जलियांवाला बाग के शहीदों की बलिदानी अमरगाथा के 100वें वर्ष को समर्पित सभा

जलियांवाला बाग के शहीदों की बलिदानी अमरगाथा के 100वें वर्ष को समर्पित सभा।

तरंग संवाददाता: नई दिल्ली: 14अप्रैल आज जलियांवाला बाग के शहीदों की बलिदानी अमरगाथा के 100वें वर्ष को समर्पित सभा का आयोजन राष्ट्रीय सिख संगत, राष्ट्रीय गोधन महासंघ, कन्फेडरेशन ऑफ एन जी ओ ऑफ इंडिया द्वारा विश्व युवा केन्द्र, पंडित उमा शंकर दीक्षित मार्ग, तीन मूर्ति रोड, नई दिल्ली में किया गया।

सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलित किया गया। तदुपरान्त जलियांवाला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी है।
राष्ट्रगान व वन्देमातरम् गीत के बाद अतिथियों नें अपने भारतीय परम्पराओं पर विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बडे सन्त स्वामी ज्ञानानंद जी, निर्मले सन्त डॉ रामेश्वरानन्द जी हरि, असम के राज्यपाल महामहिम जगदीश मुखी, लेफ्टीनेंट जनरल सरदार गुरमीत सिंह, श्री विजय खुराना, सरदार देवेन्दर सिंह गुलजार, श्री सुदर्शन सरीन, श्री अजय गुरदासपुरी, श्री अविनाश जायसवाल, विश्व मित्र परिवार के संस्थापक श्री गुरुजी भू , श्री बलदेव महाजन, कल्पना पोपली, दीपा जामवाल, विश्व महिला परिवार की अध्यक्षा श्रीमती भावना त्यागी सहित अनेकों गणमान्य लोग शामिल हुएं। वहीं आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी जलियांवाला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी है।
शहीद उधम सिंह के परिवार से श्री रामसिंह जी, श्री प्यारे लालजी को सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर महामहिम श्री जगदीश मुखी जी ने कहा कि आज हमें संकल्प लेना है कि सभी राज्यों में जलियांवाला बाग नरसंघार को इतिहास की पाठ्य पुस्तकों शामिल करके सभी विद्यार्थियों को सभी कक्षाओं में पढ़ाया जाना चाहिए।
लेफ्टीनेंट जनरल सरदार गुरमीत सिंह ने कहा कि आज हमें संकल्प लेना है कि हम अंग्रेजीयत को आज ही त्याग दें। भारतीय संस्कृति के सभी तथ्यों को जानें, समझें और अपनाएं।
उस साल, यानी 1919 को आज के दिन इतवार था।  बैसाखी के मौके पर पूरा पंजाब झूम रहा था।  गुरमेल सिंह अपने बीवी-बच्चे के साथ गांव से अमृतसर आया था।  स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने के बाद उसका पांच साल का बेटा बोला, ‘बापू, मेनू जलियांवाला बाग ले चलो।  औ मेनू वेखना सी.’गुरमेल उसकी बातों में आ गया.’चल पुत्तर, हुन चल’…उसकी बीवी, सुखप्रीत कौर, मंदिर में जनानियों के बीच में बैठी बातें कर रही थी. ‘ओ सुखप्रीते, छेती कर. नोने (छोटा बच्चा) नू जलियांवाला बाग ले चलना है.’ नोना गुरमेल सिंह और मां की उंगली थामे ख़ुशी-ख़ुशी चल दिया।

सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन तभी अचानक वहाँ  गोलिया बरसने लगी। लगभग दस मिनट तक गोलियां उगलने के बाद बंदूकें ख़ामोश हो गयीं. लोग चीख़-चिल्ला रहे थे।  गुरमेल ने वोटी से पूछा – ‘तू ठीक तो है?’ कौर बीवी ने रोते-रोते अपने और बच्चे की सलामती कही और गुरमेल से पुछा – ‘तुस्सी ते ठीक हो?’ गोली उसकी कमर में लगी थी. वह लुढ़क गया। इलाज का कोई साधन नहीं था। नगर में कर्फ्यू था।  वहां उपस्थित  ज्यादातर लोगों की कुछ ऐसी ही कहानी थी।

इसके आगे कुछ तथ्य

जलियांवाला बाग में उस दिन 1650 राउंड फायर हुए थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ 379 लोग मारे गए थे, 1500 घायल हुए थे।  हालांकि मरने वालों की तादाद 1000 के आसपास थी।  इसके बाद हंटर आयोग बिठाया गया था. आयोग की रिपोर्ट में ब्रिगेडियर जनरल डायर को दोषी क़रार दिया गया और उसे बर्ख़ास्त करने की सिफ़ारिश की गयी थी।  गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने इस नरसंहार के विरोध में अपना नोबेल पुरस्कार वापस कर दिया और सरदार उधम सिंह ने पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ ड्वायर की लंदन में गोली मारकर हत्या कर दी. ड्वॉयर ने बाग में जनरल डायर की कार्रवाई का समर्थन किया था. गांधी जी ने भी अपना असहयोग आंदोलन तेज़ कर दिया था। बिपिन चंद्र लिखते हैं – ‘भारत के साथ उनके प्रयोग शुरू हो गए थे। ’

 चर्चिल ने इसके ख़िलाफ़ सबसे कड़ा बयान दिया था ।  उसने कहा – ‘ब्रिटेन के इतिहास में इससे बड़ी दानवीय घटना नहीं हो सकती। इसका कोई सानी नहीं है। ’
जलियांवाला बाग  नरसंहार  ऐसा हत्या कांड था जिसने चर्चिल जैसे हिंदुस्तान विरोधी के दिलो – दिमाग को भी हिलाकर रख दिया था।

 

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