जवाहर लाल नहीं थे भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री

अगर हम आपसे ये सवाल पूछें कि भारत के पहले प्रधानवमंत्री का नाम क्या था ? तो आप यही कहेंगे कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के छोटे से छोटे स्कूल और बड़ी से बड़ी यूनिवर्सिटी के छात्र यही जवाब देंगे क्योंकि बचपन से ही भारत में स्कूल की किताबों में यही इतिहास पढ़ाया गया है।

आज तक मैं भी इसी अंधेरे में जी रहा था कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे क्योंकि चाचा नेहरू की फोटो तो स्कूल के हर कमरे में टंगी हुई होती थी लेकिन रात को मैं डीएनए देख रहा था। उसमें सुधीर चौधरी ने जो इतिहास बताया वह वाकई हैरान कर देने वाला था। उस वक्त मेरा दिमाग ठनक गया क्या पता हमें इन लोगों ने क्या क्या और गलत पढ़ाया होगा।

लेकिन ये बात पूरी तरह सच नहीं है। सच ये है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी पहले, भारत की पहली आज़ाद सरकार के, पहले प्रधानमंत्री, नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। शायद आपको इस बात पर यकीन नहीं हो रहा होगा । लेकिन इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। आज़ाद भारत में सरकारों ने कुछ खास किस्म के इतिहासकारों को ही मान्यता दी और इन इतिहासकारों ने भारत के इतिहास से जुड़ी बहुत सी महत्वपूर्ण घटनाओं को आप से छुपा लिया ।


सुभाष चंद्र बोस भारत की पहली आज़ाद सरकार के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री थे लेकिन ये बात कभी हम सबको बताई ही नहीं गई । इस सरकार को ‘आज़ाद हिंद सरकार’ कहा जाता है। ये सरकार 21 अक्टूबर 1943 को बनी थी। इसका अर्थ ये है कि भारत की मौजूदा सरकार ने सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद सरकार को मान्यता दे दी है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले का दौरा किये और वहां आज़ाद हिंद फौज़ संग्रहालय का उद्घाटन किया ।


भारत की पहली आज़ाद सरकार की स्थापना और उसकी घोषणा सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को की थी। इस घोषणा के तुरंत बाद ही 23 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिंद सरकार दूसरे विश्व युद्ध के मैदान में उतर गई थी। आज़ाद हिंद सरकार के प्रधानमंत्री नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटेन और अमेरिका के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया था।

उस वक्त 9 देशों की सरकारों ने सुभाष चंद्र बोस की सरकार को अपनी मान्यता दी थी। जापान ने 23 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिंद सरकार को मान्यता दी। उसके बाद जर्मनी, फिलीपींस, थाईलैंड, मंचूरिया और क्रोएशिया ने भी आज़ाद हिंद सरकार को अपनी मान्यता दे दी।
आज़ाद हिंद सरकार ने जापान सरकार के साथ मिलकर म्यांमार के रास्ते पूर्वोत्तर भारत में प्रवेश करने की योजना बनाई थी।

सुभाष चंद्र बोस ने वर्मा की राजधानी रंगून को अपना हेडक्वार्टर बनाया, तब वहां जापान का कब्ज़ा था। 18 मार्च 1944 को सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज ने भारत की धरती पर कदम रखा था और उस जगह को अब नागालैंड की राजधानी कोहिमा के नाम से जाना जाता है।

आज़ाद हिंद फौज के शौर्य में कोई कमी नहीं थी लेकिन दो प्रमुख वजहों से सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज.. कोहिमा से आगे नहीं बढ़ सकी। पहली वजह ये है कि ये युद्ध जंगलों में लड़ा जा रहा था। तब जुलाई का महीना था और भारी बारिश की वजह से सेना का आगे बढ़ना मुश्किल था और दूसरी बड़ी वजह ये थी कि आज़ाद हिंद फौज के पास Air Support नहीं था । ब्रिटिश सेना के पास लड़ाकू विमान थे, जिनके सामने आज़ाद हिंद फौज के सैनिक मजबूर थे।

सुभाष चंद्र बोस, आज़ाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री थे । लेफ्टिनेंट कर्नल ए सी चटर्जी आज़ाद हिंद सरकार के वित्त मंत्री थे। एस ए अय्यर आज़ाद हिंद सरकार के प्रचार मंत्री थे । रास बिहारी बोस को आज़ाद हिंद सरकार का सलाहकार बनाया गया था। इस सरकार की स्थापना करते वक्त नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने ये शपथ ली थी कि ‘ईश्वर के नाम पर मैं ये पवित्र शपथ लेता हूं कि भारत और उसके 38 करोड़ लोगों को आज़ाद करवाऊँगा’।

आज़ाद हिंद सरकार ने ये तय किया था कि तिरंगा झंडा, भारत का राष्ट्रीय ध्वज होगा . विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार रवींद्र नाथ टैगोर का जन-गण-मन भारत का राष्ट्रगान होगा और लोग एक दूसरे से अभिवादन के लिए जय हिंद का प्रयोग करेंगे।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित मृत्यु के बाद भी ब्रिटेन और अमेरिका की खुफिया एजेंसियां पूरी दुनिया में उनकी तलाश करती रहीं ये वो दौर था जब अहिंसा के पुजारियों पर लाठियां बरसाना, अंग्रेज़ों का बहुत प्रिय शौक था लेकिन सुभाष चंद्र बोस ने खून का बदला खून से लेने की नीति पर काम किया।

ये सुभाष चंद्र बोस द्वारा छेड़ा गया रक्त रंजित संग्राम था जिसमें अंग्रेज़ों की सेना के 45 हज़ार से ज़्यादा सैनिकों की मौत हुई थी। बर्मा की जंग में अंग्रेज़ों की सेना सुभाष चंद्र बोस के चक्रव्यूह में इस तरह फंसी थी कि ब्रिटिश सेना के 10 हज़ार से ज़्यादा सैनिक बीमारियों का शिकार हो गए थे। इस लड़ाई में अमेरिका की सेना के भी 3 हज़ार से ज़्यादा सैनिकों की मौत हुई थी।

लेकिन ये बहुत दुख की बात है कि आज भी सुभाष चंद्र बोस को वो सम्मान नहीं दिया गया जिसके वो हकदार थे। ये बड़े आश्चर्य की बात है कि हमारे देश के कुछ नेताओं ने अपने जीते जी अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान ही खुद को भारत रत्न से सम्मानित कर लिया। लेकिन नेता जी सुभाष चंद्र बोस को आज तक भारत रत्न नहीं दिया गया। पंडित जवाहर लाल नेहरू को वर्ष 1955 में भारत रत्न दिया गया था और तब वो भारत के प्रधानमंत्री थे। इंदिरा गांधी को वर्ष 1971 में भारत रत्न दिया गया था और वो भी उस दौरानष भारत की प्रधानमंत्री थीं। मृत्यु के तुरंत बाद राजीव गांधी को भी भारत रत्न दिया गया। लेकिन आज तक ये सम्मान सुभाष चंद्र बोस को नहीं मिला।

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