हवा के खिलाफ, चिराग का संघर्ष
अविनाश त्रिपाठी
हवा को अक्सर चिराग बुझाते देखा है, लेकिन चिराग लवो को रोशन कर, हवा के खिलाफ ऐसी जंग छेड़ दें जिसमे उसकी लव काँप भले जाय, बुझे नही. एक ऐसा चिराग कंगना रानौत है जो हिमान्चल की वादियो मे 23 मार्च 1986 की पैदा होती है और 30 साल की उम्र तक कई आँधियो को चिराग की ताक़त और आँधियो को उनकी औकात बता देती है.
(Source: Kangana Ranaut graces the special screening of Manikarnika – The Queen Of Jhansi at Sunny Super Sound in Juhu )
ये सामान्य बात नही है फिल्म जगत से बाहर का कोई सदस्य इंडस्ट्री को मठ बना चुके महंत के खिलाफ बिना हथियार के खड़ा हो जाता है. कुछ लोग टूटते तारो को देख दुआ मे हाथ नही फैलाते, तारो को तोड़ लेने का हौसला रखते है. उस इंडस्ट्री जिसमे 90 % फिल्म मे महिला , हीरो के लक्ष्य को साधने मे मदद करती हुई या प्रेम के कुछ छड़ बाँटकर हीरो का गम कम करने का दोयम काम करती है, एक लड़की अपने लिए ताकतवर रोल लिखवाने मे कामयाब होती है. ये वो रानी है जिसे अपनी खुशी के लिए किसी रिश्ते, किसी सहारे की ज़रूरत नही. उसे अपनी रोशनाई से अपनी आज़ादी की दास्तान लिखने का हुनर हासिल है. अगर इतिहास मे जाय, शायद ये भगत सिंह की शहादत का दिन है, ये हिन्दी कविता के सबसे होनहार आवाज़ अवतार सिंग पाश की आवाज़ को खामोश करने का दिन है. शायद कंगना मे आत्मसम्मान की रक्षा के लिए बुलंद आवाज़ मे खड़ा होना, और विद्रोह के प्रतिरूप इन महापुरुषो का उस दिन दुनिया छोड़ना, ये भी संयोग है. कंगना के बचपन मे जाय तो वहाँ भी ” अपना ज़माना आप बनाते है अहल-ए-दिल, हम वो नही जिनको ज़माना बना गया” को चरितार्थ करती हुए दिखती हैं.
घर वालो के डाक्टर बनने की ख्वाहिश के बीच , कुछ दूसरे ख्वाब कंगना की आँखो मे पलने लगी. अपने लिए अलग आसमान और ज़्यादा उँची उड़ान का सपना नही बल्कि हौसला लिए मुंबई पहुचने पर कंगना का स्वागत नही हुआ. महीनो तक ब्रेड आचार खा कर अपने संघर्षो को धार देनी पड़ी. राज़ 2, लाइफ इन आ मेट्रो, फैशन , तनु वेड्स मनु से होते हुए कंगना को उस उँचाई तक पहुचना था जहा पहुच कर लोग किंग या क्वीन हो जाते है. कंगना क़्वीन हो गयी . एक ऐसे लड़की जो जातीय ज़िंदगी मे भी आज़ाद, आत्मसम्मान से भरपूर, अपना मकाम बनाना चाहती है. क्वीन देखकर लगता है कि हम कोई किरदार देख रहे है या कंगना की खुद की कहानी उन्ही की ज़बानी देख रहे है. फिल्म ही नही, वास्तविक ज़िंदगी मे भी कंगना अपने सम्मान को ठेस पहुचाने वाले के सामने विरोध की प्रचंड ज्वाला बनकर झड़ी हो गयी. उन्होने ये नही देखा कि सामने वाला कद या इंडस्ट्री मे पहुच कितनी है. जिन लोगो के खिलाफ कई पहुच वाले स्टार भी दबी आवाज़ मे फुसफुसाते रहे लेकिन खुलकर सामने नही आ पाए, कंगना ऋतिक और करन जौहर को बताया, की लड़किया गूंगी नही होती.
(Source: Hrithik Roshan and Kangana Ranaut)
संबंधो के आधार पर नही, प्रतिभा के दम पर भी लोग इस इंडस्ट्री मे अपना परचम लहरा सकते हैं. इस प्रतिभा के सफ़र मे चट्टान कितनी भी बड़ी हो, बहुत देर तक पानी का सफ़र रोक नही सकती. जिस इंडस्ट्री मे अभिनेत्री अपने खूबसूरती के साथ के समझौता नही करना चाहती, वही कंगना ने रोल के हिसाब से बुरा लगने को भी सहजता के साथ निभाया. वो तनु वेड्स मनु मे गाँव की हरियानवी लड़की के किरदार मे भी जान फूंकती दिखती है. शायद यही वजह है कि कंगना अपने फिल्म और रियल ज़िंदगी मे बिल्कुल अलग अलग दिखती हैं. वो फिल्म और वास्तविक ज़िंदगी मे एक सी सजी धजी गुड़िया जैसे अभिनेत्री होने की बजाय फिल्म मे मजबूत और जीवन मे साहसी महिला है.
(Source: Kangana Ranaut and R. Madhavan in film Tanu Weds Manu Returns)
रानी लक्ष्मी बाई में मनु के किरदार से लक्ष्मी बाई बनने के सफर में कंगना ने अपनी कलाई के कंगन को उतार , उसमे लोहे के कड़े डाल दिए, उंगलियों में पकड़ में पानी को भी चीर दे, ऐसी तलवार पहना दी. घुंघराले बालो में सजी धज ये गुड़िया अब वीरांगना बन चुकी थी. कमाल ये रहा की माधुरी दीक्षित के बाद कोई अदाकारा , अपने नायक को गौड़ करके, खुद फिल्म का बोझ अपने कंधे पर ले ले, ये हुनर सिर्फ कंगना में दिखाई दिया
पिछले कुछ दिनों कगना के बेहद मुश्किल में रहे। सुशांत केस में , मुंबई पुलिस की भूमिका पर संदेह व्यक्त करते ही एक तबका उनके पीछे पड़ गया. सुशांत की आत्महत्या के पीछे फिल्म इंडस्ट्री के पावरफुल लोगो की संभावित भूमिका का इशारा करते ही, फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा तबका उनके खिलाफ हो गया. फिर मुंबई में उनके आने पर, उनकी खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन हो सकता है और इसको लेकर उनके कहे गए विवादास्पद बयान पर एक राजनीतिक दल , उनके विरुद्ध तरह तरह के बयान देने लगा।
देखते देखते ये लड़ाई एक एक्ट्रेस बनाम प्रदेश के मुख्यमंत्री की हो गयी. इस लड़ाई से कंगना का आर्थिक नुक्सान बहुत हुआ लेकिन राजनीतिक पार्टी की गरिमा ज़रूर कम हो गयी।
कंगना के मुद्दे सही है या नहीं, उनके हर आरोप में कितनी सच्चाई है ये तो आने वाला वक़्त बताएगा लेकिन काम के लालच में खामोश रहने वाला मर्द समाज, कही खुद को घुटा घुटा ज़रूर महसूस कर रहा है। इन मुद्दों की आंच, सफ़ेद पड़ गयी राख के नीचे बहुत सालो से धधक धधक रही थी जिसे कंगना ने कुरेद कर ,एक बार आग ज़रूर भड़का दी है।
अविनाश त्रिपाठी के ब्लॉग से साभार