दुनिया भर में आर्थिक उथल-पुथल चिंता का विषय

बढ़ती महंगाई दर और दुनियाभर के शेयर बाजारों का धड़ाम होना क्या किसी खतरे की घंटी है ? या फिर इसे कोरोना के बाद का असर और रूस-यूक्रेन युद्ध का परिणाम माना जाए? आर्थिक जानकारों के लिए अभी यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि क्या सचमुच दुनिया फिर आर्थिक मंदी की तरफ जा रही है?

अमरीका और भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों के शेयर बाजार पिछले छह माह के दौरान लुढ़कते नजर आ रहे हैं। हालत यह है कि भारतीय बाजार 20 फीसदी तो अमरीकी बाजार 30 फीसदी गोता लगा चुके हैं।


अमरीका में चार दशक बाद की सबसे चिंताजनक महंगाई दर ने पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा रखी है। तेल के दामों में उठापटक और डॉलर के मुकाबले रुपए का लगातार कमजोर होना हमारे लिए तो वाकई बड़ी चिंता के कारण माने जा सकते हैं।

आज दुनियाभर में रोजगार के घटते अवसर बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भले ही भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढऩे का अनुमान लगा रही हों, पर जमीन पर ऐसा होता अभी नजर नहीं आ रहा।

दुनिया की आर्थिक उथल-पुथल का असर हम पर पडऩा निश्चित है लेकिन हमें अपनी जरूरतों के लिए नए विकल्पों पर ध्यान देना होगा। तेल और गैस के मामलों में अपने पैरों पर खड़े होने की तैयारी तेज करनी होगी। निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ स्टार्टअप जैसी योजनाओं को और व्यावहारिक बनाने पर भी ध्यान देना होगा।

‘मेक इन इंडिया का नारा, नारा बनकर नहीं रह जाए, इसकी चिंता भी करनी होगी। माना कि महज शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव से ही किसी देश की आर्थिक हालत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता लेकिन इसके संकेतों को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता।

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