1400 साल पुरानी एक अनोखी धूपघड़ी, सूरज की किरणों और एक कीली द्वारा बनी परछाई से समय का ज्ञान

प्राचीन काल में लोग इस सूंडियाल के सामने बैठकर तपस्या करते थे। 1400 साल पुराने इस मंदिर में लगी सूर्य घड़ी आज भी लोगों को आकर्षित करती है

तमिलनाडु के तंजावुर जिले के थिरुविसनलुर में शिवोगीनाथर मंदिर में 1400 साल पुराना एक सूंडियल समय बताता है। मंदिर की दीवार से 35 फीट ऊंची यह घड़ी चौला राजाओं की सर्वज्ञता और वैज्ञानिक दूरदर्शिता का प्रमाण देती है।

प्राचीन काल में घड़ियां बिजली या चाबी से नहीं, बल्कि सौरमंडल से चलती थीं। जैसे ही सूर्य की किरणें दीवार पर ग्रेनाइट से उकेरी गई इस अर्धवृत्ताकार घड़ी की पीतल की सुई पर पड़ती हैं।

इसके लिए एक तीन इंच लंबी पीतल की सुई को क्षितिज रेखा के केंद्र में स्थिर रखा जाता है। हालांकि, यह सौर घड़ी रात का समय नहीं दिखाती है। मंदिर में आने वाले भक्त सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक घड़ी देखकर अपनी दिनचर्या निर्धारित करते थे। माना जाता है कि इस घड़ी में पाए गए अंग्रेजी अंकों को अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए शामिल किया था।

1400 साल पुराने इस मंदिर की सूर्य घड़ी आज भी लोगों का आकर्षण है। जैसे-जैसे पीतल की सुई की चमक समय के साथ फीकी पड़ती गई, वैसे-वैसे घड़ी की मरम्मत की जरूरत है। प्राचीन काल में बहुत से लोग इस सूर्य घड़ी के सामने बैठकर तपस्या करते थे।
जब दुनिया में आधुनिक घड़ियों का आविष्कार नहीं हुआ था, तब सौर घड़ियों का इस्तेमाल समय बताने के लिए किया जाता था। प्राचीन वैदिक काल में सौर घड़ियों का उल्लेख मिलता है। दिल्ली की जंतर मंतर वेधशाला एक गोलाकार और विशाल धूपघड़ी है। हाल ही में विवादित कुतुब मीनार को भी मौसम का बिंदु माना जाता है।

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