—:साईं बाबा एक अनकहा सच:— आज मैं शिर्डी साईं के सारे राज का पर्दाफाश कर रहा हूं, कृपया ध्यान जरुर दे की सभी सबूत शिर्डी से प्रकाशित साईं सच्चरित्र 👉📒 से लिए गये है।
इसलिए इनमे से किसी भी प्रमाण को पहले जांच लें और उसके बाद सही होने पर ही कुछ वाद विवाद करें।साईं असल में क्या है कहा से आया, जन्म मरण और फिर इतना लम्बे समय बाद उसका अचानक भगवान बन कर निकलना,
ये सब कोई संयोग नहीं सोचा समझा षड्यंत्र है,
ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसी MI5 जी हाँ मित्रो,ये वही ब्रिटिश एजेंसी है जिसने श्री राम मंदिर आन्दोलन के बाद अचानक साईं की भक्ति में आई तेजी देखी, लेकिन वैसे ब्रिटेन और शिर्डी के साईं का रिश्ता बहुत ही गहरा है क्योंकि ये साईं वही है जो 1857 की क्रांति में कुछ लूटेरो के साथ पकड़ा गया था, और अहमदनगर में पहली बार साईं की फोटो ली गयी थी,जो इस पूरे पोस्ट के अंत में आपको देखने को मिलेगी।MI5 का गठन १९९० में हुआ था, पहले विश्व युद्ध के समय, पर साईं का पूरा इतिहास खोज निकलने में इस खूफिया एजेंसी का महत्वपूर्ण योगदान है। 👉साईं बाबा का जन्म:- साईं का जन्म भी कब हुआ कब नहीं किसी को सत्य नहीं पता। कुछ बताते हैं 27 सितंबर 1830 में तो कुछ बताते हैं 27 सितंबर 1838 में हुआ था, पर कैसे हुआ और उसके बाद की पूरी कथा बहुत ही रोचक है, साईं के पिता का असली नाम था “बहरुद्दीन_पिंडारी” जो कि अफगानिस्तान का एक पिंडारी था। इस पर एक फिल्म भी आई थी जिसमे पिंडारियो को देशभक्त बताया गया है, ठीक वैसे ही जैसे गाँधी ने मोपला और नोआखली में हिन्दुओ के हत्यारों को स्वतंत्रता सेनानी कहा था। 👉◆ औरंगजेब की मौत के बाद मुग़ल साम्राज्य ख़तम सा हो गया था केवल दिल्ली उनके अधीन थी, मराठा के वीर सपूतो ने एक तरह से हिन्दू साम्राज्य की नीव रख ही दी थी, ऐसे समय में मराठाओ को बदनाम करके उनके इलाको में लूटपाट करने का काम ये पिंडारी करते थे।
👉◆ इनका एक ही काम था लूटपाट करके जो औरत मिलती उसका बलात्कार करना, आज एक का बलात्कार कल दूसरी का, इस तरह से ये मराठाओ को तंग किया करते थे, पर समय के साथ साथ देश में अंग्रेज आये और उन्होंने इन पिंडारियो को मार मार कर ख़तम करना शुरू किया।
👉◆ साईं का बाप जो एक पिंडारी ही था, उसका मुख्यकाम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना, एक बार लूटपाट करते करते वह महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुचा, जहा वह एक वेश्या के घर रुक गया, उम्र भी जवाब दे रही थी, सो वो उसी के पास रहने लग गया।
👉कुछ समय बाद उस वेश्या से उसे एक लड़का और एक लड़की पैदा हुआ, लड़के का नाम उसने “चाँद मियां” रखा और उसे लेकर लूटपाट करना सिखाने के लिए उसे अफगानिस्तान ले गया।
👉उस समय अंग्रेज पिंडारियो की ज़बरदस्त धर पकड़ कर रहे थे, इसलिए बहरुद्दीन भेष बदल कर लूटपाट करता था। उसने अपना सन्देश वाहक चाँद मिया को बनाया। चाँद मिया आज कल के उन मुसलमान भिखारियों की तरह था जो चादर फैला कर भीख मांगते थे, जिन्हें अँगरेज़ Blanket Begger कहते थे।
👉चाँद मिया का काम था लूट के लिए सही वक़्त देखना और सन्देश अपने बाप को देना, वह उस सन्देश को लिख कर उसे चादर के नीचे सिल कर हैदराबाद से अफगानिस्तान तक ले जाता था, परंतु एक दिन चाँद मियां अग्रेजो के हत्थे चढ़ गया और अंग्रेजों ने चांद मियाँ को जेल में डाल दिया। उसे पकडवाने में झाँसी के लोगो ने अंग्रेजो की मदद की जो अपने इलाके में हो रही लूटपाट से परेशान थे।
👉उन्ही दिनों देश में पहली आजादी की क्रांति हुई और पूरा देश क्रांति से गूंज उठा, अंग्रेजो के लिए विकट समय था और इसके लिए उन्हें खूंखार लोगो की जरुरत थी, बहर्दुद्दीन तो था ही धन का लालची, सो उसने अंग्रेजो से हाथ मिला लिया और झाँसी चला गया।
👉उसने लोगो से घुलमिल कर झाँसी के किले में प्रवेश किया और समय आने पर पीछे से दरवाजा खोल कर रानी लक्ष्मी बाई को हराने में अहम् भूमिका अदा की। यही चाँद मिया आठ साल बाद जेल से छुटकर कुछ दिन बाद शिर्डी पंहुचा और वहां के सुलेमानी लोगो से मिला जिनका असली काम था गैर-मुसलमानों के बीच रह कर चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना।
👉चाँद मियां ने वही से “अलतकिया” का ज्ञान लिया और हिन्दुओ को फ़साने के लिए साईं नाम रख कर शिर्डी में आसन जमा कर बैठ गया, मस्जिद को जानबूझ कर एक हिन्दू नाम दिया और उसके वहा ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया।
👉एक षड्यंत्र के तहत साँईं को भगवान के रूप में प्रचारित किया गया, और पीछे से हिन्दू मुस्लिम एकता की बाते करके स्वाभिमानी मराठाओ को मुर्दा बनाने के लिए उन्हें उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढाया गया।
👉परंतु साईं का असली मकसद था लोगो में इस्लाम को बढ़ावा देना। इसका एक उदाहरण साईं सत्चरित्र में है कि साईं के पास एक पुलिस वाला आता है जिसे साईं मार मार भगाने की बात कहता है।
👉अब असल में हुआ ये की एक पंडित जी ने अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाने के लिए साईं को सोंप दिया, परंतु साईं ने उसका “खतना” कर दिया।
👉जब पंडितजी को पता चला तो उन्होंने कोतवाली में रिपोर्ट कर दी, साईं को पकड़ने के लिए एक पुलिस वाला भी आया जिसे साईं ने मार कर भगाने की बात कही थी।
👉जब पुलिस वाला साईं को पकड़ने गया था और साईं बुरका पहन कर भागा था।और वही फोटो अंत में देखने को मिलेगी इस पोस्ट में। —-:कुछ प्रश्न जिनके उत्तर किसी के पास नहीं हैं:—- 🙄👉हिन्दू धर्म एक सनातन धर्म है, लेकिन आज कल लोग इस बात से परिचित नही है क्या? 🙄👉जब भारत मे अंग्रेजी सरकार अत्याचार और सबको मौत के घाट उतार रही थी तब साई बाबा ने कौन सा ब्रिटिश अंग्रेजो के साथ आंदोलन किया ? 🙄👉जिदंगी भीख मांगने मे कट गई? माना कि मस्जिद मे रह कर कुरान पढ़ना तो जरूरी था। लेकिन क्या बकरे हलाल करना जरूरी था ? 🙄👉श्रीमद भगवत गीता मे लिखा है कि श्मशान और समाधि की पुजा करने वाले 👉मनुष्य राक्षस योनि 👈को प्राप्त होते हैं, फिर साईं बाबा की कब्र पर लोग पूजा क्यों करने जाते हैं? 🙄👉साईं ने यह कभी नहीं कहा कि ‘सबका मालिक एक’। “साईं सच्चरित्र” के अध्याय 4, 5, 7 में इस बात का उल्लेख है कि वे जीवनभर सिर्फ ‘अल्लाह मालिक है’ यही बोलते रहे। कुछ लोगों ने उनको हिन्दू संत बनाने के लिए यह झूठ प्रचारित किया कि वे ‘सबका मालिक एक है’ भी बोलते थे। यदि वे एकता की बात करते थे, तो कभी यह क्यों नहीं कहा कि ‘राम मालिक है’ या ‘भगवान मालिक है।’ 🙄👉कोई हिन्दू संत सिर पर “कफन” जैसा नहीं बांधता, ऐसा सिर्फ मुस्लिम फकीर ही बांधते हैं। जो पहनावा साईं का था, वह एक मुस्लिम फकीर का ही हो सकता है, ठीक वैसे जैसे मुस्लिम लोग अपने सिर पर टोपी पहन कर सिर ढकते हैं, हिन्दू धर्म में सिर पर सफेद कफन जैसा बांधना वर्जित है या तो जटा रखी जाती है या किसी भी प्रकार से सिर पर बाल नहीं होते। 🙄👉साईं बाबा ने रहने के लिए मस्जिद का ही चयन क्यों किया? वहां और भी स्थान थे, लेकिन वे जिंदगीभर मस्जिद में ही रहे। मस्जिद के अलावा भी तो शिर्डी में कई और स्थान थे, जहां वे रह सकते थे। मस्जिद ही क्यों? भले ही मंदिर में न रहते, तो नीम के वृक्ष के नीचे एक कुटिया ही बना लेते। उनके भक्त तो इसमें उनकी मदद कर ही देते।
🙄👉साईं सच्चरित्र📒 के अनुसार- साईं बाबा पूजा-पाठ, ध्यान, प्राणायाम और योग के बारे में लोगों से कहते थे कि इसे करने की कोई जरूरत नहीं है। उनके इस प्रवचन से पता चलता है कि वे हिन्दू धर्म विरोधी थे। साईं बाबा का मिशन था- लोगों में एकेश्वरवाद के प्रति विश्वास पैदा करना। उन्हें कर्मकांड, ज्योतिष आदि से दूर रखना। 🙄👉मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वे मौलवी से फातिहा पढ़ने के लिए कहते थे। इसके बाद ही भोजन की शुरुआत होती थी। उन्होंने कभी भी मस्जिद में गीता पाठ नहीं करवाया या भोजन कराने के पूर्व ‘श्रीगणेश करो’ ऐसा भी नहीं कहा। यदि वे हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करते थे तो फिर दोनों ही धर्मों का सम्मान करना चाहिए था। 🙄👉साईं को सभी यवन🧛 मानते थे। वे हिन्दुस्तान के नहीं, अफगानिस्तान के थे इसीलिए लोग उन्हें यवन का मुसलमान कहते थे। उनकी कद-काठी और डील-डौल यवनी ही था। साईं सच्चरित्र के अनुसार एक बार साईं ने इसका जिक्र भी किया था। जो भी लोग उनसे मिलने जाते थे उन्हें मुस्लिम फकीर ही मानते थे, लेकिन उनके सिर पर लगे चंदन को देखकर लोग भ्रमित हो जाते थे। 🙄👉बाबा कोई धूनी नहीं रमाते थे जैसा कि नाथ पंथ के लोग करते हैं। ठंड से बचने के लिए बाबा एक स्थान पर लकड़ियां इकट्ठी करके आग जलाते थे। उनके इस आग जलाने को लोगों ने धूनी रमाना समझा। चूंकि बाबा के पास जाने वाले लोग चाहते थे कि बाबा हमें कुछ न कुछ दे तो वे धूनी की राख को ही लोगों को प्रसाद के रूप में दे देते थे। यदि प्रसाद देना ही होता था तो वे अपने भक्तों को मांस मिला हुआ नमकीन चावल देते थे। 🙄👉आजकल साईं बाबा को पुस्तकों और लेखों के माध्यम से ब्राह्मण कुल में जन्म लेने की कहानी को प्रचारित किया जा रहा है। क्या कोई ब्राह्मण मस्जिद में रहना पसंद करेगा?,मगर यह एक षड्यंत्र के तहत हो रहा है। 🙄👉साईं के विरोधी “साईं सच्चरित्र”📒 में उल्लेखित घटना का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि हरि विनायक साठे (एक साईं भक्त) ने अपने साक्षात्कार में नरसिम्हा स्वामी को बोला था कि बाबा किसी भी हिन्दू देवी-देवता या स्वयं की पूजा मस्जिद में नहीं करने देते थे, न ही मस्जिद में किसी देवता के चित्र वगैरह लगाने देते।
एक बार उन्होंने शिवरात्रि के अवसर पर बाबा से पूछा कि वे बाबा की पूजा महादेव या शिव की तरह कर सकते हैं? तो बाबा ने साफ इंकार कर दिया, क्योंकि वे मस्जिद में किसी भी तरह के हिन्दू तौर-तरीके का विरोध करते थे। फिर भी साठे साहेब और मेघा रात में फूल, बेलपत्र, चंदन लेकर मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठकर चुपचाप पूजा करने लगे। तब तात्या पाटिल ने उन्हें देखा तो पूजा करने के लिए मना किया। उसी वक्त साईं की नींद खुल गई और उन्होंने जोर-जोर से चिल्लाना और गालियां देना शरू कर दिया जिससे पूरा गांव इकट्ठा हो गया और उन्होंने साठे और मेघा को खूब फटकार लगाई। 🙄👉”साईं सच्चरित्र”📒 साईं भक्तों और शिर्डी साईं संस्थान द्वारा बताई गई साईं के बारे में सबसे उचित पुस्तक है। पुस्तक के पेज नंबर 17, 28, 29, 40, 58, 78, 120, 150, 174 और 183 पर साईं ने ‘अल्लाह मालिक’ बोला, ऐसा लिखा है। पूरी पुस्तक में साईं ने एक बार भी किसी हिन्दू देवी-देवता का नाम नहीं बोला और न ही कहीं ‘सबका मालिक एक’ बोला। साईं भक्त बताएं कि जो बात साईं ने अपने मुंह से कभी कही ही नहीं, उसे साईं के नाम पर क्यों प्रचारित किया जा रहा है? 🙄👉साईं को राम से जोड़ने की साजिश :-12 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार की हत्या के ठीक 6 महीने बाद 1998 में “साईं” नाम के एक नए भगवान का अवतरण हुआ। वर्ना उससे पहले तक हम सब गुलशन कुमार के हिंदू धर्म के देवी देवताओं को लेकर बहुत सारे संगीत का एक अलग सीरीज देखते आए, फिर इसके कुछ समय बाद 28 मई 1999 में ‘बीवी नंबर 1’ फिल्म आई जिसमें साईं के साथ पहली बार राम को जोड़कर ‘ॐ साईं राम’ गाना बनाया था। क्या इसके पीछे कोई षड्यंत्र था?? 🙄👉साईं मेघा की ओर देखकर कहने लगे, ‘तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैं बस निम्न जाति का यवन (मुसलमान) इसलिए तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जाएगी इसलिए तुम यहां से बाहर निकलो। -साई सच्चरित्र।📒-(अध्याय 28)??? 🙄👉एक एकादशी को उन्होंने पैसे देकर केलकर को मांस खरीद कर लाने को कहा। -साईं सच्चरित्र📒 (अध्याय 38)?? 🙄👉 बाबा ने एक ब्राह्मण को बलपूर्वक बिरयानी चखने को कहा। -साईं सच्चरित्र📒 (अध्याय 38)??? 🙄👉साईं सच्चरित्र📒 के अनुसार- साईं बाबा गुस्से में आते थे और गालियां भी बकते थे। ज्यादा क्रोधित होने पर वे अपने भक्तों को पीट भी देते थे। बाबा कभी पत्थर मारते और कभी गालियां देते। -पढ़ें 6, 10, 23 और 41 साईं सच्चरित्र अध्याय?? 🙄👉बाबा ने स्वयं कभी उपवास नहीं किया और न ही उन्होंने किसी को करने दिया। साईं सच्चरित्र📒 (अध्याय 32)???
🙄👉 ‘मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैं तो एक फकीर हूं, मुझे गंगाजल से क्या प्रयोजन?- साई सच्चरित्र📒 (अध्याय 28)??? इसके रहते भारत गुलाम बना रहा परंतु इन महाशय को कोई खबर नहीं रही। शिर्डी से कभी बाहर नहीं निकला।
🎯पर पूरे देश मे अचानक इसकी मौत के 90-100 साल बाद इसके मंदिर “कुकुरमुत्ते” की तरह बनने लगे।चालीसा हनुमान जी की हुआ करती थी, लेकिन आज साईं चालीसा भी हो गयी !😡 राम सीता के हुआ करते थे,आज साई के ही राम हो गए ! श्याम राधा के थे, आज वो भी साई बना दिये गए !!
🎯बृहस्पति दिन विष्णु भगवान का होता था, आज साईं का मनाया जाने लगा ये कैसा विरोधाभास है!!!भगवान की मूर्ति मंदिरो में छोटी हो गयी और साईं विशाल मूर्ति मे हो गए !!
🎯प्राचीन हनुमान मंदिर दान को तरस गए और साई मंदिरो के तहखाने तक भर गए!! 👿मूर्ख हिन्दुओं !!!!!!
● अगर दुनिया में सच में कलयुग के बाद भगवान ने इंसाफ किया तो याद रखना मुंह छुपाने के लिए और अपनी मूर्ख बुद्धि पर तरस खाने के लिए कही शरण भी न मिलेगी !!
● इसलिए हमारे भगवानों की तुलना मुल्ले साईं से करके पाप मत करो। 👉—:साईं की मृत्यु 1918 के बाद:—
🎯दशकों तक सांई का कहीं कोई नाम लेवा नहीं था। हो सकता है कि मात्र थोड़ी दूर तक के लोग जानते होंगे।
🎯परंतु अब कुछ तीस या चालीस वर्षों में उसकी उपस्थिति आम हो गई है और लोगों की आस्था का पारा अचानक से उबाल मारने लगा है।
🙄अच्छा मैं एक बात पूछता हूँ… आप किसी भी साठ या सत्तर साल के व्यक्ति से पूछ लें कि उसने साईं बाबा का नाम पहली बार अपने जीवन में कब सुना था?
🤔निश्चित ही वो कहेगा कि उसने पहले कभी नहीं सुना था… कोई नब्बे या कोई अस्सीे के दशक में हीं सुना हुआ कहेगा।अब यहां सवाल है कि इतनी जल्दी ये इत्ता बड़ा भगवान कैसे बन गया🤔 ?तो इसका जबाव एक ही है कि इसको एक षड्यंत्र के तहत खूब लोगों के बीच लोकप्रिय करने का खेल खेला गया था। ◆ हाँ एक बात और… हिन्दुओं के भगवान बनाने के पहले इसके चेले चपाटों ने इन्हें कुछ इस प्रकार से पेश किया था जैसे कि सभी धर्मों के एक मात्र यही नियंता हों।
🎯हिन्दू , मुस्लिम, सिक्ख ईसाई…सभी का इष्ट यही था, और इसे पेश किसने किया ??
■ जरा ये भी समझिए…सत्तर – अस्सी के दशक में जो फिल्में बनती थी या गाने होते थे उसमें या तो हिन्दूओं के भगवान या फिर मुस्लिमों के अल्लाह का जिक्र होता था। भगवान वाला सीन कटुओं को स्वीकार नहीं था और अल्लाह वाला हिन्दूओं को।
पर नायक को अलौकिक शक्ति देने के लिए इनका सीन डालना भी जरूरी ही था।..क्या किया जाय?
■ तो….यह “कटुए फिल्मी भाण्ड…..”महबूब खां, नौसाद, “जावेज अख्तर, सलीम खाँ, आदि जैसे निर्देशक की सोच थी कि.. किसी ऐसे व्यक्ति को अलौकिक शक्ति से लैस करके दिखाया जाय ताकि किसी भी धर्म के लोगो का विरोध ना झेलनी पड़े और वे अपनी फिल्म को सफल बना लें।
ऐसा ही कुछ उनके दिमाग में आया… और अचानक से उनके दिमाग की बत्ती जल गई जब किसी ने साईं का नाम सुझाया।
🎯Eurekkka….Eurekkka कहते हुए वे उछल पड़े । इस नये भगवान का सफल परीक्षण उस ऐतिहासिक दिन को किया गया जो साईं भक्तों के लिए एक पवित्र दिन से कम नहीं है।
■ 7 जनवरी 1977 को रूपहले पर्दे पर एक फिल्म आई “अमर अकबर एंथोनी” इस फिल्म में एक गाना बजा “शिर्डी वाले साई बाबा आया हूँ तेरे दर पे सवाली”??☝️🙄
🎯बस फिर क्या था.. संयोगवश फिल्म भी हिट…और बाबा भी हिट…।
■ साई बाबा के चेले चपाटों के पैर अब तो जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे साई की स्वीकार्यता को देखकर। उससे पहले तक ना कहीं तस्वीर, ना कहीं मूर्ति और ना ही कोई चर्चा।
🎯और उसके बाद तो हर जगह साई ही साई। फोटोशॉप करके आग से भी निकाले गए साई, जो कई भक्तों के घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं। धीरे धीरे, चुपके चुपके हिन्दुओं के मंदिरों में मुर्तियां बैठने लगी।
■ इनके अपने मंदिर भी बनने लगे। एक और मजे की बात कि किसी अन्य धर्मों के लोगों ने इन्हें स्वीकार किया ही नहीं सिवाय दोगले हिन्दुओं के।
🎯अब देखिए, हमारा सनातनी हिन्दू समाज अब धीरे धीरे उस मोड़ पर जा रहा है जहाँ से दो धड़े साफ साफ दिखेंगे…
■ एक विधर्मी साईं को मानने वाले हिन्दू और दूसरे अपने सनातनी मार्ग पर चलने वाले हिन्दू। इनमें अब दूरियां बढ़ती जाएंगी और आने वाले समय में इस समाज में दो फाड़ होगा।
● एक “सनातनी हिन्दू” और दूसरा “साईं पूजक हिन्दू”। सनातनी वाले साईं को मान्यता नहीं देंगे और साईं वाले साईं भक्ति छोड़ेंगे नहीं।
बात और आगे जाएगी… ये दोनो एक दूसरे के मंदिरों में जाना बंद कर देंगे…. यदि नहीं तो फिर सनातनी उन्हें अपने मंदिरों में आने से रोकेंगे ?
● कोई हार मानने को तैयार नहीं होगा। और यही वो समय होगा जब हिन्दू समाज दो खेमे में बँट जायेगा। बिल्कुल उसी तरह जैसे…मुस्लिम बंटकर शिया – सुन्नी हुए….ईसाई बंटकर कैथोलिक प्रोटेस्टेन्ट हुए…..जैन बंटे तो श्वेतांबर – दिगम्बर हुए…..बौद्ध बंटे तो हीनयान – महायान हुए।
◆ हो सकता है ये सुनकर आपको अाश्चर्य भी हो, परंतु हिन्दू धर्म में पड़ रही यही दरार ही विभाजन का कारण बनेगी।
■ मेरा यह मानना है कि साईं बाबा को एक षडयंत्र की तरह हमारे बीच रोपा गया है और मैं प्राण प्रण से इसका विरोध करता रहूँगा।
◆ शिरडी में सांई की कब्र यानि मजार पर मन्दिर बना दिया गया।
🙏🚩”क्योंकि एक सनातनी हिन्दू होने के नाते अपने धर्म को दूषित और विभाजित होते नहीं देख सकता हूँ।”—:साईं बाबा एक अनकहा सच:— आज मैं शिर्डी साईं के सारे राज का पर्दाफाश कर रहा हूं, कृपया ध्यान जरुर दे की सभी सबूत शिर्डी से प्रकाशित साईं सच्चरित्र 👉📒 से लिए गये है।
इसलिए इनमे से किसी भी प्रमाण को पहले जांच लें और उसके बाद सही होने पर ही कुछ वाद विवाद करें।साईं असल में क्या है कहा से आया, जन्म मरण और फिर इतना लम्बे समय बाद उसका अचानक भगवान बन कर निकलना,
ये सब कोई संयोग नहीं सोचा समझा षड्यंत्र है,
ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसी MI5 जी हाँ मित्रो,ये वही ब्रिटिश एजेंसी है जिसने श्री राम मंदिर आन्दोलन के बाद अचानक साईं की भक्ति में आई तेजी देखी, लेकिन वैसे ब्रिटेन और शिर्डी के साईं का रिश्ता बहुत ही गहरा है क्योंकि ये साईं वही है जो 1857 की क्रांति में कुछ लूटेरो के साथ पकड़ा गया था, और अहमदनगर में पहली बार साईं की फोटो ली गयी थी,जो इस पूरे पोस्ट के अंत में आपको देखने को मिलेगी।MI5 का गठन १९९० में हुआ था, पहले विश्व युद्ध के समय, पर साईं का पूरा इतिहास खोज निकलने में इस खूफिया एजेंसी का महत्वपूर्ण योगदान है। 👉साईं बाबा का जन्म:- साईं का जन्म भी कब हुआ कब नहीं किसी को सत्य नहीं पता। कुछ बताते हैं 27 सितंबर 1830 में तो कुछ बताते हैं 27 सितंबर 1838 में हुआ था, पर कैसे हुआ और उसके बाद की पूरी कथा बहुत ही रोचक है, साईं के पिता का असली नाम था “बहरुद्दीन_पिंडारी” जो कि अफगानिस्तान का एक पिंडारी था। इस पर एक फिल्म भी आई थी जिसमे पिंडारियो को देशभक्त बताया गया है, ठीक वैसे ही जैसे गाँधी ने मोपला और नोआखली में हिन्दुओ के हत्यारों को स्वतंत्रता सेनानी कहा था। 👉◆ औरंगजेब की मौत के बाद मुग़ल साम्राज्य ख़तम सा हो गया था केवल दिल्ली उनके अधीन थी, मराठा के वीर सपूतो ने एक तरह से हिन्दू साम्राज्य की नीव रख ही दी थी, ऐसे समय में मराठाओ को बदनाम करके उनके इलाको में लूटपाट करने का काम ये पिंडारी करते थे।
👉◆ इनका एक ही काम था लूटपाट करके जो औरत मिलती उसका बलात्कार करना, आज एक का बलात्कार कल दूसरी का, इस तरह से ये मराठाओ को तंग किया करते थे, पर समय के साथ साथ देश में अंग्रेज आये और उन्होंने इन पिंडारियो को मार मार कर ख़तम करना शुरू किया।
👉◆ साईं का बाप जो एक पिंडारी ही था, उसका मुख्यकाम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना, एक बार लूटपाट करते करते वह महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुचा, जहा वह एक वेश्या के घर रुक गया, उम्र भी जवाब दे रही थी, सो वो उसी के पास रहने लग गया।
👉कुछ समय बाद उस वेश्या से उसे एक लड़का और एक लड़की पैदा हुआ, लड़के का नाम उसने “चाँद मियां” रखा और उसे लेकर लूटपाट करना सिखाने के लिए उसे अफगानिस्तान ले गया।
👉उस समय अंग्रेज पिंडारियो की ज़बरदस्त धर पकड़ कर रहे थे, इसलिए बहरुद्दीन भेष बदल कर लूटपाट करता था। उसने अपना सन्देश वाहक चाँद मिया को बनाया। चाँद मिया आज कल के उन मुसलमान भिखारियों की तरह था जो चादर फैला कर भीख मांगते थे, जिन्हें अँगरेज़ Blanket Begger कहते थे।
👉चाँद मिया का काम था लूट के लिए सही वक़्त देखना और सन्देश अपने बाप को देना, वह उस सन्देश को लिख कर उसे चादर के नीचे सिल कर हैदराबाद से अफगानिस्तान तक ले जाता था, परंतु एक दिन चाँद मियां अग्रेजो के हत्थे चढ़ गया और अंग्रेजों ने चांद मियाँ को जेल में डाल दिया। उसे पकडवाने में झाँसी के लोगो ने अंग्रेजो की मदद की जो अपने इलाके में हो रही लूटपाट से परेशान थे।
👉उन्ही दिनों देश में पहली आजादी की क्रांति हुई और पूरा देश क्रांति से गूंज उठा, अंग्रेजो के लिए विकट समय था और इसके लिए उन्हें खूंखार लोगो की जरुरत थी, बहर्दुद्दीन तो था ही धन का लालची, सो उसने अंग्रेजो से हाथ मिला लिया और झाँसी चला गया।
👉उसने लोगो से घुलमिल कर झाँसी के किले में प्रवेश किया और समय आने पर पीछे से दरवाजा खोल कर रानी लक्ष्मी बाई को हराने में अहम् भूमिका अदा की। यही चाँद मिया आठ साल बाद जेल से छुटकर कुछ दिन बाद शिर्डी पंहुचा और वहां के सुलेमानी लोगो से मिला जिनका असली काम था गैर-मुसलमानों के बीच रह कर चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना।
👉चाँद मियां ने वही से “अलतकिया” का ज्ञान लिया और हिन्दुओ को फ़साने के लिए साईं नाम रख कर शिर्डी में आसन जमा कर बैठ गया, मस्जिद को जानबूझ कर एक हिन्दू नाम दिया और उसके वहा ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया।
👉एक षड्यंत्र के तहत साँईं को भगवान के रूप में प्रचारित किया गया, और पीछे से हिन्दू मुस्लिम एकता की बाते करके स्वाभिमानी मराठाओ को मुर्दा बनाने के लिए उन्हें उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढाया गया।
👉परंतु साईं का असली मकसद था लोगो में इस्लाम को बढ़ावा देना। इसका एक उदाहरण साईं सत्चरित्र में है कि साईं के पास एक पुलिस वाला आता है जिसे साईं मार मार भगाने की बात कहता है।
👉अब असल में हुआ ये की एक पंडित जी ने अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाने के लिए साईं को सोंप दिया, परंतु साईं ने उसका “खतना” कर दिया।
👉जब पंडितजी को पता चला तो उन्होंने कोतवाली में रिपोर्ट कर दी, साईं को पकड़ने के लिए एक पुलिस वाला भी आया जिसे साईं ने मार कर भगाने की बात कही थी।
👉जब पुलिस वाला साईं को पकड़ने गया था और साईं बुरका पहन कर भागा था।और वही फोटो अंत में देखने को मिलेगी इस पोस्ट में। —-:कुछ प्रश्न जिनके उत्तर किसी के पास नहीं हैं:—- 🙄👉हिन्दू धर्म एक सनातन धर्म है, लेकिन आज कल लोग इस बात से परिचित नही है क्या? 🙄👉जब भारत मे अंग्रेजी सरकार अत्याचार और सबको मौत के घाट उतार रही थी तब साई बाबा ने कौन सा ब्रिटिश अंग्रेजो के साथ आंदोलन किया ? 🙄👉जिदंगी भीख मांगने मे कट गई? माना कि मस्जिद मे रह कर कुरान पढ़ना तो जरूरी था। लेकिन क्या बकरे हलाल करना जरूरी था ? 🙄👉श्रीमद भगवत गीता मे लिखा है कि श्मशान और समाधि की पुजा करने वाले 👉मनुष्य राक्षस योनि 👈को प्राप्त होते हैं, फिर साईं बाबा की कब्र पर लोग पूजा क्यों करने जाते हैं? 🙄👉साईं ने यह कभी नहीं कहा कि ‘सबका मालिक एक’। “साईं सच्चरित्र” के अध्याय 4, 5, 7 में इस बात का उल्लेख है कि वे जीवनभर सिर्फ ‘अल्लाह मालिक है’ यही बोलते रहे। कुछ लोगों ने उनको हिन्दू संत बनाने के लिए यह झूठ प्रचारित किया कि वे ‘सबका मालिक एक है’ भी बोलते थे। यदि वे एकता की बात करते थे, तो कभी यह क्यों नहीं कहा कि ‘राम मालिक है’ या ‘भगवान मालिक है।’ 🙄👉कोई हिन्दू संत सिर पर “कफन” जैसा नहीं बांधता, ऐसा सिर्फ मुस्लिम फकीर ही बांधते हैं। जो पहनावा साईं का था, वह एक मुस्लिम फकीर का ही हो सकता है, ठीक वैसे जैसे मुस्लिम लोग अपने सिर पर टोपी पहन कर सिर ढकते हैं, हिन्दू धर्म में सिर पर सफेद कफन जैसा बांधना वर्जित है या तो जटा रखी जाती है या किसी भी प्रकार से सिर पर बाल नहीं होते। 🙄👉साईं बाबा ने रहने के लिए मस्जिद का ही चयन क्यों किया? वहां और भी स्थान थे, लेकिन वे जिंदगीभर मस्जिद में ही रहे। मस्जिद के अलावा भी तो शिर्डी में कई और स्थान थे, जहां वे रह सकते थे। मस्जिद ही क्यों? भले ही मंदिर में न रहते, तो नीम के वृक्ष के नीचे एक कुटिया ही बना लेते। उनके भक्त तो इसमें उनकी मदद कर ही देते।
🙄👉साईं सच्चरित्र📒 के अनुसार- साईं बाबा पूजा-पाठ, ध्यान, प्राणायाम और योग के बारे में लोगों से कहते थे कि इसे करने की कोई जरूरत नहीं है। उनके इस प्रवचन से पता चलता है कि वे हिन्दू धर्म विरोधी थे। साईं बाबा का मिशन था- लोगों में एकेश्वरवाद के प्रति विश्वास पैदा करना। उन्हें कर्मकांड, ज्योतिष आदि से दूर रखना। 🙄👉मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वे मौलवी से फातिहा पढ़ने के लिए कहते थे। इसके बाद ही भोजन की शुरुआत होती थी। उन्होंने कभी भी मस्जिद में गीता पाठ नहीं करवाया या भोजन कराने के पूर्व ‘श्रीगणेश करो’ ऐसा भी नहीं कहा। यदि वे हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करते थे तो फिर दोनों ही धर्मों का सम्मान करना चाहिए था। 🙄👉साईं को सभी यवन🧛 मानते थे। वे हिन्दुस्तान के नहीं, अफगानिस्तान के थे इसीलिए लोग उन्हें यवन का मुसलमान कहते थे। उनकी कद-काठी और डील-डौल यवनी ही था। साईं सच्चरित्र के अनुसार एक बार साईं ने इसका जिक्र भी किया था। जो भी लोग उनसे मिलने जाते थे उन्हें मुस्लिम फकीर ही मानते थे, लेकिन उनके सिर पर लगे चंदन को देखकर लोग भ्रमित हो जाते थे। 🙄👉बाबा कोई धूनी नहीं रमाते थे जैसा कि नाथ पंथ के लोग करते हैं। ठंड से बचने के लिए बाबा एक स्थान पर लकड़ियां इकट्ठी करके आग जलाते थे। उनके इस आग जलाने को लोगों ने धूनी रमाना समझा। चूंकि बाबा के पास जाने वाले लोग चाहते थे कि बाबा हमें कुछ न कुछ दे तो वे धूनी की राख को ही लोगों को प्रसाद के रूप में दे देते थे। यदि प्रसाद देना ही होता था तो वे अपने भक्तों को मांस मिला हुआ नमकीन चावल देते थे। 🙄👉आजकल साईं बाबा को पुस्तकों और लेखों के माध्यम से ब्राह्मण कुल में जन्म लेने की कहानी को प्रचारित किया जा रहा है। क्या कोई ब्राह्मण मस्जिद में रहना पसंद करेगा?,मगर यह एक षड्यंत्र के तहत हो रहा है। 🙄👉साईं के विरोधी “साईं सच्चरित्र”📒 में उल्लेखित घटना का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि हरि विनायक साठे (एक साईं भक्त) ने अपने साक्षात्कार में नरसिम्हा स्वामी को बोला था कि बाबा किसी भी हिन्दू देवी-देवता या स्वयं की पूजा मस्जिद में नहीं करने देते थे, न ही मस्जिद में किसी देवता के चित्र वगैरह लगाने देते।
एक बार उन्होंने शिवरात्रि के अवसर पर बाबा से पूछा कि वे बाबा की पूजा महादेव या शिव की तरह कर सकते हैं? तो बाबा ने साफ इंकार कर दिया, क्योंकि वे मस्जिद में किसी भी तरह के हिन्दू तौर-तरीके का विरोध करते थे। फिर भी साठे साहेब और मेघा रात में फूल, बेलपत्र, चंदन लेकर मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठकर चुपचाप पूजा करने लगे। तब तात्या पाटिल ने उन्हें देखा तो पूजा करने के लिए मना किया। उसी वक्त साईं की नींद खुल गई और उन्होंने जोर-जोर से चिल्लाना और गालियां देना शरू कर दिया जिससे पूरा गांव इकट्ठा हो गया और उन्होंने साठे और मेघा को खूब फटकार लगाई। 🙄👉”साईं सच्चरित्र”📒 साईं भक्तों और शिर्डी साईं संस्थान द्वारा बताई गई साईं के बारे में सबसे उचित पुस्तक है। पुस्तक के पेज नंबर 17, 28, 29, 40, 58, 78, 120, 150, 174 और 183 पर साईं ने ‘अल्लाह मालिक’ बोला, ऐसा लिखा है। पूरी पुस्तक में साईं ने एक बार भी किसी हिन्दू देवी-देवता का नाम नहीं बोला और न ही कहीं ‘सबका मालिक एक’ बोला। साईं भक्त बताएं कि जो बात साईं ने अपने मुंह से कभी कही ही नहीं, उसे साईं के नाम पर क्यों प्रचारित किया जा रहा है? 🙄👉साईं को राम से जोड़ने की साजिश :-12 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार की हत्या के ठीक 6 महीने बाद 1998 में “साईं” नाम के एक नए भगवान का अवतरण हुआ। वर्ना उससे पहले तक हम सब गुलशन कुमार के हिंदू धर्म के देवी देवताओं को लेकर बहुत सारे संगीत का एक अलग सीरीज देखते आए, फिर इसके कुछ समय बाद 28 मई 1999 में ‘बीवी नंबर 1’ फिल्म आई जिसमें साईं के साथ पहली बार राम को जोड़कर ‘ॐ साईं राम’ गाना बनाया था। क्या इसके पीछे कोई षड्यंत्र था?? 🙄👉साईं मेघा की ओर देखकर कहने लगे, ‘तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैं बस निम्न जाति का यवन (मुसलमान) इसलिए तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जाएगी इसलिए तुम यहां से बाहर निकलो। -साई सच्चरित्र।📒-(अध्याय 28)??? 🙄👉एक एकादशी को उन्होंने पैसे देकर केलकर को मांस खरीद कर लाने को कहा। -साईं सच्चरित्र📒 (अध्याय 38)?? 🙄👉 बाबा ने एक ब्राह्मण को बलपूर्वक बिरयानी चखने को कहा। -साईं सच्चरित्र📒 (अध्याय 38)??? 🙄👉साईं सच्चरित्र📒 के अनुसार- साईं बाबा गुस्से में आते थे और गालियां भी बकते थे। ज्यादा क्रोधित होने पर वे अपने भक्तों को पीट भी देते थे। बाबा कभी पत्थर मारते और कभी गालियां देते। -पढ़ें 6, 10, 23 और 41 साईं सच्चरित्र अध्याय?? 🙄👉बाबा ने स्वयं कभी उपवास नहीं किया और न ही उन्होंने किसी को करने दिया। साईं सच्चरित्र📒 (अध्याय 32)???
🙄👉 ‘मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैं तो एक फकीर हूं, मुझे गंगाजल से क्या प्रयोजन?- साई सच्चरित्र📒 (अध्याय 28)??? इसके रहते भारत गुलाम बना रहा परंतु इन महाशय को कोई खबर नहीं रही। शिर्डी से कभी बाहर नहीं निकला।
🎯पर पूरे देश मे अचानक इसकी मौत के 90-100 साल बाद इसके मंदिर “कुकुरमुत्ते” की तरह बनने लगे।चालीसा हनुमान जी की हुआ करती थी, लेकिन आज साईं चालीसा भी हो गयी !😡 राम सीता के हुआ करते थे,आज साई के ही राम हो गए ! आज वो भी साई बना दिये गए !!
🎯बृहस्पति दिन विष्णु भगवान का होता था, आज साईं का मनाया जाने लगा ये कैसा विरोधाभास है!!!भगवान की मूर्ति मंदिरो में छोटी हो गयी और साईं विशाल मूर्ति मे हो गए !!
🎯प्राचीन हनुमान मंदिर दान को तरस गए और साई मंदिरो के तहखाने तक भर गए!! 👿मूर्ख हिन्दुओं !!!!!!
● अगर दुनिया में सच में कलयुग के बाद भगवान ने इंसाफ किया तो याद रखना मुंह छुपाने के लिए और अपनी मूर्ख बुद्धि पर तरस खाने के लिए कही शरण भी न मिलेगी !!
● इसलिए हमारे भगवानों की तुलना मुल्ले साईं से करके पाप मत करो। 👉—:साईं की मृत्यु 1918 के बाद:—
🎯दशकों तक सांई का कहीं कोई नाम लेवा नहीं था। हो सकता है कि मात्र थोड़ी दूर तक के लोग जानते होंगे।
🎯परंतु अब कुछ तीस या चालीस वर्षों में उसकी उपस्थिति आम हो गई है और लोगों की आस्था का पारा अचानक से उबाल मारने लगा है।
🙄अच्छा मैं एक बात पूछता हूँ… आप किसी भी साठ या सत्तर साल के व्यक्ति से पूछ लें कि उसने साईं बाबा का नाम पहली बार अपने जीवन में कब सुना था?
🤔निश्चित ही वो कहेगा कि उसने पहले कभी नहीं सुना था… कोई नब्बे या कोई अस्सीे के दशक में हीं सुना हुआ कहेगा।अब यहां सवाल है कि इतनी जल्दी ये इत्ता बड़ा भगवान कैसे बन गया🤔 ?तो इसका जबाव एक ही है कि इसको एक षड्यंत्र के तहत खूब लोगों के बीच लोकप्रिय करने का खेल खेला गया था। ◆ हाँ एक बात और… हिन्दुओं के भगवान बनाने के पहले इसके चेले चपाटों ने इन्हें कुछ इस प्रकार से पेश किया था जैसे कि सभी धर्मों के एक मात्र यही नियंता हों।
🎯हिन्दू , मुस्लिम, सिक्ख ईसाई…सभी का इष्ट यही था, और इसे पेश किसने किया ??
■ जरा ये भी समझिए…सत्तर – अस्सी के दशक में जो फिल्में बनती थी या गाने होते थे उसमें या तो हिन्दूओं के भगवान या फिर मुस्लिमों के अल्लाह का जिक्र होता था। भगवान वाला सीन कटुओं को स्वीकार नहीं था और अल्लाह वाला हिन्दूओं को।
पर नायक को अलौकिक शक्ति देने के लिए इनका सीन डालना भी जरूरी ही था।..क्या किया जाय?
■ तो….यह “कटुए फिल्मी भाण्ड…..”महबूब खां, नौसाद, “जावेज अख्तर, सलीम खाँ, आदि जैसे निर्देशक की सोच थी कि.. किसी ऐसे व्यक्ति को अलौकिक शक्ति से लैस करके दिखाया जाय ताकि किसी भी धर्म के लोगो का विरोध ना झेलनी पड़े और वे अपनी फिल्म को सफल बना लें।
ऐसा ही कुछ उनके दिमाग में आया… और अचानक से उनके दिमाग की बत्ती जल गई जब किसी ने साईं का नाम सुझाया।
🎯Eurekkka….Eurekkka कहते हुए वे उछल पड़े । इस नये भगवान का सफल परीक्षण उस ऐतिहासिक दिन को किया गया जो साईं भक्तों के लिए एक पवित्र दिन से कम नहीं है।
■ 7 जनवरी 1977 को रूपहले पर्दे पर एक फिल्म आई “अमर अकबर एंथोनी” इस फिल्म में एक गाना बजा “शिर्डी वाले साई बाबा आया हूँ तेरे दर पे सवाली”??☝️🙄
🎯बस फिर क्या था.. संयोगवश फिल्म भी हिट…और बाबा भी हिट…।
■ साई बाबा के चेले चपाटों के पैर अब तो जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे साई की स्वीकार्यता को देखकर। उससे पहले तक ना कहीं तस्वीर, ना कहीं मूर्ति और ना ही कोई चर्चा।
🎯और उसके बाद तो हर जगह साई ही साई। फोटोशॉप करके आग से भी निकाले गए साई, जो कई भक्तों के घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं। धीरे धीरे, चुपके चुपके हिन्दुओं के मंदिरों में मुर्तियां बैठने लगी।
■ इनके अपने मंदिर भी बनने लगे। एक और मजे की बात कि किसी अन्य धर्मों के लोगों ने इन्हें स्वीकार किया ही नहीं सिवाय दोगले हिन्दुओं के।
🎯अब देखिए, हमारा सनातनी हिन्दू समाज अब धीरे धीरे उस मोड़ पर जा रहा है जहाँ से दो धड़े साफ साफ दिखेंगे…
■ एक विधर्मी साईं को मानने वाले हिन्दू और दूसरे अपने सनातनी मार्ग पर चलने वाले हिन्दू। इनमें अब दूरियां बढ़ती जाएंगी और आने वाले समय में इस समाज में दो फाड़ होगा।
● एक “सनातनी हिन्दू” और दूसरा “साईं पूजक हिन्दू”। सनातनी वाले साईं को मान्यता नहीं देंगे और साईं वाले साईं भक्ति छोड़ेंगे नहीं।
बात और आगे जाएगी… ये दोनो एक दूसरे के मंदिरों में जाना बंद कर देंगे…. यदि नहीं तो फिर सनातनी उन्हें अपने मंदिरों में आने से रोकेंगे ?
● कोई हार मानने को तैयार नहीं होगा। और यही वो समय होगा जब हिन्दू समाज दो खेमे में बँट जायेगा। बिल्कुल उसी तरह जैसे…मुस्लिम बंटकर शिया – सुन्नी हुए….ईसाई बंटकर कैथोलिक प्रोटेस्टेन्ट हुए…..जैन बंटे तो श्वेतांबर – दिगम्बर हुए…..बौद्ध बंटे तो हीनयान – महायान हुए।
◆ हो सकता है ये सुनकर आपको अाश्चर्य भी हो, परंतु हिन्दू धर्म में पड़ रही यही दरार ही विभाजन का कारण बनेगी।
■ मेरा यह मानना है कि साईं बाबा को एक षडयंत्र की तरह हमारे बीच रोपा गया है और मैं प्राण प्रण से इसका विरोध करता रहूँगा।
◆ शिरडी में सांई की कब्र यानि मजार पर मन्दिर बना दिया गया।
🙏🚩”क्योंकि एक सनातनी हिन्दू होने के नाते अपने धर्म को दूषित और विभाजित होते नहीं देख सकता हूँ।”
*लक्ष्य आर्यावर्त*