राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत न्यूरल ट्यूब डिफेक्टस से पीड़ित भेजा गया पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान 

– मात्र चार दिन पहले 27 अगस्त को सदर अस्पताल मुंगेर में हुआ था शिवान्या राज का जन्म

– जन्मजात माइलोमेनिंगोसिल नामक बीमारी से ग्रसित है माधोपुर निवासी कुंदन कुमार की बेटी शिवन्या राज  

मुंगेर

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के तहत डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर (डीईआईसी) मुंगेर के द्वारा गुरुवार की  सुबह जन्मजात बीमारी से पीड़ित मात्र चार दिन की  बच्ची को एंबुलेंस से बेहतर इलाज के पटना स्थित इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान भेजा गया है।  जिला स्वास्थ्य समिति के जिला कार्यक्रम प्रबंधक (डीपीएम) नसीम रजी ने बताया कि मात्र चार दिन पहले 27 अगस्त को सदर अस्पताल में जन्म लेने वाली शिवन्या राज माधोपुर मुंगेर के रहने वाले कुंदन कुमार की  बच्ची है जो तंत्रिका नली दोष न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स से पीड़ित है।

यह बच्ची न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स (एनटीडी) के अंतर्गत जन्मजात माइलोमेनिंगोसिल नामक बीमारी से ग्रसित है । इस बीमारी में स्पाइनल कॉर्ड की हड्डियों का सही तरीके से विकास  नहीं हो पाता है। यह बीमारी गर्भवती महिला के गर्भावस्था के पांचवें सप्ताह में ही हो जाती  है। इस तरह की बीमारी में बच्चों का पूरी तरह से ठीक हो पाना थोड़ा मुश्किल होता है।  

डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर(डीईआईसी) मुंगेर में कार्यरत अर्ली इंटरवेनिस्ट निशांत कुमार ने बताया कि न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स उस वक्त उत्पन्न होता है जब न्यूरल ट्यूब्स ठीक से बंद नहीं हो पाते हैं। न्यूरल ट्यूब से ही स्पाइनल कॉर्ड और दिमाग विकसित होता है। इस प्रकार की  जन्मजात विकृतियां गर्भावस्था के  शुरुआती दिनों में ही होने लगती  हैं । उन्होंने बताया कि मुख्य रूप से दो प्रकार के न्यूरल डिफेक्ट्स होते हैं –

1. बाइफिडा – इसमें स्पाइनल कॉर्ड में डिफेक्ट्स होता है।

2. एनेनसिफले – इसमें ब्रेन में डिफेक्ट आ जाता है। ये दोनों ही बीमारी जन्मजात होती है और इन बीमारियों से पूरी तरह से ठीक हो पाना मुश्किल होता है। उन्होंने बताया कि न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स के कई कारण हो सकते हैं, जैसे जेनेटिक्स, न्यूट्रिशन और एनवायरनमेंट फैक्टर । इसके अलावा न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स के कुछ लक्षण जैसे पैरालिसिस, यूरीनरी प्रॉब्लम्स, डिफनेस, इंटेलक्चुअल डिसएबलिटी और कॉन्स्नेस की कमी। कुछ केस में पीड़ित बच्चों की मौत या गंभीर दिव्यांगता के लक्षण देखने को मिलते हैं।

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