निमोनिया से बचाव के लिए संपूर्ण टीकाकरण ही है एकमात्र उपाय

  • सर्दियों के मौसम में अपने नवजात शिशु का रखें विशेष ख्याल
  • निमोनिया से बचाव के लिए बच्चों को न्‍यूमोकॉकल कॉन्‍जुगेट वैक्‍सीन लगवाना है जरूरी
  • नवजात बच्चों को छह महीने तक कराएं सिर्फ और सिर्फ स्तनपान

मुंगेर, 6 जनवरी। प्रत्येक साल सर्दियों के मौसम में निमोनिया बीमारी के होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। भारत में विशेष रूप से छोटे बच्चे निमोनिया का सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। एक आकलन के अनुसार देश में 2030 तक 17 लाख से अधिक बच्चों की निमोनिया संक्रमण से मौत का खतरा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कहना है कि सर्दी के मौसम में निमोनिया का खतरा अधिक देखा जाता है।

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ राजेश कुमार रौशन ने बताया कि निमोनिया, दो तरह की बैक्ट्रीरिया स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया एवं हीमोफीलियस इंफ्लूएंजा टाइप टू की वजह होता है। यह बच्चों के लिए सबसे बड़ी जानलेवा संक्रामक बीमारी है। बैक्टीरिया से बच्चों को होने वाले जानलेवा निमोनिया को टीकाकरण से ही रोका जा सकता है। इसके लिए बच्चों को न्‍यूमोकॉकल कॉन्‍जुगेट वैक्‍सीन यानी पीसीवी का टीका दो माह, चार माह, छह माह, 12 माह और 15 माह पर लगवाना अनिवार्य है । जिला भर में कार्यरत प्राथमिक/ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पताल तक में टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध है।

उन्होंने बताया कि निमोनिया सांस से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में बैक्टीरिया, वायरस या फंगल की वजह से फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है। आमतौर पर निमोनिया बुखार या जुकाम होने के बाद होता है। यह 10- 12 दिन में ठीक भी हो जाता है लेकिन कई बार यह खतरनाक भी होता है। 5 वर्ष से कम उम्र के छोटे बच्चों और 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती, इसलिए इन लोगों पर निमोनिया बीमारी का असर बहुत ही जल्द होता है। आमतौर पर निमोनिया होने पर फेफड़ों में सूजन आ जाती है। कई बार पानी भी भर जाता है। इसके अलावा ठंड लगने, फेफड़ों पर चोट, प्रदूषण आदि के कारण भी निमोनिया होता है। वैसे लोग जो किसी अन्य बीमारी जैसे खसरा, चिकनपॉक्स, टीबी, एड्स, अस्थमा, डायबिटीज, कैंसर और दिल के रोग से ग्रसित हैं, उन्हें निमोनिया होने का खतरा बढ़ जाता है ।

इन लक्षणों से निमोनिया की करें पहचान :

  • तेज बुखार होना ।
  • खांसी के साथ हरा या भूरा गाढ़ा बलगम आना ।
  • सांस लेने में दिक्कत होना ।
  • दांत किटकिटाना ।
  • दिल की धड़कन बढ़ना ।
  • सांस की रफ्तार अधिक होना ।
  • उलटी एवम दस्त होना ।
  • भूख कम लगना ।
  • होंठों का नीला पड़ना ।
  • कमजोरी या बेहोश होना ।

संपूर्ण टीकाकरण से ही निमोनिया से बचाव संभव :
उन्होंने बताया कि बच्चे को निमोनिया से बचाने के लिए सबसे जरूरी उसका संपूर्ण टीकाकरण है। इसके लिए कम उम्र के सभी बच्चों को समय पर टीके लगवाना जरूरी है। न्यूमोकोकल टीका (पीसीवी) निमोनिया, सेप्टिसीमिया, मैनिंगजाइटिस या दिमागी बुखार आदि से बचाव करता है। इसके अलावा, डिप्थीरिया, काली खांसी और एचआईवी के इंजेक्शन भी निमोनिया से बचाव करते हैं। निमोनिया को दूर रखने के लिए व्यक्तिगत साफ-सफाई भी जरूरी है। हमेशा छींकते- खांसते समय अपने मुंह और नाक को ढक लें। इसके अलावा समय- समय पर हाथों को जरूर साफ करना चाहिए। बच्चों को प्रदूषण से बचायें और सांस संबंधी समस्या न रहे इसके लिए उन्हें धूल-मिट्टी व धूम्रपान करने वाली जगहों से दूर रखें। बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उन्हें लिए पर्याप्त पोषण दें। बच्चा यदि छह महीने से कम का है तो उसे नियमित रूप से स्तनपान ही कराएं। नियमित स्तनपान प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए बेहदजरूरी है। इसके अलावा भीड़-भाड़ वाली जगह से भी बच्चों को दूर रखें क्योंकि ऐसी जगहों पर संक्रमण के फैलने का खतरा सबसे अधिक होता है ।

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