जिन लोगों ने पहले ठुकराया, बाद में वहीं लोग हो गए मुरीद

-टीबी मरीजों का इलाज कराने के कारण समाज के लोगों ने बना ली थी दूरी
-लोगों को जागरूक कर टीबी के बारे में समझाया तो अब वहीं बन गए मुरीद

बांका,

स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्करों को कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सबसे पहले तो बीमारी के प्रति जागरूक करने और उसका इलाज कराने में ही उन्हें पसीना बहाना पड़ता है, लेकिन बीमारी के प्रति भी समाज के लोगों का नजरिया कई बार सकारात्मक नहीं रहता है। खासकर टीबी जैसी बीमारी के प्रति लोगों के मन में परंपरागत सोच भी है।

ऐसे में लोग न सिर्फ टीबी के मरीजों से दूरी बनाने लगते हैं, बल्कि उसकी देखभाल करने वालों को भी अलग नजरिये से देखते हैं। लेकिन जब आप किसी भी काम को ठान लेते हैं तो सफलता जरूर मिलती है। कटोरिया के दर्वेपति गांव की आशा कार्यकर्ता रूपा श्रीवास्तव को भी शुरुआत में इन चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन जब उन्होंने क्षेत्र में लगातार मेहनत किया और लोगों को टीबी के बारे में समझाया तो अब वहीं लोग उनके मुरीद हो गए हैं।

लोग खुद मोबाइल से देते हैं जानकारीः रूपा श्रीवास्तव कहती हैं कि समाज के लोगों के मन में टीबी के प्रति एक नकारात्मक रवैया था। उसे बदलना आसान नहीं था। जब मैंने काम शुरू किया था तो शुरुआत में काफी तिरस्कार का सामना करना पड़ा था, लेकिन समय के साथ सब कुछ बदल गया।

टीबी उन्मूलन को लेकर सरकार के कार्यक्रम की जानकारी जब एक-एक लोगों तक पहुंचाया तो उनका नजरिया बदलने लगा। खासकर जब टीबी मरीजों को चिह्नित कर उसे अस्पताल तक पहुंचाया और वह पूरी तरह से ठीक हो गए तो लोगों की सोच बदल गई। अब टीबी के मरीज भी ठीक हो गए और लोग भी सकारात्मक सोचने लगे।

लोगों में यहां तक बदलाव आ गया है कि अगर क्षेत्र में किसी में टीबी के लक्षण दिखाई पड़ते हैं तो मुझे मोबाइल से कॉल कर इसकी जानकारी देते हैं। इसके बाद मैं उनका जांच और इलाज करवाती हूं। मेरे लिए यह किसी उपलब्धि से कम नहीं है।
कड़ी मेहनत से रूपा को मिली सफलताः कटोरिया रेफरल अस्पताल के

लैब टेक्नीशियन सुनील कुमार कहते हैं कि टीबी जैसी बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने में इस तरह की परेशानी आती है, लेकिन अगर क्षेत्र में डटकर काम किया जाए तो सोच बदल जाती है। लोगों की पुरानी सोच बदलने में समय जरूर लगता है, लेकिन उसके लिए डटकर मेहनत करना पड़ता है। जैसा कि आशा रूपा श्रीवास्तव ने किया। उनकी मेहनत से आज क्षेत्र के काफी टीबी मरीज स्वस्थ हो गए हैं।

सुनील कुमार कहते हैं कि टीबी अब छुआछूत की बीमारी नहीं रही। इसलिए अगर किसी में लक्षण दिखाई तो तत्काल सरकारी अस्पताल जाकर जांच कराएं। जांच में अगर टीबी की पुष्टि होती है तो इलाज मुफ्त में होगा। साथ ही जब तक इलाज चलेगा, तब तक पांच सौ रुपये प्रतिमाह की राशि भी मिलेगी। इसलिए लोगों से मेरी यही अपील है कि अगर लगातार दो हफ्ते तक खांसी हो, बलगम के साथ खून आए, शाम के वक्त अधिक पसीना आए या फिर लगातार बुखार रहे तो सरकारी अस्पताल जाकर जांच करवाएं।

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