नरेंद्र मोदी के अनेकों अनसुने मार्मिक किस्से, जो उनको बनाते हैं महान

गुजरात में मुख्यमंत्री रहने से लेकर दिल्ली में प्रधानमंत्री बनने तक नरेंद्र मोदी के साथ निकटता से कार्य करने के दौरान अनेक लोगों ने जो कुछ देखा और अनुभव किया, वही अनुभव अनेक गणमान्य हस्तियों ने वीडियो के माध्यम से बताया है। प्रधानमंत्री मोदी से जुड़ीं सभी सत्य घटनाओं को प्लेटफॉर्म देने का काम कुछ वॉलंटियर्स के ग्रुप ने एक पोर्टल बनाकर किया है।
https://www.modistory.in/ नामक पोर्टल पर हस्तियों के हवाले से 60 से अधिक रोचक अनसुनी कहानियां हैं। लॉन्च हुए modistory.in नामक पोर्टल पर प्रधानमंत्री से जुड़ीं कई ऐसी घटनाएं हैं, जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है।

बाजरे की रोटी के टुकड़े को पानी से खाने को क्यों मजबूर हुए नरेंद्र मोदी? एक सांस में दूध पीते बच्चे को देख क्यों मोदी की आंखों में आ गए आंसू? कैसे मां के दिए 11 रुपयों से कारगिल विधवा को चुनाव लड़वाकर सांसद बनवाने में की मदद? मोदी के जीवन से जुड़ीं ऐसी एक नहीं, दर्जनों दास्तान हैं, जिन्हें पहली बार एक प्लेटफॉर्म पर संजोने की पहल हुई है।

डॉक्टर अनिल रावल गुजरात में नरेंद्र मोदी के साथ लंबे समय तक कार्य कर चुके हैं।
1983-84 की एक घटना के बारे में अनिल रावल ने बताया कि नरेंद्र भाई कार चला रहे थे और मैं उनके बाजू में बैठा था। रास्ते में मैंने प्रश्न किया- नरेंद्र भाई, समाज के अंतिम मानव तक के उत्थान के लिए कार्य करने का दृढ़ निश्यय कैसे हुआ?

तब नरेंद्र भाई बोले- मैं एक गांव में गया था। पूर्णकालिक प्रचारक होने के नाते, स्वयंसेवक के घर भोजन के लिए हम जाते हैं। जिस स्वयंसेवक के यहां गया, उसके पास घर के नाम पर एक झोपड़ा था। स्वयंसेवक के परिवार में पति-पत्नी और एक छोटा बच्चा था। घर पहुंचे पर स्वयंसेवक ने भोजन के बारे में पूछा था तो मैंने हां बोला।

उन्होंने ऊबड़-खाबड़ थाली में बाजरे की रोटी का आधा टुकड़ा और छोटी कटोरी में दूध दिया। मैंने देखा कि मां की गोद में एक बच्चा था। वह बच्चा एक ही नजर से दूध की कटोरी को देख रहा था। मैं समझ गया कि दूध, उस बच्चे का है।

तब मैंने(मोदी ने) कहा- मैं बाहर से नाश्ता कर आया हूं, इसलिए दूध नहीं लूंगा। मैने रोटी के उस आधे टुकड़े को पानी से खाया और दूध छोड़ दिया। मां ने दूध की कटोरी, बच्चे को पकड़ा दी। वह बच्चा एक ही सांस में दूध पी गया। यह देख, मेरी आंख में आंसू आ गया। तभी से भारत के हर मानव के उत्थान के लिए जिंदगी जीने का संकल्प लिया।

1999 में मोदी हरियाणा भाजपा के प्रभारी थे। कारगिल युद्ध के बाद हो रहे 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को गुरुग्राम से अच्छे उम्मीदवार की तलाश थी। तब नरेंद्र मोदी ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए सुखबीर सिंह यादव की विधवा सुधा यादव को चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव रखा।

सुधा यादव बतातीं हैं कि जब पैसे की बात आई तो मोदी ने चादर बिछाकर ऊपर एक कलश रख दिया। फिर अपनी जेब से एक पोटली निकाली, जिसमें 11 रुपये थे। मोदी बोले- माता जी ने 11 रुपये देकर कहा था कि कभी तेरे काम आएंगे। मेरा तो खर्चा, संगठन उठाता है। इसलिए मां के 11 रुपये आज भी पड़े रहे। आज सही दिन है, जब इन 11 रुपयों का योगदान, बहन को चुनाव लड़वाने के लिए कर सकता हूं।

मोदी ने अन्य लोगों से निवेदन करते हुए कहा- आप लोग, सिर्फ आने-जाने का किराया छोड़कर बाकी सभी रुपए, सुधा बहन के चुनाव के लिए दान करने का कष्ट करें। मोदी की अपील पर आधे घंट के अंदर साढ़े सात लाख रुपये चादर के ऊपर चढ़ गए। उस चुनाव में सुधा ने दिग्गज नेता राव इंद्रजीत सिंह को 1 लाख 39 हजार से अधिक वोटों से हराया था।

गुजरात कैडर के 1981 बैच के आईएएस अधिकारी हंसमुख आंधिया ने बताया कि एक बार मैं नरेंद्र मोदी के साथ बैठा था। तभी एक चपरासी की तरफ इशारा करते हुए मोदी ने कहा-हंसमुख भाई! इसे जानते हैं। इसका नाम प्रताप है और इसकी हैंडराइटिंग बहुत सुंदर है। जब आपको कभी आमंत्रण कार्ड पर नाम आदि लिखवाना हो तो इसकी सुंदर हैंडराइटिंग का उपयोग कर सकते हैं।

हंसमुख ने बताया कि “मैं मोदी की बात सुनकर हैरान रह गया कि कोई मुख्यमंत्री अपने हर स्तर के स्टाफ के बारे में इस कदर जानकारी रखता है। जबकि खुद मेरे पास तीन से चार पियोन रहे, लेकिन उनके नाम तक मैं नहीं जानता था। लेकिन, एक सीएम होकर भी नरेंद्र मोदी अपने चपरासी की भी क्वालिटी जानते थे। इस बात ने बहुत प्रभावित किया।

बकौल दीपक (मोदी का सहयोगी रहा था ) ने बताया कि अचानक मोदी जी किचन में गए और पूछे कि कुछ खाने को है तो मैने कहा- सब लोग नाश्ता करके चले गए। ऊपर किचेन के ऊपर गए तो अचार का डब्बा रखा था। बोले- उसमें क्या है तो मैने कहा- अचार खत्म हो गया, सिर्फ मसाला बचा है। इसके बाद मोदी ने मुझसे प्याज कटवाया और खुद आटा बनाकर पराठे बनाने लगे। मेरे साथ दो पराठे खाए। इससे पता चला कि मोदी जी की सादगी और कोई भी चीज बर्बाद न करने की सोच का पता चलता है।

भाजपा विदेश प्रकोष्ठ के प्रमुख विजयचौथाईवाला बताते हैं, – नरेंद्र भाई मोदी, गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए वर्ष 2008 में केन्या गए थे। फिर, आठ साल बाद वह बतौर प्रधानमंत्री, केन्या गए। प्रधानमंत्री मोदी से हाथ मिलाने के लिए लोग एक-एक कर आते रहे।

तभी मोदी की नजर एक बुजुर्ग महिला पर पड़ी तो वह खुद मंच से उतरकर पास पहुंचे और बोले- केम छो अरुणा बेन। कमाल की बात रही कि आठ साल के बीच कोई संपर्क न होने पर भी उनको महिला का नाम याद रहा।

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