-रजौन प्रखंड के आसमानी गांव के विकास पासवान जी रहे स्वस्थ जीवन
-जांच, इलाज से लेकर दवा तक अस्पताल में मिली मुफ्त, साथ में राशि भी
बांका, 13 अक्टूबर। रजौन प्रखंड के आसमानी गांव के रहने वाले विकास पासवान एक साल पहले टीबी की चपेट में आ गए थे। पहले तो निजी अस्पताल का दरवाजा खटखटाया, लेकिन आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं रहने के कारण ज्यादा दिनों तक वहां इलाज नहीं करा पाए। विकास और उनके परिजन चिंतित रहने लगे।
इसी दौरान क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता विनीता कुमारी को इसकी जानकारी मिली। तत्काल वह विकास के घर गईं और बीमारी के बारे में पूरी जानकारी ली। इसके बाद विकास और उनके परिजनों को पूरी तरह से आश्वस्त किया कि डरने की कोई बात नहीं है। टीबी का इलाज अब बहुत ही आसान हो गया है और वह भी बिल्कुल ही मुफ्त में।
आशा विनीता कुमारी विकास को लेकर अगले ही दिन रजौन स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गईं। वहां पर लैब टेक्नीशियन चंद्रशेखर कुमार से उसकी मुलाकात करवाईं।
चंद्रशेखर ने विकास की जांच की, जिसमें उसके टीबी से पीड़ित होने की पुष्टि हुई। इसके बाद शुरू हुआ इलाज। नौ महीने तक दवा चली और विकास हो गया पूरी तरह से स्वस्थ। अब उसे कोई परेशानी नहीं है। आशा विनीता कहती हैं कि क्षेत्र के लोगों को टीबी के प्रति मैं लगातार जागरूक करती रहती हूं। जब मुझे पता चला तो मैं तुरंत विकास के घर गई और उसे अगले ही दिन इलाज के लिए रजौन लेकर गई। अब वह ठीक है। फिर भी मैं लगातार निगरानी रख रही हूं। साथ में उसे यह भी कहा है कि अगर कोई परेशानी हो तो बेझिझक मुझे कहें। मेरा यह कर्तव्य है कि क्षेत्र के लोगों को सरकारी सुविधाएं उपलब्ध करवाऊं। यही सोचकर मैं अपने क्षेत्र में लगी रहती हूं।
नौ महीने तक लगातार दवा का सेवन कियाः विकास कहते हैं कि मैं तो शुरुआत में डर ही गया था। गरीब आदमी हूं। निजी अस्पताल में कितना दिन इलाज करवा पाता, लेकिन आशा दीदी के सहयोग से मेरा इलाज हुआ और मैं ठीक हो गया। इलाज के दौरान मैंने दवा का सेवन लगातार किया। एक भी दिन दवा छोड़ी नहीं। सबसे अहम बात यह है कि जांच से लेकर इलाज और दवा तक में मेरा कोई पैसा नहीं लगा। ऊपर से जब तक इलाज चला मुझे सरकार की ओर से पांच सौ रुपये प्रतिमाह राशि भी मिली।
टीबी के लक्षण दिखे तो जाएं सरकारी अस्पतालः लैब टेक्नीशियन चंद्रशेखर कुमार कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के मन में यह बात बैठी रहती है कि निजी अस्पताल में बेहतर इलाज होता है, लेकिन कुछ ही दिनों में उनका यह भ्रम टूट जाता । वापस सरकारी अस्पताल आते और यहां इलाज कराकर स्वस्थ्य होकर जाते हैं। अगर लोग शुरुआत में ही सरकारी अस्पताल आएं तो वह पहले ठीक हो जाएंगे और आर्थिक नुकसान भी नहीं होगा। इसलिए लोगों से मैं यही अपील करना चाहता हूं कि अगर टीबी के लक्षण पता चले तो निःसंकोच पहले सरकारी अस्पताल ही आएं।