 के तहत हमारी सरकार पशुओं की रक्षा का स्पष्ट वचन देती है, लेकिन गौमाता के मामले में वह 15 अगस्त 1947 से आज तक असफल रही। सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस श्री आर. सी. लाहौटी द्वारा Cow dung is more valuable then Kohinoor जैसी ऐतिहासिक टिप्पणी के साथ पारित आदेशों को भी हमारी सरकारों ने दरकिनार किया। इस आदेश की अनुपालना हो सकी होती तो गोपालक किसानों की आर्थिक स्थिति मे तो जबरदस्त सुधार आता ही, गोरक्षा भी हो सकी होती। गोधन महासंघ ने जटायु बनकर गोमाता रूपी सीता को बचाने का पुरुषार्थ करने के भरसक प्रयत्न किए हैं। बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारी सरकारें संस्कृति सीता हरण के समय ‘जटायु’ की भूमिका का निर्वहन करने की बजाए द्रौपदी चीरहरण के समय ‘भीष्म’ जैसी भूमिका गौमाता के सन्दर्भ में सदा से ही अपनाती रहीं। राष्ट्रधर्म का उत्तरदायित्व निभाने को संकल्पित बड़ी राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रमुख आज ‘पाण्डव’ बनकर सिर झुकाए बैठे हैं। आज का कसाई और गौ-स्मगलर ‘रावण’ की भूमिका में है, जिसके विरुद्ध कोई जटायु आवाज नहीं उठा रहा। ऐसी परिस्थिति में मानों! कालों के महाकाल ‘शिव’ ने कोरोना जैसी स्थिति पैदा करके सम्पूर्ण नियन्त्रण अपने हाथ में लेने का संकल्प ले डाला है। काश! यह देश और हमारी सरकारें इससे कुछ सबक ले सकें।

14 बरस पहले स्थापित राष्ट्रीय गोधन महासंघ ने किए अनथक प्रयास

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 7 नवम्बर 1966 की दुर्भाग्यशाली घटना के बाद के 40 वर्षों में इस देश ने भारतीय गाय की सुरक्षा के विषय पर लगभग चुप्पी साधे रखी। साल 2006 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संध के सर संघचालक स्मृतिशेष श्रद्धेय श्री के.सी.सुदर्शन जी की प्रेरणा से ‘राष्ट्रीय गोधन महासंघ’ की स्थापना की गयी। विगत 14 वर्ष में महासंघ के प्रयासों से देश में गौशालाओं की संख्या 12,000 से बढ़कर 19,000 हुई, वहीं इस बीच भारतीय नस्ल की गायों की संख्या 12.50 करोड़ से बढ़कर 19.33 करोड़ हुई है। ग्रामीण स्वावलम्बन की दिशा में महासंघ की प्रेरणा से अनेक स्थानों पर विविध गौउत्पादों का निर्माण आरम्भ हुआ, जिसका बहुविधि विस्तार होता रहा है। बी.एस.एफ. द्वारा गायों की होेने वाली नीलामी के फलस्वरूप भारी संख्या में गायों की बांग्लादेश को होेने वाली तस्करी को माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश से रोका गया, साथ ही अन्य अनेक प्रयास इस दिशा में किए गए। इन प्रयासों से गौसंरक्षण व गोैसंवर्द्धन के प्रति राष्ट्रीय संचेतना बढ़ी, सन्तोष का विषय है कि यह जागरूकता सतत् बढ़ती जा रही है। निःसन्देह यह कार्य आप स्वजनों के सक्रिय सहयोग से ही सम्भव हो सका है।

आगामी 7 नवम्बर को भारत के हर जिले में आहूत होंगी गौ संसद

आपको अवगत कराना है कि सात नवम्बर के दुर्भाग्यशाली दिवस पर राष्ट्रीय गोधन महासंघ के आह्वान पर नयी दिल्ली सहित सम्पूर्ण देश में, प्रत्येक जनपद मुख्यालय पर ‘गौ संसद’ का आयोजन करने का संकल्प गौपालकों एवं गौसंगठनों द्वारा लिया गया है। आज जब कोरोना के वैश्विक संकटकाल में पूरी दुनिया पर ‘शिव-शासन’ स्थापित है, तब परिवर्तन एवं अनुशासन के सूत्रधार, कल्याण के दाता, प्रलयंकारी भगवान शिव को गौ-पार्लियामेन्ट का स्पीकर मानकर उनके समक्ष एक समृद्ध प्रस्ताव लाया जाएगा। गौसंसद में लोकतन्त्र के सबसे महत्वपूर्ण घटक भारतीय नागरिकों के प्रतिनिधि यानी गौ-सांसद आवश्यक विधेयक लायेंगे और उस प्रस्ताव को बहुमत से पारित किया जाएगा। गौ-संसद के इन माननीय सदस्यों में सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्टों के पूर्व न्यायाधीश, प्रसिद्ध अध्यात्मवेत्ता, कुलपति जैसे वरिष्ठ शिक्षाविद, प्रख्यात पशुधन वैज्ञानिक, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, जाने-माने पर्यावरणविद, भारत सरकार में सचिव एवं राज्यों में मुख्य सचिव जैसे पदों पर सेवारत रहे ब्यूरोक्रेट, लब्ध-प्रतिष्ठित चिकित्सा विज्ञानी, वरिष्ठ आयुष विशेषज्ञ, गौशालाओं के प्रमुख प्रतिनिधि तथा गौउत्पाद इकाइयों के जमीनी प्रतिनिधि ‘गौ-सांसद’ के रूप में सम्मिलित होंगे, जिनकी कुल संख्या 108 होगी। सहर्ष सूच्य है कि यह गौ-संसद देश के हर जिला मुख्यालय पर आहूत होगी, सबसे बड़ा औपचारिक कार्यक्रम देश की राजधानी दिल्ली में सम्पन्न होगा।

साभार – श्री राम महेश मिश्र, संस्थापक अध्यक्ष, भाग्योदय फाउंडेशन / संरक्षक, आल इंडिया जर्नलिस्ट यूनियन

 

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