आज के घृणा द्वेष और मारामारी के युग में भी विश्व की रक्षार्थ है सनातन संकृति।
हमारा #सनातन_वैदिक_धर्म पहले संपूर्ण धरती पर व्याप्त था। पहले धरती के सात द्वीप थे- #जम्बू, #प्लक्ष, #शाल्मली, #कुश, #क्रौंच, #शाक एवं #पुष्कर।*
इसमें से #जम्बूद्वीप सभी के बीचो बीच स्थित है।
#राजा_प्रियव्रत सहित अन्य कई ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शिवजी के अनुशासित विश्व पर राज किया है। ये संपूर्ण धरती के थे और #राजा_अग्नीन्ध्र सिर्फ जम्बूद्वीप के राजा थे।
जम्बूद्वीप में नौ खंड हैं- #इलावृत, #भद्राश्व, #किंपुरुष, #भारत, #हरि, #केतुमाल, #रम्यक, #कुरु और #हिरण्यमय।
इसमें से भारतखंड को ही भारत वर्ष कहा जाता था।
भारतवर्ष के भी 9 खंड हैं- इसमें इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है।
केबल भारतवर्ष का इतिहास ही सनातन संस्कृति का इतिहास नहीं है वरन् सम्पूर्ण विश्व में हमारी सांस्कृतिक धरोहरों का इतिहास बिखरा पड़ा है।
ईस्वी सदी की शुरुआत में जब हमारे अखंड भारत से अलग दुनिया के अन्य हिस्सों में लोग पढ़ना-लिखना और सभ्य होना सीख ही रहे थे, तो उस समय भारत में विक्रमादित्य, पाणीनी, चाणक्य जैसे विद्वान व्याकरण और अर्थशास्त्र के गूढ रहस्यमयी गुत्थियां सुलझाने में लगे थे।
जब विश्व के लोग नंगे घूमा करते थे तब हमने महीन मलमल, मखमली कपड़ो का अविष्कार कर लिया था। जब अन्यत्र लोग जंगली जानवरों का माँस खा कर जीवन यापन कर रहे थे तब हमारे पूर्वजो ने खेती करने के यंत्रों का आविष्कार करके खेती करना सीख लिया था।
जब समस्त विश्व के लोग भित्ति चित्र भी बनाना नही जानते थे। अक्षर भी नहीं सीखे थे गूंगे बहरो की तरह रहते थे। वस्त्र हीनरहते थे। उस समय पर भारत में संस्कृति, संस्कार, वैज्ञानिक, व्यवहारिक, पद्धतियां खेतीबाड़ी यंत्र, भू शोधन यंत्र आदि का आविष्कार कर चुके थे। जब लोगों को अक्षर ज्ञान नाम का कोई ज्ञान नहीं था तब भारत में शास्त्र, वेद और विज्ञान के ग्रंथ लिखे जाने लगे थे। जब विश्व में कोई लिखना पढ़ना नहीं जानता था। भाषा का बोध तक नहीं था। उस समय पर भारत में व्याकरण पर शोध शुरू हो गया था और विश्वविद्यालय खोले जा चुके थे।
इसके बाद आर्यभट्ट, वराहमिहिर जैसे विद्वान अंतरिक्ष को छान रहे थे। वसुबंधु, धर्मपाल, सुविष्णु, असंग, धर्मकीर्ति, शांतारक्षिता, नागार्जुन, आर्यदेव, पद्मसंभव जैसे लोग उन विश्वविद्यालय में पढ़ते थे जो सिर्फ भारत में ही थे। तक्षशिला, विक्रमशिला, नालंदा आदि अनेक विश्व विद्यालयों में देश विदेश के लोग पढ़ने आते थे।
तो यदि आप भारतीय हैं तो गर्व कीजिए कि आप एक महान विरासत का हिस्सा हैं, अपने धर्मग्रंथो का अध्ययन कीजिये और उनके ज्ञान से स्वयं को उन्नत और श्रेष्ठ बनाइयेI
आओ सनातन की महान विरासत से, अद्भुत ज्ञान से अपने जीवन का निर्माण कीजिये।
इसलिये मैं कहता हूँ कि शान्ति, सद्भाव व विश्व के समस्त प्राणियों की रक्षार्थ है सनातन संस्कृति।
सत्य सिर्फ सनातन है। विश्व की महान सनातन संस्कृति ही विश्व में शान्ति स्थापित कर सकती है।
गुरुजी भू
विश्व चिंतक