भारतीय इतिहास की बर्बरतापूर्ण सत्य कथा।
262 भारतीय वीरांगनाओं का शौर्य एवं बलिदान
दुष्ट जाफर अली का वध
वो आज का ही दिन था। अर्थात संवत् 1374 (सन् 1317 ई०) की वैशाखी अमावस्या के दिन कोताना (जि० मेरठ) के पास सूर्योदय के समय 262 आर्यदेवियां यमुना नदी में स्नान कर रही थीं।
ये हिन्दू देवियां जाट, राजपूत और ब्राह्मण घरानों की थीं।
खिलजी वंश का घिनौना सरदार जाफर अली कोताना का अधिकारी था। उसने अपने सैनिकों को साथ लेकर उन वीरांगनाओं को जा घेरा।
इन नरपिशाचों को भले ही स्कूली किताबों में महकन बताया जाता है लेकिन वास्तव मे ये हवस के पुजारी थे, भयंकर नरपिशाच व हिन्दुओ के हत्यारे थे।
तो वह दुष्ट जाफर अली एक हिन्दू वीरांगना जाट लड़की पर मोहित हो गया। उसको आता देखकर सब हिन्दू वीरांगनाओं ने अपने शस्त्र सम्भाल लिये। एक लड़की ने उस सरदार से कहा कि “तुम एक बार हमारी बहन की बात सुन लो।”
भारतीय वीरांगना द्वारा दुष्ट जाफर अली का वध
वह विषयी कीड़ा, राक्षसी प्रवृत्ति व नीचता का घिनौना सरदार घोड़े से उतरकर उनके पास पहुंचा और उस वीरांगना जाट लड़की को अपनी बीबी बनने के लिए कहा। यह शब्द सुनते ही उस जाट वीरांगना ने अपनी तलवार से एक ही वार में उस नरपिशाच जाफिर अली का सिर काट दिया।
उस सरदार के मरते ही मुसलमान सैनिकों और उन वीरांगनाओं में तलवारें चलने लगीं। देखते-देखते 262 आर्य देवियां धर्म की बलिवेदी पर प्राणों की आहुति दे गईं।
सभी क्षत्राणियां लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गयी लेकिन किसी मुसलमान का हाथ अपने शरीर पर नहीं लगने दिया।
इन महान भारतीय वीरांगनाओं के बलिदान को कोटि कोटि नमन।
(संदर्भ-श्री जगदेवसिंह शास्त्री सिद्धान्ती का लेख, बलिदान विशेषांक, पृ० 252 पर एवं सर्वखाप पंचायत रेकॉर्ड)