जनआंदोलन थीम पर टीबी को लेकर लोगों को किया जा रहा जागरूक

– केएचपीटी और केयर इंडिया के सहयोग से स्वास्थ्य विभाग की टीम इस पर कर रही काम
-जनप्रतिनिधि और रसूखदार लोगों के सहयोग से लोगों को किया जा रहा जागरूक

भागलपुर, 21 जुलाई-

भारत दुनिया में टीबी का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट है। विश्व की लगभग एक चौथाई टीबी मरीज भारत में हैं। टीबी ने देश में कई वर्षों से अपना जाल बिछा रखा है, जिसे तत्काल दूर करना आवश्यक है। यह बीमारी हमें, हमारे परिवारों और समाज को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करता है। किसी को विश्वास नहीं था कि भारत पोलियो को खत्म कर सकता है, लेकिन ऐसा हुआ। टीबी भी उतनी ही बड़ी चुनौती है, लेकिन इसे भी खत्म करने के लिए सरकार प्रयासरत है। सभी सरकारी अस्पतालओं में इसका मुफ्त इलाज होता है। इसलिए यदि कोई आर्थिक तौर पर संपन्न नहीं है तो उसे टीबी होने पर डरना नहीं चाहिए, बल्कि नजदीकि सरकारी अस्पताल में जाकर जांच करानी चाहिए। अगर जांच में टीबी की पुष्टि हो जाती है तो दवा का कोर्स शुरू कर देना चाहिए और इसे बीच में नहीं छोड़ना चाहिए।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने जनआंदोलन थीम पर काम करना शुरू किया-
टीबी को जड़ से समाप्त करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जनआंदोलन थीम पर काम करना शुरू किया है। इसके तहत क्षेत्र के रसूखदार व्यक्ति या फिर स्थानीय जनप्रतिनिधियों के सहयोग से लोगों में जागरूकता बढ़ाया जा रहा है। इसी के तहत स्वास्थ्य विभाग की टीम ने केएचपीटी (कर्नाटका हेल्थ प्रमोशन ट्रस्ट) केयर इंडिया के सहयोग से वार्ड नंबर 24 की पार्षद फिरोजा यासमीन से संपर्क किया। उनसे लोगों में टीबी के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सहयोग की बात कही गई। फिरोजा यासमीन कहती हैं कि कलंक और भेदभाव को समाप्त किए बिना टीबी के खिलाफ लड़ाई नहीं जीत सकते। लोगों के मन में टीबी के प्रति जो भ्रम है उसे दूर करना आवश्यक है। लोगों में यह समझ विकसित करनी होगी कि टीबी का इलाज संभव है। अगर किसी को टीबी हो जाता है तो इससे डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि इलाज कराने की जरूरत है।
महिलाओं को जागरूक करने की जरूरतः
यासमीन कहती हैं कि कई मरीज, ख़ासकर महिलाएं, अपने परिवार को यह भी नहीं बताती हैं कि वे टीबी से पीड़ित हैं। उन्हें बाहर निकाले जाने का डर है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक पीड़ित होती हैं, क्योंकि वे प्रश्नों से अधिक झिझकती हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इस सोच के प्रति लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है। इसके लिए हमें टीबी पीड़ितों और चैंपियनों को उनकी टीबी की कहानियों के बारे में साहसपूर्वक बोलने के लिए सशक्त होना चाहिए। इन टीबी पीड़ितों और चैंपियनों की सक्रिय भागीदारी ही टीबी के बारे में लोगों की समझ में सुधार लाने, कलंक को कम करने, भेदभाव को रोकने और भारत में टीबी को समाप्त करने के हमारे सामूहिक प्रयासों को गति दे सकती है। साथ में, यदि हम ध्यान रखें, यदि हमें दो सप्ताह से अधिक समय से खांसी है, तो टीबी के लिए परीक्षण करें। हमें रोगी का समर्थन करना चाहिए और उन्हें पूरा इलाज करने में मदद करनी चाहिए। याद रखें कि टीबी इलाज योग्य और रोकथाम योग्य है। टीबी हारेगा देश जीतेगा!
टीबी को हल्के में नहीं लेना चाहिएः सीडीओ डॉक्टर दीनानाथ कहते हैं कि टीबी की बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए। एक टीबी का मरीज साल में 10 से अधिक लोगों को संक्रमित कर सकता है और फिर आगे वह कई और लोगों को भी संक्रमित कर सकता है, इसलिए लक्षण दिखे तो तत्काल इलाज कराएं। टीबी का अगर आप इलाज नहीं कराते हैं तो यह बीमारी आग लगा सकती है। एक के जरिए कई लोगों में इसका प्रसार हो सकता है। अगर एक मरीज 10 लोगों को संक्रमित कर सकता है तो फिर वह भी कई और लोगों को संक्रमित कर देगा। इसलिए हल्का सा लक्षण दिखे तो तत्काल जांच कराएं और जांच में पुष्टि हो जाती है तो इलाज कराएं। डॉक्टर दीनानाथ ने कहा कि टीबी अब छुआछूत की बीमारी नहीं रही। इसे लेकर लोगों को अपना भ्रम तोड़ना होगा। टीबी का मरीज दिखे तो उससे दूरी बनाने के बजाय उसे इलाज के लिए प्रोत्साहित करना होगा। इससे समाज में जागरूकता बढ़ेगी और जागरूकता बढ़ने से इस बीमारी पर जल्द काबू पा लिया जाएगा। ऐसा करने से कई और लोग भी इस अभियान में जुड़ेंगे और धीरे-धीरे टीवी समाप्त हो जाएगा।

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