*’भारतीय लोकतंत्र: पक्ष, विपक्ष और निष्पक्ष’ विषय पर डॉ. वैदिक का व्याख्यान*

*’भारतीय लोकतंत्र: पक्ष, विपक्ष और निष्पक्ष’ विषय पर डॉ. वैदिक का व्याख्यान*

*आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान- 2020-21*

*नई दिल्ली।* जाने माने वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक डॉ. वेद प्रताप वैदिक ने कहा कि 140 करोड़ की आबादी वाला हिंदुस्तान का लोकतंत्र इसलिए सुरक्षित है, क्योंकि यहां का संविधान स्थायी, लचीला और निर्भय है। कहा कि दुनिया में किसी भी देश का संविधान इतना लचीला नहीं है। यह लोकतंत्र की निर्भयता का प्रमाण है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ शाहीन बाग और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन चल पाए। कहा कि पत्रकार को निर्भय होना चाहिए, तभी वह पक्ष-विपक्ष से मुक्त होकर निष्पक्ष ढंग से सच को लिख और दिखा सकेगा।

डॉ. वैदिक आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान-2020-21 में मुख्य अतिथि और वक्ता के रूप में अपनी बात रख रहे थे। व्याख्यान का विषय ‘भारतीय लोकतंत्र: पक्ष, विपक्ष और निष्पक्ष’ था।

उन्होंने आचार्य कृपलानी को अपना गुरु बताते हुए कहा कि वह ऐसे नेता थे, जिनमें पद और धन की लोलुपता कभी नहीं रही। लेकिन वह पं. नेहरू और सरदार पटेल के सामने भी अपनी बात निर्भयता से बोलने से नहीं चूकते थे।

लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि देश के स्थायित्व के लिए जरूरी है कि सत्ता पक्ष के अच्छे काम की विपक्ष सराहना करे और विपक्ष के अच्छे सुझाव को सत्ता पक्ष स्वीकार करे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया को याद करते हुए कहा कि तमाम विरोधों के बाद भी वे एक-दूसरे की बातों को महत्व देते थे। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, स्विटजरलैंड जैसे देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां की आबादी हमारे देश से कम है, लेकिन निर्भयता नहीं है। हमारे देश में 140 करोड़ की आबादी में 90 करोड़ वोटर हैं। यहां निर्भय लोकतंत्र कायम है। उन्होंने बाहरी लोकतंत्र के साथ-साथ आंतरिक लोकतंत्र की मजबूती पर जोर देते हुए कुछ सुझाव भी दिए। कहा कि देश में जब तक कोई प्रत्याशी पचास फीसदी वोट न पा जाए तब तक उसे विजयी न घोषित किया जाए। बताया कि अब तक कोई भी सरकार प्रमाणिक सरकार इसलिए नहीं रही क्योंकि वह कुल वोटों का 50 फीसदी वोट नहीं पा सकी।

डॉ. वैदिक ने कहा कि मतदान करने की उम्र भले 18 वर्ष हो, लेकिन चुनाव में खड़े होने के लिए प्रत्याशी की उम्र 40 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। उन्होंने राजनेताओं के राजनीति को धंधा बना लेने की कोशिश का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि इसकी वजह से ही राजनीति में भ्रष्टाचार अंदर तक घुसा हुआ है। उन्होंने कहा कि आचार्य कृपलानी इसके सख्त खिलाफ थे और वे किसी से पैसे नहीं लेते थे। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के राजधर्म की भी चर्चा की। कहा कि प्लेटो, अरस्तू और चाणक्य ने हमेशा राजधर्म को महत्व दिया और उसे सजीव लोकतंत्र के लिए जरूरी बताया।

स्वस्थ लोकतंत्र में भाषा के महत्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान जैसे छोटे देशों में भी न्यायपालिका में अपनी भाषा में बहस होती है। डॉ. लोहिया को याद करते हुए उन्होंने कहा कि 1965 में उन्होंने सबसे पहले सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी में बहस करने की शुरुआत की। उनका कहना था कि देश में रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य सबको मुफ्त भले ही न हो, लेकिन सुलभ जरूर हो। उन्होंने सुझाव दिया कि यह तभी संभव होगा, जब मतदान को अनिवार्य बना दिया जाए। उन्होंने जातीय आरक्षण और जातीय संस्थाओं को भी खत्म करने पर जोर दिया।

व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए नेपाल के पूर्व सांसद और वरिष्ठ राजनेता हरि चरण शाह ने भारतीय संविधान और लोकतंत्र की सराहना करते हुए कहा कि नेपाल और भारत के संबंधों में मजबूती का यही आधार रहा है। भारत हमेशा से विश्व को दिशा दिखाता रहा है। कहा कि नेपाल की उन्नति में भारतीय लोकतंत्र का बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि राजशाही के बाद लोकतंत्र के लिए नेपाल को कम्युनिस्टों से लंबा संघर्ष करना पड़ा। यह अब भी जारी है।

व्याख्यान का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन करते हुए ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी अभय प्रताप ने कहा कि जिन मुद्दों को डॉ. वैदिक ने उठाया है, उनमें बहुत सारे मुद्दों पर चर्चाएं पहले भी हुई हैं, लेकिन इन सब पर लगातार चर्चा-परिचर्चा एवं बहस चलाने की जरूरत है। उससे भारतीय लोकतंत्र में शायद कुछ नए महत्वपूर्ण सुधार का रास्ता खुलेगा। आचार्य कृपलानी की पुण्य-तिथि पर होने वाले इस कार्यक्रम का आयोजन गांधी शांति प्रतिष्ठान में किया गया था। कार्यक्रम के प्रारंभ में राजधानी कालेज के बच्चों ने गांधी प्रार्थना और रामधुन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जगमोहन सिंह राजपूत, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, महासचिव अशोक कुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. अशोक सिंह, डॉ. शिवानी सिंह, डॉ. राजीव रंजन गिरी, अरमान अंसारी, रौशन शर्मा, मनीष चंद्र शुक्ला, राकेश रजक, सुधीर कुमार वत्स, डॉ. विनीत भार्गव तथा बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी मौजूद रहे।

अभय प्रताप
प्रबंध न्यासी
आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट

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