ओवेसी – गांधी – गोडसे – विचार तो करना हो

*अत्यंत चिंतनीय एवं विचारणीय लेख*

*ओवेसी – गांधी – गोडसे*
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योगेंद्र यादव ने कहा, “असाउद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी AIMIM राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम महत्वाकांक्षाओं की संगठित ताकत बन कर उभर रही है।ओवैसी मतलब, मुसलमानों की “क्षेत्रीय बंधक राजनीति” से मुक्ति।”
लेकिन योगेंद्र की इस टिपण्णी ने मेरे इस विचार को और मजबूती दी है जिसे आपके सामने रख रहा हूं।
ओवैसी बहुत जल्द भारतीय मुसलमानों की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा का प्रतिनिधित्व करते हुए आजादी के पहले वाले जिन्ना बन कर उभरेंगे। आजादी के बाद वाली पारी में यह जिन्ना क्या गुल खिलाएगा, यह बहुसंख्य हिन्दुओं का रवैया तय करेगा।मुसलमानों की “राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा” क्या है? संसार का हर गैर इस्लामिक राष्ट्र समझता है।
दूसरे, महागठबंधन जैसे खिचड़ी और क्षेत्रीय दायरे में सीमित, जातीय आधार वाली एनसीपी,राजद, सपा, बसपा या टीएमसी सरीखी पार्टियां धीरे-धीरे AIMM की छतरी के नीचे पनाह लेंगी।
अजित पवार, अखिलेश, तेजस्वी, ममता, मायावती कोई भविष्य के नेता नहीं हैं ,भविष्य के “ओवैसी आश्रित” नेता हैं। लिख कर रख लीजिए। जैसे हाल के वर्षों में सबकी छतरी रही कांग्रेस आज क्षेत्रीय दलों की छतरियों के नीचे पनाह ले रही है।
राहुल का वायनाड से लड़ना और जीतना इसका प्रमाण है ।बिहार नतीजों पर AIMIM की जीत पर इससे बेहतर राजनीतिक अंतरदृष्टि नहीं मिली।
सत्ता की सियासत में हर खेमे से उठती बात पर नजर रखनी चाहिए। सिर्फ बोलना नहीं, विरोधियों को सुनना भी चाहिए।

एक दिन आएगा जब गांधी की जगह गोडसे की मूर्तियां लगेंगी।
क्योंकि गोडसे सही साबित हो चुके हैं और मुसलमान बार-बार गांधी को गलत साबित कर देता है। अभी जब ओवैसी ने बिहार के सीमांचल में 5 सीटें जीत लीं तो मुसलमानों ने एक बार फिर गांधी को गलत साबित कर दिया।
जब भारत बंटा तो बलूचिस्तान से बंगाल तक 9 से 10 करोड़ मुसलमान रहे होंगे। मुसलमानों ने अपने अलग देश के लिए रोना धोना मचाया और जंगी जुनून पैदा किय। हिंदुओं का कत्लेआम किया तो गांधी ने देश का बंटवारा स्वीकार कर लिया ।
तब कांग्रेस में मौजूद सरदार पटेल लॉबी ने बिलकुल साफ कहा। अंबेडकर ने भी कहा कि सुनियोजित बंटवारा करो और सारे मुसमलानों को देश से बाहर कर दो। पाकिस्तान भेज दो ताकी सांप्रदायिकता की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जाए लेकिन गांधी नहीं माना और यहां भी मुसलमानों को रहने दिया।
अब टूटे फूटे भारत में 9 करोड नहीं 25 करोड़ मुसलमान हैं और वो (अधिकांशत:) पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं या फिर उसका समर्थन करते हैं या मुखर होकर विरोध नहीं करते हैं । यानी कुरान शरीफ के अनुयायियों ने बार-बार गांधी के पूरे अहिंसा, सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता के सिद्धांतों को खारिज कर दिया है। अब अगर ओवैसी ये कहता है कि हम तुमको 15 मिनट में खत्म कर देंग।अगर कश्मीर से किसी मौलाना की आवाज उठती है कि अब देश में इतने मुसमलान हो गए हैं कि फिर से बंटवारा कर सकते हैं तो बार-बार गोडसे सही साबित होते हैंऔर गांधी गलत साबित होता है।मुसलमानों ने उस वक्त भी गांधी को गलत साबित कर दिया जब दिल्ली में छत से सुरक्षाबलों पर तेजाब की बाल्टियां उड़ेल दी गईं थीं ।
मुसलमानों ने उस वक्त भी गांधी को गलत साबित कर दिया जब शाहीनबाग में जिन्ना के समर्थन में नारे लगे। शरजील इमाम जैसा अलगाववादी विचारक भी गांधी को गलत साबित करता है ।
अभी जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ईशनिंदा करने वाले की हत्या करने के नारे लगे,तब भी मुसलमानों ने गांधी को गलत साबित कर दिया था।
अभी जब वल्लभगढ़ में निकिता तोमर की सरेआम हत्या कर दी गई तो भी गांधी ही गलत साबित हुआ।
गांधी बार बार गलत साबित होता है इसीलिए कहता हूं कि लोगों के दिलों से गांधी की प्रतिमा उखड़ चुकी है अब देखना ये है कि गली मोहल्लों चौराहों में और कितने दिन ये मूर्तियां खड़ी रहती हैं ?

इतिहास गोडसे का पुनर्मूल्यांकन करेगा।✅

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