भाषा चुनौती : भारत सरकार हिंदी व संस्कृत को आज से ही करे अनिवार्य। मात्र 3 वर्ष में राष्ट्र भाषा साक्षर होगा भारत।
एक राष्ट्र , एक संविधान, एक भाषा, एक ही कानून, एक राष्ट्र ध्वज तिरंगा।
भारत सरकार हिंदी व संस्कृत को आज से ही करे अनिवार्य।
मात्रा 3 वर्ष में राष्ट्र भाषा साक्षर होगा भारत।
भारत सरकार देशी भाषाओं की प्रतिष्ठा के लिए क्या करे?
सर्वप्रथम सभी भाषाओं की जननी संस्कृत को देशभर में सभी प्राथमिक स्कूलों से महाविद्यालयों, मदरसोंं में पढ़ाना अनिवार्य करें।
गांधीजी ने कहा था कि हर भारतीय को अपनी मातृभाषा के साथ ही संस्कृत भाषा भी अवश्य पढ़नी चाहिए। खासकर मुस्लिमों को भी संस्कृत पढ़नी चाहिए, क्योंकि अपने पूर्वजों के विषय में जानने का यही सही रास्ता है। जब भारत का संविधान लिखा जा रहा था, तब डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर ने संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाने का अथक प्रयास किया पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने उस प्रयास को विफल करने में स्वयं की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया। जो आज भी कष्टकारी बना है।
वर्तमान में जो देश की जमीनी सच्चाई है उसमें संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाना कठिन कार्य है लेकिन राजनैतिक इच्छा शक्ति हो तो ये काम आसान है। अतः अभी भारत और भारतीयता के हित में सर्वोत्तम विकल्प है – देशी भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाना। अर्थात केंद्र और राज्य सरकारों की प्रथम भाषा के रूप में देशी भाषाओं को स्थापित करना और विश्वविद्यालय स्तर तक के सभी स्तरों पर भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत को शिक्षा के माध्यम के अनिवार्य रूप में स्थापित करना चाहिए। जो राष्ट्रहिट में आवश्यक है।
कैसे स्थापित हों राष्ट्र भाषा व भारतीय भाषाएँ ?
जब मई 2014 को केंद्र में संघ परिवार (भाजपा ) की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी, तब भारत प्रेमी प्रबुद्धजनों में आशा जगी थी कि भारतीयता के अनुकूल अन्य श्रेष्ठ कार्यों के साथ ही भारतीय भाषाओं का भाग्य भी जागेगा। संघ परिवार की सरकार बने 5 वर्ष बीत गये पर भारतीयता को प्रतिष्ठा दिलाने वाले कदमों की आहट तक अभी नहीं सुनाई दी, परिणाम तो बहुत दूर की बातें हैं। संघ परिवार की इस विफलता का प्रमुख कारण है – संघ परिवार के सत्ता में आने पर करणीय सर्वसम्मत कार्ययोजना का सर्वथा अभाव! संघ परिवार यह दावा तो कर सकता है कि दर्शन और विचारधारा के रूप में आधा अधूरा ही सही पर ‘एकात्म मानववाद’ उसके पास है, पर सत्ता में आने के बाद करणीय नीतियों, योजनाओं और कार्यों का सम्पूर्ण संघ परिवार द्वारा सर्वसम्मत कोई दस्तावेज नहीं था आगे भी नहीं है। किसी भी राष्ट्र का स्वाभिमान व एकता का प्रथम सूत्र उसकी भाषा में ही होता है। संघ परिवार की भारतीय भाषाओं के प्रति जागरूक तो है पर सरकार पर दबाव नहीं बनता है!
इस लेख का उद्देश्य परिस्थिति में आगे के कर्तव्यों पर विचार प्रमुखता से करना है। संस्कृत, हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं को उनके न्यायोचित स्थान पर स्थापित करने के लिए यहां पर कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं।
1) अपनी मातृभाषा में पढ़े व्यक्ति को केंद्र एवं राज्य सरकार की नौकरियों की प्रतियोगी परीक्षा में १०% राष्ट्र भाषा हिंदी व मातृभाषा1% अतिरिक्त अंक (मार्क्स) देने का प्रावधान करने का कानून केंद्र सरकार बनाये। ताकि अपनी मातृभाषा में पढ़ने को फिर प्रतिष्ठा प्राप्त हो।
2) केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अपने विज्ञापन बजट की 98% राशि को भारतीय भाषाओं की मीडिया को ही देने का नियम बने। ऐसे ही नियम कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए बनाने का प्रयास हो। अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं की मीडिया को बचा हुए 3 % राशि को दिया जाना चाहिए। इससे भारतीय भाषाओं को और उन भाषाओं की मीडिया को प्रतिष्ठा मिलने में सहयोग होगा।
3) केंद्र सरकार की प्रथम भाषा के रूप में अंग्रेजी को विस्थापित करने के लिए संविधान में स्वीकृत सभी भारतीय भाषाओं को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए। अर्थात जिस राज्य की जो भाषा प्रथम राज्य भाषा हो, उससे केंद्र सरकार उसी भाषा में राज्य व्यवहार करे। संगणक युग में यह अनुवाद कार्य बहुत ही सरल हो गया है।
4) उच्च न्यायालयों में हिंदी व संस्कृत को प्रथम भाषा को न्यायालय की प्रथम भाषा के रूप में स्थापित किया जाए और सर्वोच्च न्यायालय में सभी भाषाओं में संवाद की छूट हो। केंद्र सरकार दुभाषियों की व्यवस्था करे।
5) सभी भाषाओं में प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की शिक्षा के लिए संस्कृतनिष्ठ समान शब्दावली बने, ताकि अन्य भाषिक विशेषज्ञों से संवाद में सरलता हो। जैसे संस्कृत भाषा में आयुर्वेद की शब्दावली होने के कारण भारत की किसी भी भाषा में पढ़ने के बावजूद सभी आयुर्वेदिक डॉक्टरों की शब्दावली एक होती है, और भिन्न भाषी होने के बावजूद वे सरलता से आपस में संवाद कर लेते हैं।
6) केंद्र सरकार उन्हीं शिक्षा संस्थानों- विश्वविद्यालयों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से दी जाने वाली अनुदान राशि का 97% देने का नियम बनाये जिनका शिक्षा का माध्यम हिंदी व संस्कृत भाषाएँ हों।
7) विदेशों में पढ़ने जाने वाले या विदेशी भाषा में अनुसंधान करने जाने वाले या शोध पत्र पढ़ने जाने वालों में 97% देशी भाषा वाले विद्यार्थी या शोधार्थी या विशेषज्ञ हों जिनका माध्यम देशी भाषाएँ हों। जिसका अनुवाद हिंदी या संस्कृत में अनिवार्य हो।
8 ) छात्रवृत्ति केवल हिंदी व संस्कृत भाषा में शोध करने वालों को ही मिले। अथवा जिसका अनुवाद हिंदी या संस्कृत में अनिवार्य हो।
9 ) भारत को एक सूत्र में भांधने हेतु सबकी लिपि देवनागरी कर देनी चाहिए। सभी भाषाओ के शब्द इसमें शामिल हो जायेगे।
10) सभी सरकारी कर्मचारियों, सेना के सभी जवानों व अधिकारियों को प्रतिदिन हिंदी व संस्कृत सिखाई जाए सभी पत्र, प्रपत्र,लेख जोखा हिंदी भाषा में तुरंत चालू करें।
11) सरकारी, गैर सरकारी,निजी संस्थाओं, संस्थानों, शिक्षण,प्रशिक्षण संस्थानों के परियोजनाओ, शोधपत्र, पत्रक अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी मे ही हों।
12) सभी पुस्तकालयों मे विदेशी भाषा की सभी प्रकार की पुस्तकों का हिन्दी रूपांतरण अवश्य हो।
13) शिक्षा प्रशिक्षण का माध्यम केवल मात्र-राष्ट्रभाषा हिन्दी व संस्कृत हो।
ऐसे बहुत से उपाय हमारे पास है जिससे भारत में केवल 3 वर्ष में जन जन तक भाषा की समस्या समाप्त हो जाएगी। एक राष्ट्र , एक संविधान, एक भाषा, एक ही कानून, एक राष्ट्र ध्वज तिरंगा।
अगर केंद्र सरकार इन सरल सुझावों को भी लागू कर लेती है तो उसके ये कदम भारतीय भाषाओं को न्यायोचित प्रतिष्ठा दिलाने में दूरगामी परिणाम देने वाले होंगे।
जय भारत से जय जगत।
आओ चले प्रकृति की ओर
विचारक
श्री गुरुजी भू
मुस्कान योग के प्रणेता,
प्रकृति प्रेमी, विश्व चिंतक,
बहुविध-बहुआयामी शोधार्थी