-पोषण में लापरवाही करने पर बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है नकारात्मक असर
-गर्भावस्था के दौरान पौष्टिक आहार का सेवन करें, बच्चे पर पड़ेगा सकारात्मक असर
बांका-
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को सही पोषण को लेकर सजग रहने की जरूरत है। इससे न सिर्फ उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है, बल्कि बच्चे के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ता है। इसी तरह से अगर गर्भावस्था के दौरान महिलाएं लापरवाही करती हैं तो इसका नकारात्मक असर बच्चे के स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसलिए गर्भ धारण करने के साथ ही पोषण को लेकर सतर्क हो जाएं और पौष्टिक आहार को तवज्जो दें।
शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉ. सुनील कुमार चौधरी कहते हैं कि बच्चे के स्वास्थ्य के मद्देनजर महिलाओं को गर्भ धारण करने के साथ ही थोड़ा सतर्क रहना पड़ता है। खासकर उन्हें भोजन को लेकर ध्यान देने की जरूरत होती है। एक साथ दो जान की परवाह करनी पड़ती है। इसलिए पौष्टिक आहार का सेवन फायदेमंद रहता है। उन्हें अपने आहार में उन चीजों को शामिल करना पड़ता है, जिसमें पौष्टिक तत्व होते हैं। साथ ही एक आहार तालिका बनाने की जरूरत होती है, जिससे उन्हें सही आहार लेने में मदद मिलती है ।
हरी सब्जियों और मौसमी फल का करें सेवनः डॉ. चौधरी कहते हैं कि गर्भ धारण करने के बाद प्रोटीन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है हरी सब्जियों का सेवन। इसके साथ-साथ मौसमी फल का भी सेवन गर्भवतियों को प्रचुर मात्रा में करना चाहिए। इसके अलावा दूध, दही, घी, मांस, अंडा, मछली इत्यादि भी लेना चाहिए। जो महिलाएं शाकाहारी हैं, उन्हें हरी सब्जियों के साथ दूध, दही, घी पर फोकस करना चाहिए। इसके अलावा फल का भी सेवन करें। इससे काफी मात्रा में शरीर को प्रोटीन मिलेगा, जिससे आपकी जरूरतें पूरी होंगी और बच्चे के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
जन्म के बाद एक घंटे के अंदर बच्चे को पिलाएं मां का दूधः डॉ. चौधरी कहते हैं कि प्रसूता जब बच्चे को जन्म देती है तो एक घंटे के अंदर बच्चे को मां का गाढ़ा पीला दूध अवश्य पिलाना चाहिए। यह बच्चे के लिए अमृत के समान होता है। इसके साथ ही छह महीने तक बच्चे को सिर्फ मां का ही दूध देना चाहिए। पानी भी नहीं देना चाहिए। बच्चे जब छह महीने का हो जाएँ तो उसे पूरक आहार देना शुरू कर देना चाहिए। उसे खिचड़ी, खीर आदि देना शुरू कर देना चाहिए।
छह महीने के बाद बच्चे की जरूरत बढ़ जाती और सिर्फ मां के दूध से उसकी जरूरत की पूर्ति नहीं होती है। इसके साथ ही दो वर्ष तक बच्चे को मां का दूध अवश्य पिलाना चाहिए। इससे बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है, जिससे वह भविष्य में बीमारियों की चपेट में आने से बचा रहता । अगर आ भी जाता है तो उससे वह जल्द ऊबर जाता है।